वक़्त के खेल में
वक़्त के खेल में मौका देर से सही आदमी की पारी भी आती है राजेश’अरमान’
वक़्त के खेल में मौका देर से सही आदमी की पारी भी आती है राजेश’अरमान’
मिलती है आशीष झुकने से इंसा फिर अकड़ता क्यों है राजेश’अरमान’
कोई तीर निकला कमान से बेवज़ह न जाने किसकी बारी आई बेवज़ह राजेश’अरमान’
सुना है बहुत दूर की सोचते है वो हमें वो सोचे इसके वास्ते शायद दूर जाना पड़ेगा राजेश’अरमान’
कितने मुश्किल सफर तय किये है मुड़ के तो देख अब रूक क्यों गया है फिर चल के तो देख राजेश’अरमान’
लुप्त होते रहे गर अच्छे इन्सां इसी तरह , इक दिन ये कहीं डाइनासोर न हो जाए राजेश’अरमान’
कल छोड़ के आया था जिसे अँधेरे में वो तन्हाई आज , फिर मुझे रोशन कर रहीं है राजेश’अरमान’
न तख्तो पे न ताज़ों पे नज़र रखता हूँ न कोई जलवा न रिवाज़ों पे नज़र रखता हूँ जो देखने का मुझे बंद आँखों से…
फ्रेंडशिप डे पर फेस बुक के सभी दोस्तों के लिए रस्म कुछ फेस बुक में हम इस तरह निभाते है बिन मिले कभी हम दोस्ती…
फिर तुम्हे याद किया याद न आने की फ़रियाद किया राजेश’अरमान’
कदम रुकने से मंज़िल कुछ और दूर हो जाती है मुसाफिर की थकन से राह मजबूर हो जाती है हौसलों की हवा से उड़े है…
काश दिलासो की कश्तियों में कोई छेद न होता राजेश’अरमान’
अक्सर हादसे सहते रहे काश ख्वाब भी कोई हादसा होता राजेश’अरमान’
ख्वाब तो आफताब है शाम होते ही ढल जाते है राजेश’अरमान’
हिचकोलों से भरी ज़िंदगी ढूंढ़ती किनारा चुपचाप सा राजेश’अरमान’
वो ज़ज़्बा कहा खो गया जब इंसा सिर्फ इंसा था राजेश’अरमान’
वास्ता नहीं खुद से लेकिन दुनिया की फ़िक्र रखते है राजेश’अरमान’
सच से दूर हो रहा इंसा कोई चढ़ा दे पारा चेहरे पर राजेश’अरमान’
जब वो बेवज़ह मुस्कराते है गम लेता है अंगड़ाई चुपके से राजेश’अरमान”
आईने को कोई झूठ सीखा दे आईने को कोई आईना दिखा दे राजेश’अरमान’
काफिलों के साथ साथ चलते रहे दुनिया के रंग में बस ढलते रहे राजेश’अरमान’
अपने ही लोग फिर शहर में दहशत क्यूँ अपनी ही आँखों में जहर सी वहशत क्यूँ कहीं तो सुनी जाएगी आख़िर फ़रियाद किसी सजदे को…
कुछ अकेले से एहसास फिरते है दरम्या मेरे कुछ कशिश है उदास फासलों के घने अँधेरे दबे कदम चलती साँसें सहमे कदम आते सबेरे हलकी…
खुद को बदलने से जरूरी है खुद का किरदार बदलना आदमी दुनिया में पहचाना जाता है किरदारों से राजेश’अरमान”
ना खुद को बदल सका ना तेरी निगाहों को सिलसिला बस चलता रहा खत्म होने के लिए राजेश’अरमान’
मेरी उठती सांसों की तरह वो दबे- दबे से एहसास कैसे उठते चले गए वज़ूद को भेदने लगी तेरी लफ़्ज़ों की सौगाते कैसे सुनते चले…
तूफां ने लहरों को कब ज़िंदगी दी है हवाओं ने चरागों को कब रौशनी दी है चाँद को तकता है थोड़ी सी रौशनी के लिए…
तुमने मेरे बाग़ के फूलों को पत्थर कर दिया, मैं तेरी गली के पत्थरों को फूल करके आया हूँ जाना मुझे तेरी गली ,आना तुझे…
वादियों में गूंजती आवाज़ लौट सकती है घटाओं में छुपी बिजलियाँ कौंध सकती है ना ले मेरी खामोशियों का इम्तेहान इस कदर, मेरी ख़ामोशी तेरे…
तुम आसमाँ मैं ज़मीं ही सही तुम हो आंसूं मैं नमीं ही सही यूँ पलट के देखना तेरा बार बार कुछ नहीं मेरी कमीं ही…
शोर नहीं जो दबा दिया जाऊँ हर्फ़ नहीं जो मिटा दिया जाऊँ कोई दीवार पे टंगी तस्वीर नहीं जब चाहे जिसे हटा दिया जाऊँ राजेश’अरमान’
जो बिकता सरे आम वो ईमान होता है जो जहाँ को समझे वो नादान होता है बदलते रंग में ढल गयी सारी दुनिया जो अधूरा…
आ ज़िंदगी तुझे रिश्वत दूँ एक नई तुझे तबियत दूँ गुफ्तगू ये तेरे मेरे बीच की , आ नई तुझे शख्शियत दूँ राजेश’अरमान’
मैं रास्ते खुद अपने बना लूँगा वक़्त जैसे चलना है अपनी चाल चल राजेश’अरमान’
अब गुनाह में नीयत नहीं देखी जाती अब प्यार में सीरत नहीं देखी जाती सब के अपने फलसफे ,सबके अपने तजुर्बे अब उम्र के लिहाज़…
जुदा हो जाते पिंजरे से पखेरू लिख जाते कोई दास्तां अधूरी राजेश’अरमान’
कोई शजर शाख से बैर नहीं रखती कोई शाख पत्तों को गैर नहीं रखती अपने हौसलों से ही जहाँ मिलता है कोई दरवाज़े पे किस्मत…
इतना न पशेमाँ हो की मैं पिघल जाऊं कुछ तो रहने दो पत्थर मेरे अंदर राजेश’अरमान’
दे के वो गिनते रहे ज़ख्म मेरे मैं उनकी सादगी पे फ़िदा हो गया राजेश’अरमान’
या रब्ब दुश्मनों को सलामत रखे सदा न जाने कब आरज़ू क़त्ल की मचल जाये राजेश’अरमान’
अंधेरों में वो नज़र आते है उजालों में जो ठहर जाते है चाक रखते है दामन अपना पर महफ़िलों में संवर जाते है राजेश’अरमान’
अक्स आईने में दिखता तो जरूर है हम ही तोहमत लगा जाते है आईने पे राजेश’अरमान’
मसला सिर्फ इतना है वो समझते नहीं मुझे गर समझते तो इक नया मसला खड़ा होता ठीक से नहीं समझते इस ठीक से समझने की…
बारिश की बूंदो की हल्की हल्की आवाज़ कानो में रस घोलते जेहन में उतर जाती है कौंधती बिजलियाँ कुछ ठक ठक सी दस्तक देती है…
गुथियाँ सुलझाने में उलझ जाता जीवन पकड़ के कान खींचता है जीवन कभी इस तरफ कभी उस तरफ सीधी रेखाएं खींचता हूँ जीवन की, पर…
एक जानी पहचानी सड़क पर चला जा था मैं बेखबर तभी कुछ पहचानी सी आवाज़ें सुनाई दी पुलिस की गाडी की आवाज़ सुनाई दी देखा…
खुद से जुदा भी नहीं मुखातिब भी नहीं खुद को बयां करूँ ऐसा कातिब भी नहीं गुमगश्ता फिरती है नाशाद रूह जिसकी फ़िदाई बन भी…
तेरी याद आज बैठी है गुमसुम शायद थक गई यादों की भी उम्र होती है एक उम्र बाद यादें धुँधली पड़ जाती है लेकिन तुम्हारी…
कुछ खट्टी मीठी छोटी छोटी बातों का एक छोटा सा संसार है जिसे न जाने कितनी सरहदों कितने धर्मों में बाँट रखा है बस आती…
सहमी सी शाम रातों के घने साये काँपती सुबह दिन वही अजनबी लोग कहते है की अब ज़माना बदल गया है राजेश’अरमान’
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