तुम झूठ किसी और दिन बोलना

July 8, 2020 in ग़ज़ल

सच कभी हमारा दामन नहीं छोड़ता 
कोई भटकाव हमारा प्रण नहीं तोड़ता 
जब भी विरोधाभास का आभास हुआ 

हम कोई प्रतिक्रिया देते वक़्त नहीं भूले 
अपने शब्दों को बोलने से पहले तोलना 

फिर भी जाने क्यूँ कहने वाले कह ही गए 
तुम झूठ किसी और दिन बोलना
तुम झूठ किसी और दिन बोलना

हमने फिर भी बेरुखी नहीं अपनायी 
लाख चाहे लफ़्ज़ों के हेर फेर की 
अक्सर बेतरतीबी से चोट खायी 

लेकिन सम्मान देने की खातिर 
हमने कभी फटे में टांग न अढ़ाई 

क़श्मक़श में दिल से जो बात की
बस अपने दिल से ये आवाज़ आयी 

कभी अपने इस बड़ी कमज़ोरी का 
तुम राज़ किसी के आगे नहीं खोलना

फिर भी जाने क्यूँ कहने वाले कह ही गए 
झूठ किसी और दिन बोलनातुम
तुम झूठ किसी और दिन बोलना

किरदार

July 8, 2020 in Other

जटिल है किसी को पूर्णतः समझना 
अस्थिरता रहती है सबके जीवन में

क्यों मानक तय करना किसी के लिए
गुज़रता है हर कोई अलग संघर्षों से

हर शख्स में दो किरदार जीवित हैं 
अपनी सच्चाई अपने ही साथ है 

हम किस किरदार को जीना चाहते हैं 
ये निभाना भी सिर्फ अपने हाथ है 

कोई इतना अनुभवहीन नहीं यहाँ 
हर बंदा परिपक्व ही दिखता है 

विचारों में भिन्नता हो भी तो क्या 
ज़रा सा संभल रिश्तों को जीवित रखता है

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