Anita Sharma
ख्वाइशें उसकी
July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ज़िन्दगी कभी अज़ीब सी भंवर उठाती है
चहुँ और पानी तो नज़र आता है
न जाने नाव क्यों न चल पाती है
झकझोरती हैं ख्वाइशें दिल में दबी उसके
पंख फड़फड़ाते तो है
पर वो उड़ान नहीं भर पाती है
बीज बोती है कामयाबी के परचम लहराने को
पर ये क्या फसल हरी होते ही
चिड़िया खेत चुग जाती है
पहनती है सुहाग किसी और के नाम का
कुत्सित रूढ़ियों बेड़ियों में
तब वो जकड जाती है
डरती भी है लड़ती भी
कभी बहुत झल्लाती है
अंत में खुद को ही समझा
अपनी अधूरी हसरतों को
दिल में दबा जाती है
ये समाज है बातें तो
नारी उत्थान की करता है
फिर क्यों वो आगे बढ़ने से रुक जाती है
क्यों बेचारी का दर्ज़ा दे देते है उसको
जब वो अकेली हर बोझ उठा जाती है
कमज़ोर नहीं लाचार नहीं
शक्ति है समझो उसको भी
हसरतें उसमें भी है
वो भी परचम लहरा सकती है
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
कविता
July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ज़िन्दगी अबूझ पहेली सी है
कभी बहुत करीब एक सहेली सी
कुछ उठते सवाल उलझे से
नहीं मिलते जवाब सुलझे से
बड़ी शिद्दत से अगर खोजें तो
कुछ हल पाने में आसानी होगी
ज़्यादा बुद्धिमत्ता समझने की इसको
शायद बिलकुल बेमानी होगी
चक्रव्यूह ये भेदना आसान नहीं
अथक संयम भी बरतना होगा
हर इम्तिहान का फल चखना होगा
खुली आँखों से परखना भी होगा
तभी परिपक्वता का विस्तार होगा
तेरी शख्शियत में फिर निखार होगा
©अनीता शर्मा
अभिव्यक़्ति बस दिल से
Shayari
July 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मेरे अपनों से ही तो प्रेरित हैं
मेरे शब्दों की गहराईयाँ
वर्ना हर बात पर अक्सर
हम बेज़ुबां हो जाते थे
©अनीता शर्मा
अभिव्यक़्ति बस दिल से
Shayari
July 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी
आँखों की नमी देखकर हम,
नज़रें उनसे चुराने लगे,
वो फिर से कही रो ना दें,
हम खुल कर मुस्कुराने लगे
©अनीता शर्मा
अभिव्यक़्ति बस दिल से
Shayari
July 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी
ये राहें ले ही जाएंगी
मंज़िलों तक हौसला रख
कभी सुना है अँधेरे ने
सवेरा होने ना दिया
©अनीता शर्मा
अभिव्यक़्ति बस दिल से
कविता
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आपका ख़याल जब भी हमें आता है
ज़िन्दगी के प्रति नजरिया ही बदल जाता है कमाल क़ि बात है,किश्तों में ही सही
मेरे दिल की उलझनों को सुलझाता है
आपका ख्याल साथ कुछ ऐसे निभाता है
ये अकेलापन भी छिटक कर दूर जाता है
आपका ख्याल महकते गुलाब सा ही तो है
जिस्म से रूह तक को महका जाता है
आपका ख्याल इस तरह दस्तक दे जाता है
रूबरू हों जिससे,वो खूबसूरत नज़र आता है
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 12, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मैंने खुद लिखा अपनी किस्मत मैं दर्द
इशारा तो मिला था कई बार ज़िन्दगी का
संभल जाता अगर गौर करता ज़रा भी
आज यूँ मारा मारा न फिरता दर बदर
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 12, 2020 in शेर-ओ-शायरी
ज़मीन पर टिके हो कदम
मंज़िल पर टिकी हो नज़र
राहें खुद आसान हो जाएंगी
लाख मुश्किलों से भरी हो डगर
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
कविता
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
सपना उज्जवल भविष्य का
जितना ही बड़ा होगा
कामयाबी का ताज रत्नों से
उतना ही जड़ा होगा
क्या हुआ अभी फर्श पर
नज़र आते हैं हम
कल अपने सम्मान में भी
जनसैलाब उमड़ा होगा
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 12, 2020 in शेर-ओ-शायरी
जिन्हें हम भूल जाते हैं
फिर भी वो याद आते हैं
बन कर रतजगे यादों के
ज़हन में क्यों उतर जाते हैं
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
कविता
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
लौटना न मुसाफिर
बस कदम तू बढ़ाना
आयें जो भी मुश्किल
खुल कर तू भिड़ जाना
कोई ज़ोर नहीं चलता
गर मज़बूत हों इरादे
हारा वही है बस
जो मुश्किलों से दूर भागे
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
यूँ बनती बिगड़ती किस्मत की
नुमाइश ना कर बन्दे
तक़दीर सँवरती नहीं
शिकायत के पुलिंदों से
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 12, 2020 in शेर-ओ-शायरी
लिख दी है इबारत कामयाबी की मैंने
तवज्जो मेहनत को देकर पहले
अब इंतज़ार है अपनी किस्मत का
कब दौर मेरा भी लाएगी
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 12, 2020 in शेर-ओ-शायरी
दूरियां ज़बरदस्त कायम है
दरमियाँ दो दिलों के
कौन जाकर समझाए उन्हें
किस्मत से मोहब्बत मिलती है
दिलों में रंजिशें हो तो
इश्क़ मुकम्मल हुआ नहीं करते
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
उड़ जा रे पंछी
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
उड़ जा रे पंछी ख़ुशी से
उस असीमित गगन में
क्या सोचता है बैठ कर
फिर कैद की फिराक में
जल्दी से छोड़ दे ये बसेरा
कहीं और जाकर खोज ले
यहाँ पिंजरे है तेरी ताक में
आज तुझको समझा हूँ मैं
जब खुद को कैद में पाया
नहीं कुछ भाता है ऐसे में
क्या धूप हो या हो छाया
पंखों को फैलाकर अपने
खूब लम्बी उड़ान भरना
आँधी जो रोके राह तेरी
पल भर को तू न डरना
उड़ जा रे पंछी ख़ुशी से
उस असीमित गगन में
©अनीता शर्मा
अभिव्यक़्ति बस दिल से
सीख मोमबत्ती की
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जलते ही रोशनी फैलाती है,
मोमबत्ती भी सीख दे जाती है,
हम मानस पुतलों की तरह
इक तालमेल बैठाती है
व्यक्तित्व छोटा हो या बड़ा,
महक भी चाहे हो जुदा,
लेकिन कार्य पृथक नहीं इनका,
दोनों का काम है जलना
शायद किसी दौड़ में नहीं ये शामिल,
ना चाह में,एक दूसरे को परखना
क्यों किस्मत दोनों ने एक ही पायी
नियति में लिखा इनके है जलना,
बस इसी तरह तुमको हमको,
एक सांचे में मिलकर ढलना!
सोचो भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में
कब जाने,क्या कहाँ छूट जाए ?
प्रतिस्पर्धा से अब परे हटकर
ज़रा शुरू करो मिलना जुलना
क्यूंकि ज़िन्दगी का है यही फलसफा
जब तक जीना तब तक जलना
©अनीता शर्मा
अभिव्यक़्ति बस दिल से
अपनों में बेगाना
July 12, 2020 in Other
मैंने तुझे जितना समझाया
तू क्यों उतना बिफरता गया
तुझे राह सच की दिखाई जो
तू क्यों फिर भी बिगड़ता गया
तुझे सुलझाने की कोशिश की
तू क्यों उतना उलझता ही गया
क्या वजह है तेरी नाराज़गी की
जो जुदा तू सबसे यूँ होता गया
आ अपने दिल की बात कहले
अब अपनों में ना रह यूँ गुमशुदा
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
ज़िन्दगी खूबसूरत है
July 12, 2020 in Other
ज़िन्दगी खूबसूरत है
इसे खुल कर जियो
छोड़कर द्वेष का भाव
हँस कर सबसे मिलो
किसी की कष्ट न दो
मुस्कराहट की वजह बनो
ज़िन्दगी खूबसूरत है
इसे खुल कर जियो
सही कहा गया है
कर्म का फल
कहाँ जाता है
जो देगा तू वही पायेगा
तेरा किया आगे आएगा
ज़िन्दगी खूबसूरत है
इसे खुल कर जियो
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
मतलबपरस्त
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मतलबी ही रहे तुम
ज़िन्दगी के हर पड़ाव में
अब उम्र हो चली है
ज़रा पश्चाताप कर लो
माना तुम ज़िन्दगी भर
करते रहे छलावा!
पर याद रहे
मिलता हर कर्म का हिसाब,
वक़्त करता है ये दावा
खूब मौज उड़ाई तुमने
पहनकर अच्छाई का नकाब
रिश्ते निभाए फायदों तक
लेकिन जान गए हम कि,
मतलब निकालने में
नहीं तुम्हारा कोई जवाब
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
कविता
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम्हे दूर जाना था,
तो पास आये ही क्यों
वादों से मुकर जाना था,
तो सब्ज़ बाग़ दिखाए क्यूँ
मेरी फितरत में नहीं शामिल
बेवज़ह रिश्तों को तोड़ देना
पर तुम खुदगर्ज़ निकले तो
फिर हम रिश्ते निभाए क्यूँ
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
बंद खिड़की
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तलबगार है ये बंद खिड़की
उस शख्श के दीदार की
जो वादा करके गया आने का
अब हद्द हो चुकी इंतज़ार की
गुज़रती हैं जब भी हवाएं यहाँ से
दर्द की आहट उठ जाती है
चरमराती कराहती हैं बहुत
ये खिड़की बहुत चिल्लाती है
जाम से चुके कब्जे इसके
झुँझलाते किटकिटाते से
उन यादों के झरोखों से
तेरी कोई हूक सी उठ जाती है
आजा की रंग फीके न हो जाएँ
खुलने को आज भी बेताब ये खिड़की
रोशनी भी गुज़रने नहीं देती
कैसी ज़िद पर अड़ी है ये खिड़की
कब आकर खटखटाओगे
कब फिर सतरंगी सपने सजाओगे
आजाओ की आस में परेशान
तलबगार तेरी ये बंद खिड़की
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
मनमोहिनी
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेरी कल्पना में कहीं जो बसी है वो
मदमस्त थिरकती जो अपनी ही धुन में ,
फूलों सी महकती हर अदा में अभिव्यक्ति
मोहपाश में बांधे वो कजरारी निगाहें ,
हाँ तुम वही मेरी प्रियवंदिनी हो ,
हाँ तुम वही मेरी मनमोहिनी हो
क्या सुन्दर भंगिमाएं सभी तुम्हारी
हर सुर ताल पर ऐसे बन रही हैं
पुलकित मयूर नाच उठा हो कहीं जैसे
प्रेम रस ऐसे बरसा रही हो
हाँ तुम वही मेरी मनभावनी हो
हाँ तुम वही मेरी मनमोहिनी हो
वो ढ़ोल की हर थाप पर
हौले हौले से जब पग रखती हो
मतवाली उस चाल से अपनी
रग रग में प्राण भरती हो
हाँ तुम वही मेरी संजीवनी हो
हाँ तुम वही मेरी मनमोहिनी हो
वो कोमल हाथों से भाव व्यक्त करना
करती हो नयी उमंग का संचार
मन आनंदित हो झूम उठता है जैसे
पड़ने लगी हो सावन की फुहार
हाँ तुम मेरी कमलनयनी हो
हाँ तुम मेरी मनमोहिनी हो
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
मेरा लक्ष्य
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
किस्मत ने पलटकर कहा
आगे भी बढ़ ज़रा
मैं बहुत बुलंद हूँ
मैंने कहा तू बुलंद है
फिर भी पलट सकती है
ज़रा सामने देख
मेरा लक्ष्य है खड़ा
अब तेरे लिए नहीं
उसके लिए फिक्रमंद हूँ
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
वृद्धाश्रम
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ओ माँ कितनो को तुझ पर
कविताएं पढ़ते देखा है
तेरी तारीफों में कितने कसीदे गढ़ते देखा है,
कितनो को शब्दोँ से सिर्फ तुझपर प्यार लुटाते देखा है,
कितना इस दुनिया को तेरी ममता का पाठ सुनाते देखा है,
देखा है पर कुछ ऐसा भी जिसके लिए मिलते शब्द नहीं,
मायूसी सी छा जाती है दिल में जग जाते दर्द कहीं,
तू जिसके लिए सब कुछ थी कल तो,
क्यों फिर अब तेरा कोई वजूद नहीं,
कितनी कद्र है तेरी, तेरा ही भविष्य तुझे बताता है,
कैसे एक एक करके सारे हिसाब गिनाता है,
मुड़ कर क्यों नहीं देख पाता वो,
तेरे चेहरे पर छुपी वो मायूसी,
तेरी मुस्कराहट में पीछे भी कितनी है बेबसी,
क्यों याद नहीं कुछ उसको कैसे तू रात भर न सोती थी,
कैसी भी उलझन हो तुझको,तू कभी नहीं रोती थी,
क्या दर्द सहकर तूने उसकेअस्तित्व को सँवारा है,
क्यों आँखों में तू चुभती है जब वो तेरी आँखों का तारा है ,
जिस घर को तूने तिनकों से जोड़ा!
और सुन्दर महल बनाया था,
क्यों आज उसी घर में तेरा होना खटकते देखा है,
जिन हाथों से तूने दिन भर उसकी भूख को मिटाया था,
उन काँपते हाथों को भी मैंने उसको झटकते देखा है,
कितना दर्द तेरी इन बिलखती आँखों में उठते देखा है,
ढलती हुई उम्र की इन कोमल सलवटों को उभरते देखा है,
ओ माँ तेरे हालातों से मैंने पर्दा उठते देखा है ,
तेरी मज़बूर निग़ाहों में तेरी आस को मरते देखा है
ओ माँ कितनो को तुझ पर कविताएं पढ़ते देखा है ,
तेरी तारीफों में कितने कसीदे गढ़ते देखा है!
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 12, 2020 in शेर-ओ-शायरी
बादशाहत दिखाते रहे
आग पर आग लगाते रहे
इक्कों के मायाजाल में फँसे
बाजियों में गड्डियॉं फटकाते
न जाने कितनी कीमत चुकाते गए
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
सुप्रभात
July 12, 2020 in Other
फिर हुआ नई सुबह का आगाज़ है
नया दिन नयी उम्मीदों का राज है
चहचहाते पंछियों की गूंजती आवाज़ है
सरसराती सुबह की ठंडी बयार है
उस पर पड़ती सावन की फुहार है
हर तरफ सुहावने मौसम का राज़ है
ये चमकती किरणे पुकारती हैं सबको
जागो उठो खुल कर मुस्कुराओ
स्वागत करो दोनों बाहें फैलाकर
तुम्हारे सामने खड़ा तुम्हारा आज है
सुप्रभात
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
ए आलस
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ए आलस तू भाग जा
यूँ जिन्न की तरह मुझपर
ना कब्ज़ा जमा
बहुत कुछ ज़िन्दगी में
है करने को अभी बाकी
तू मेरी कल्पनाओं पर ना
यूँ लगाम लगा
मंसूबे तेरे मैं पहचान गयी हूँ
इसलिए तुझको मैं त्याग चुकी हूँ
अब तू इस तरह से ना घेरा लगा
बस बहुत हो चुका चल तू भाग जा
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
कितनी दूर
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कितनी दूर चलना है
इसकी फ़िक्र कौन करता है
बस मंज़िलें सही मिल जाएँ
ज़माना भी ज़िक्र उसकी करता है
जो लक्ष्य भेदकर अपना
सफलता के परचम लहराता है
वो कहाँ खटकता है फिर किसी को
ऊँचा उठ जाता है नज़रों में
लाख नाकारा कहा हो लोगों ने
आखिर फिर कामयाब कहलाता है
©अनीता शर्मा
अलविदा
July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
घनी काली
चाँदनी रात
जैसे हो रही
तारों की बरसात
महकाती गुज़रती
ये ठंडी हवा,
नींद के आगोश में
है सारा जहाँ,
ये रात क्या
कह रही है,
क्या किसी ने
उस नज़्म को सुना,
शायद कह रही है
वो अलविदा
बढ़ता चल
July 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
सफर बहुत लम्बा
तूफानों से घिरा था
इरादा मेरा लेकिन
पक्का बड़ा था
बड़ी मज़बूती से पकड़ी
थी जो पतवार अपनी
मेरा ज़ज़्बा मेरी मुश्किलों के
आगे जो खड़ा था
लौटना न मुसाफिर
बस कदम तू बढ़ाना
आयें जो भी मुश्किल
खुल कर तू भिड़ जाना
कोई ज़ोर नहीं चलता
गर मज़बूत हों इरादे
हारा वही है बस
जो मुश्किलों से दूर भागे
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
कभी तो बेवजह मुस्कुराओ
July 11, 2020 in Other
खुशियों को आने का मौका दो
कभी तो बेवजह मुस्कुराओ
यक़ीनन बहारें लौट आएँगी
तुम ज़रा धीमे से खिलखिलाओ
ढलती उम्र सी हर पल ये ज़िन्दगी
ज़र्रा ज़र्रा हाथ से फिसलती है ज़िन्दगी
सोचते क्यों हो मुस्कान के लिए
ये तो सुकून देगी यूँ विराम ना लगाओ
खुशियों को आने का मौका तो दो
बस कभी बेवजह ही मुस्कुराओ
मत चूकना किसी के होठों पर मुस्कान देने को
ज़िद छोड़कर अहम् तोड़कर
सबको गले लगाओ
वक़्त ठहरता नहीं किसी के लिए
तुम खुशनसीब होगे गर वक़्त पर
किसी के काम आओ
खुशियों को आने का मौका भी दो
कभी तो ज़रा बेवजह मुस्कुराओ
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
शुभचिँतक- कविता
July 11, 2020 in Other
वो सब्र का पाठ तो पढ़ाते थे
बेसब्र ना हो,सब ठीक होगा !
फिर इम्तिहानों के दलदल में
खुद बेसब्र हो,अकेला छोड़ जाते थे!
हालातों से लड़ते हम वहीँ के वहीँ रह जाते थे!
वो आकर अक्सर,हमको ढाँढस बंधाते थे
दर्द को सहन करो सब ठीक ही होगा !
फिर वैसे ही ज़ख्मों को कुरेदकर
नमक छिड़कते चले जाते थे
ज़ुल्म सहन करते हम वहीँ के वहीँ रह जाते थे!
वो आते,आकर बड़ी हिम्मत दे जाते थे,
मज़बूती से आगे बढ़ो सब ठीक होगा!
और फिर उन हालातों से पीछा छुड़ा
घबराकर उलटे पाँव लौट जाते थे
वाह रे शुभचिंतक!हम तो वहीं रह जाते थे !
खीज़ कर एक दिन हम बुदबुदा ही उठे,
झल्लाकर सवाल कुछ कर ही बैठे
क्यों चले आते हो चिंतन करने
जब दर्द का मेरे एहसास नहीं
भले का जामा पहन,बनते हो शुभचिँतक
पर किंचित चिंता स्वीकार नहीं
जब मेरी ही लड़ाई और है मेरा संघर्ष
जिसे एकल दम पर मैंने है भोगा
तुम्हारी हमदर्दी की ज़रूरत नहीं
नहीं चाहिए अपनेपन सा धोखा
ठीक होगा या नहीं,इसमें हमको अब पड़ना नहीं
और हाँ आकर ये भी कहने की ज़रूरत नहीं
सब ठीक होगा……..सब ठीक होगा
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
ज़िन्दगी की किताब
July 11, 2020 in Other
गहनता से लिख रही हूँ मैं
लफ्ज़ कम लगते हैं
गर लिखने बैठो
ज़िन्दगी की किताब
चंद लम्हे फुर्सत मिली
बाकी रहा ज़िम्मेदारियों का दबाव
यादों को तक सँजो ना सके
रखते रहे पल पल का हिसाब
बड़ा कठिन है ज़िन्दगी में
उसूलों पर चलना
वक़्त के साथ सलीके में रहना
कभी तो बड़ा दर्द देता है
भावनाओं का बिखरना
बैचैन किये रहता है इनका
सुख दुःख में बँट जाना
उलझने फँसाती जातीं हैं बेहिसाब
अंदाज ए ज़िन्दगी बड़ा लाजवाब
काश कभी कोई इतना ही समझ जाए
नासूर बन जाते है छोटे छोटे दर्द
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी
कितनी रातें गुज़र जाती हैं
नींद आये तो भी आंखें सोती नहीं
ज़हन में ख्याल तेरा
नज़र में इंतज़ार
पलकें भीगती हैं पर
आँख रोती नहीं
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी
शुक्रगुज़ार तेरे नहीं तेरी तस्वीर के हैं
तन्हाइयों में भी हमारे साथ होती है
छोड़ती नहीं एक पल हमारा साथ
साथ जगती भी है और साथ सोती है
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी
दिलकश महबूब से इश्क़
बेहद खूबसूरत एहसास देता है
कहीं नाकाम आशिक़ बना देता है
कहीं सरताज बना लेता है
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
स्वप्न या भ्रम – कविता
July 11, 2020 in Other
हर रोज़ पहुँच जाती हूँ
उस श्वेत निर्मल घरोंदे में
न जाने किस जन्म की कहानी
शायद कैद है उन दीवारों में
जहाँ पहुँच कर अतीत के पन्ने
करवटों की तरह बदलते है
शीतल पवन निर्मल सी बहती है
पुकारती हो जैसे मेरी पहचान को
वो बयार कुछ फुसफुसाती है
जैसे अतरंगता मेरे प्रेम की
बयान करके चली जाती हैं
कोई याद मेरे पूर्वजन्म की
सिमटी है उन गलियारों में
क्या कोई रूहानी ताकत
मुझको बार बार बुलाती है
क्या अतीत था मुझसे जुड़ा
या प्रेम था कोई अधूरा सा
भ्रम के मायाजाल में
शायद बसी ये नगरी
जो तड़प मुझमें जगाती है
बरबस खींचती हुई अपनी ओर
नींद के आगोश में ले जाती है
कोई तो है जो मुझे बुलाता है
क्यों बार बार ये सुन्दर महल
मेरे सपनो में आता जाता है
भटकती हूँ ढूंढ़ती हूँ
इंतज़ार करती हूँ रोज़
कोई तो हल निकले
मेरे सवालों के घेरे को तोड़कर
मेरा हमसफ़र कोई हो तो निकले
क्यामेरे अंतर्मन में द्वंद सा है
कुछ तो जानू क्या मेरे वजूद से जुड़ा
वो सपना है या कोई भ्रम मेरा
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
ना…री – कविता
July 11, 2020 in Other
ना…री तू बिलखना नहीं
किसी सहारे को अब तरसना नहीं
तू स्वयंसिद्ध और बलवान है
नहीं महत्वहीन तू खुद सबकी पहचान है
सशक्त है तू नाहक ही छवि तेरी कमज़ोर है
पर तेरे जोश का हर कोई सानी है
सबल ममतामयी गुण तुझमें
चेहरा अद्भुत जैसे माँ शक्ति भवानी है
आदिकाल से तू है इतिहास रचयिता
हर जीत में भी सहभागी है
परचम लहराए हैं तूने भी
अनमोल बड़ी तू अति प्रभावशाली है
तेरी क्षमता का जिनको ज्ञान नहीं
वो भी इक दिन नतमस्तक होगा
ये सुन्दर सृष्टि के सृजन का सपना
आज नहीं तो कल पूरा होगा
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
विजयी भव
July 11, 2020 in Other
मुश्किलें किसके जीवन में नहीं आतीं
ये दृढ़ता से समझना होगा
खुद की कोशिश नाकाम नहीं होतीं
विजय पथ पर खुद अग्रसर होना होगा
जब कोई अपने हिसाब से लड़ता जाता है
कुछ बेख़ौफ़ बढ़ते रहते हैं
कुछ थक हार मान लेते हैं
कुछ सहारों की तलाश करते हैं
कुछ टूट कर बिखर जाते हैं
मुश्किलों का अफ़सोस न करना
ये तो ज़िन्दगी का अबूझ हिस्सा है
अगर मगर में क्या बंधक होना
हर सफलता से जुड़ा एक कठिन किस्सा है
आसमाँ की लगन गर लगी है तो
ज़मीन से जुड़कर रहना होगा
कर्म को बली करो,भेद लो चक्रव्यूह
उस जीत का फिर,क्या कहना होगा
©अनीता शर्मा
अभिव्यक़्ति बस दिल से
कुछ अनकही – कविता
July 11, 2020 in Other
वो प्रीत के मनोरम स्वर्णिम पल
दफ़न क्यों हुए चारदीवारी में,
वो जुड़ रही थी या टूट रही थी
जलते से या बुझते अरमानों में,
वो प्रेम या वेदना के पल कहूं
या तार तार हुआ सपनो का महल
कौन देगा उस दुःख को गठरी का हिसाब
जो करुण क्रंदन करती ये चौखट बेहिसाब
गवाह तो सब है गुजरती है वो किस पीड़ा से
ये चरमराते द्वार ये खटखटाती खिड़कियाँ
ये सीलन मैं उखड़ती दरो दीवार
क्या उकेरूँ शब्दों मैं उसकी छुपी दास्ताँ को
कैसे लिखूं वो जर्जर अनुवाद
लड़खड़ाती जुबां से कराहती
आह सी वो आवाज़
कैसे सुनूं कष्टप्रद रूंधते गले की पुकार
समेटना तो चाहती हूँ उसके दर्द को अपने अंदर
क्यूंकि स्त्री हूँ स्त्री की वेदना को पढ़ सकती हूँ
शायद बन सकूं मैं उसकी आवाज़
लेकिन ये क्या बढ़ते उजाले के साथ
फिर वो तैयार है एक नवेली दुल्हन की तरह
भूलकर अपने ज़ख्मो के दर्द
और आंसुओं का उमड़ता सैलाब
वाह! गज़ब है ये रचना स्त्री रूप में
सहती कितनी यातना दुःख और अपमान
फिर भी मुस्कुराती उजली सुबह सी
छाप लिए कलंकिनी की वो हरपल
लेकिन उसी धुरी पर घूमती तत्पर है जैसे
बनने को अपने उसी कुनबे की पहचान
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मुकम्मल कभी वो प्यार नहीं
जो तवज्जो रंगे नूर से मिले
जो सीरत से दिल लगाए
वो मुहब्बत कमाल होती है
@अनीता
Shayari
July 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी
माथे पर शिकन से उभरती लकीरों को देखकर
एक फ़कीर ने कहा तूने बुलंद किस्मत है पायी
उसे क्या पता था कि एक जान के बदले में
गिरवी रख आया हूँ अपनी सारी कमाई
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी
शतरंज में अक्सर बाज़ियाँ पलट जाती हैं
अक्लमंदी से मोहरे चलना ए बाज़ीगर
किस्मत बुलंद हैं गर अदने से मोहरे की तो
राजा के हिस्से में शह और मात आती है
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
Shayari
July 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी
दूरियां ज़बरदस्त कायम है
दरमियाँ दो दिलों के
कौन जाकर समझाए उन्हें
किस्मत से मोहब्बत मिलती है
दिलों में रंजिशें हो तो
इश्क़ मुकम्मल हुआ नहीं करते
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
डर
July 11, 2020 in Other
डर का वजूद कुछ नहीं
ये स्वयं जनित मनोभाव है
आसन्न खतरे की चिंता से
उत्पन्न भय निराशावाद है
एक अंतहीन भ्रम की स्थिति
हक़ीक़त के धरातल पर
भय का ना कोई ओर छोर है
किसी कार्य के क्रियान्वन से पहले
उद्विग्न मन में उठा ये शोर है
अरे! मुझे डर लग रहा है
डर का दबदबा कायम है
हमारे मन मस्तिष्क में,
बड़े शातिर अंदाज़ हैं इस डर के
हावी रहता है कल्पनाओं पर
मिल जाता है जाकर अतीत में
रोकने को तैयार जैसे जीत के मंज़र
काबू करना चाहता हो कहीं अंतर्मन को
सोचो खुद को बंधन में क्यों रखना
क्यों ना डर पर ही घात किया जाए
क्यों न इस डर को ही डराया जाए
इसके झूठे इरादों से पीछा छुड़ाया जाए
असफ़लताएँ कुछ मिली भी तो क्या
आने वाले भविष्य को क्यों न संवारा जाए
ये निगोड़ा डर भी कहीं भाग जाएगा
जब इच्छाशक्ति से प्रबल मन जाग जायेगा
अमर प्रेम
July 11, 2020 in Other
दो दिल जुड़ते हैं जब सच्चाई से
चंचलता निरंतर जवान होती हैं
किसी से प्यार हो जाना
बेहद सुखद अनुभूति हैं
खुशनुमा अहसासों में
डूबकर कल्पनाएँ सोती हैं
आलिंगन किये रहते हैं
उमड़ते जज़्बात हर पल
ऐसा सच्चा प्रेम जहाँ
पूर्णतः भावनाएं निश्छल
दूर होकर भी ये वियोग
कभी नहीं अपनाते हैं
सच्चे प्रेमी विरह में भी
मिलन के ख्वाब सजाते हैं
ऐसा अटूट प्रेम जब कभी
दो आत्माओं को मिलाता है
जन्मो जन्मों तक के लिए
प्यार अमर हो जाता है
सवाल ज़िन्दगी से
July 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
हज़ारों सवालों से भरी ये ज़िन्दगी
कभी खुद के वजूद पर सवाल उठाती
कभीचलती भी,कभी दौड़ती भी है
ये थक कर कभी चूर चूर हो जाती
हर दिन नए हौसलों को संग लेकर
शाम ढलते जैसे उम्मीदें तोड़ जाती
कभी मज़बूरियों का वास्ता देकर ये
अपने होने का सही मकसद भूल जाती
सुकून की खोज में भटकती फिरती ये
क्यों खुद में हर सुख ये नहीं तलाशती
मोह है न जाने किस चीज़ का इसको
शायद ज़िन्दगी खुद ही न समझ पाती
क्यों कल की चिंता में आज को बिताना
क्यों नहीं आशावादी ये रुख अपनाती
©अनीता शर्मा