ashoksingh.990
होली
March 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
जीवन जीना एक कला है
प्रतिपल एक रंगोली है
गर मानवता है दिल में तो
प्रात-रात नित होली है ।।
वसुधा अंबर में संगम का
माध्यम दिनकर होता है
तिल होता है चन्दा में भी
फिर भी शीतल होता है।।
विष से व्याप्त भुजंग है होता
चन्दन की उस डाली पर
पर शीतलता की वह भाषा
छाई है हरियाली पर ।।
स्वाति की उन बून्दों पर
पपिहा का जीवन होता है
वह याद उसी को करता है
और स्वप्न में उसके सोता है।।
ये त्याग न्योछावर की बातें
मैं तुमको नहीं बताता हूं
पर जीवन जीना एक कला है
मन्त्र तुम्हें बतलाता हूं।।
जीवन को गर समझ गये तो
पथ जैसे रंगोली है
गर मानवता दिल में है तो
प्रात-रात नित होली है ।।
अशोक सिंह आज़मगढ़
माँ
March 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
मन मन्दिर में जिसकी मूरत
उसको दुनिया कहती माँ है
माँ ममता की सच्ची मूरत
जग में दुख को सहती माँ है ।।
पुत्र नही तो दुख का मंजर
पुत्र प्राप्ति पर भी दुख ऊपर
सुख दुःख के संघर्ष है फिर भी
प्यार से आंचल फेरे माँ है ।।
पुत्र दुखी होता है जब भी
माँ दुख का संज्ञान करे
मेरा पुत्र है रुठा सायद
बात का माँ सन्धान करे ।।
वो तो ममता की है मूरत
सारा दुख हर लेती है
कमी हमे हो जो जीवन में
हमको लाकर देती है ।।
जन्म लेकर अन्तिम तक वो
पुत्र का ही संज्ञान करें
मेरा पुत्र है मेरी ममता
ममता का गुणगान करें ।।
पुत्र नही समझे ममता को
समय के साथ बदलता है
भूल वो जाता है ममता को
“अलक” प्यार किसी से करता है।।
अशोक सिंह आज़मगढ़