सोचता हूँ….

July 1, 2020 in Poetry on Picture Contest

सोचता हूँ, क्यों ये बंदूकें है तनी?
उन जीवों पर जो दिखते हूबहू हम जैसे,
नेताओं के कठपुतले बन,
मात्र खून के कतरे है बहे।

सोचता हूँ जब माता-पिता के विषय में,
आँखों से मन के भाव झलक पड़े।
“हमारा आशीर्वाद है, लौट तुम्हे आना है”
बस यही शब्द याद रहे।

सोचता हूँ जब प्यारी बहन के बारे में,
जिसकी डोली मुझे उठानी है,
उसकी खुशियों में अपनेपन की मिठास मुझें मिलानी है।

सोचता हूँ जब उन प्यारे नन्हें हाथों को,
जिनके कोमल स्पर्श से माथे की शिकन हट जाती,
प्यारी-सी मुस्कान सारी चिंता मिटा जाती।

सोचता हूँ जब उस मन को,
जिसमें बस मेरा ही ख्याल रहता है,
जिसका दिल सदा मुझे खोने का दर्द सेहत है।

ऐसी परिस्थिती में भी हम जवान भारत माँ के प्रति अपना कर्तव्य निभाते हैं,
युद्धभूमि में हम मर मिटने को तैयार हो जाते हैं,
पर एक सवाल जो युद्ध के समय हमेशा अखरता है,
आखिर क्यों हम नेताओं की वजह से घुन से पिस जाते हैं?
क्यों धरती माँ के सभी सपूत आपस में ही लड़ते हैं?
नेताओं के कठपुतले बन,
मात्र खून के कतरे ही बहते हैं।