इतना हो कि

November 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

🌹इतना हो कि 🌹

इतना हो कि
मेरी यादें तुम मिटा दोगे
ये बात खुद को मै समझा सकूँ ||

इतना हो कि
तुम बिन मैं जीवन को अपने
पूरी तरह से कभी पा न सकूँ ||

पत्थर की दीवार जैसा
मन-जिगर बनाए तुम्हारी आरजू से
तुमने ही सौंपी फूलमाला तहसनहस कर सकूँ

इतना हो कि
सुख के बदले दुःख भुला न सकूँ
बेवफाई से और बड़ा कोई दुःख न पाऊँ

इतना हो कि
किसी का किसी के लिए रुकता नहीं
ये अपने आप को मैं समझा सकूँ

—–चारुशील माने (चारागर)
🌹

Gulam ग़ुलाम

November 15, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

©©ग़ुलाम ©©
15 अगस्त को हर साल आज़ाद हो जाता हूँ
फ़िर दिमाख से सोचना भी मेरे हाथ नहीं

हर पल हर तरफ़ ग़ुलामी में मर जाता हूँ
खाने का अनाज और दवा भी मेरे हाथ नहीं

जश्न ग़ैरों के ख़ुद ही मनाता आया हूँ
खुद के जश्न भी मुझे बरबाद करें सहीं

षडयंत्र में पाबन्द आज़ाद कहलाता आया हूँ
मुँह कान आँखें पर संवेदना मेरी नहीं

ग़ुलाम हूँ पथ्थर और पशु को पूजता हूँ
हर चीज़ का भक्त हूँ बस् विद्या का भक्त नहीं

ग़ुलाम हूँ इसीलिए इंसान होने से डरता हूँ
ग़ुलामी में समाधान, है ग़ुलामों के हाथ सही

योजनाएं मेरी नहीं, कार्यालय मंत्रालय मेरे नहीं
मेरी आरज़ू मेरी तरक्की भी मेरे हाथ नहीं

अनाज और मिट्टी में घौला है ज़हर इसतरह
बिना अस्पताल की सेहती कोई शाम नहीं

तेरी हड्डियाँ भी कहीं और बहा दी जायेगी
ऐ “चारागर” तेरी लाश भी यहाँ आज़ाद नहीं
– चारुशील माने (चारागर)

जो भी मिली

October 21, 2019 in ग़ज़ल

जो भी मिली रातें ग़ज़ब रोशन
वो बेहया सब बेनक़ाब निकली

उजलें इमलों में है ख़ुशी मतलबी
ख़ामोश वफ़ाई बेचिराग निकली

कोई जुदा हुई तोडा दम किसीने
हर आरज़ू कमनसीब निकली

लगी मेहंदी वो हाथों की लकीरों को
आँखों से ख़ुशी बेहिसाब निकली

बन के आशिक़ भरी ज़ेबों को मिले
बाजारेग़म की अर्थी तन्हा निकली

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