Gulesh
कश्मीरियत ! इन्सानियत !!
August 28, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
गलतियाँ तुमसे भी हुई है , गुनाह हमने भी किये है
पत्थर तुमने फेंके , गोलियों के जख्म हमने भी दिए है ।
गोली से मरे या शहीद हुए पत्थर से; नसले-आदम का खून है आखिर ,
किसी का सुहाग ,किसी की राखी; किसी की छाती का सुकून है आखिर ।
कुछ पहल तो करो , हम दौड़े आने को तैयार बैठे है
पत्थर की फूल उठाओ , हम बंदूके छोड़े आने को तैयार बैठे है ।
बंद करो नफ़रत की खेती , स्वर्ग को स्वर्ग ही रहने दो
बहुत बोल चुके अलगाववाद के ठेकेदार ,अब कश्मीरियत को कुछ कहने दो ।
उतारो जिहाद , अलगाववाद का चश्मा
कि “शैख़ फैज़ल” और बुरहान वानियो में फर्क दिखे
दफन करदो इन बरगलाते जहरीले चेहरों को इंसानियत के नाम पर
कि आने वाली नस्लों की कहानियों में फर्क दिखे ।।
#suthars’
Untitled
May 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
न कोई खुदा है मेरा , न कोई पैगम्बर है
बस दिल एक मंदिर है मेरा, तेरी मूरत उसके अंदर है ।
कतरा कतरा रिसते रहे हम
May 15, 2016 in शेर-ओ-शायरी
कतरा कतरा रिसते रहे हम
उनके इश्क़ में
अपने ही अंदाज में हम
उम्मीद है की नजर न होगी
कोई शख्सियत तेरे इतिहास में हमे
मगर एक आरज़ू है मगर दिल में
एक नजर भर देख लीजिएगा
लिपटे स्याह सफ़ेद लिबास में हमें ।।
#suthars’
lost relationships
May 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ऐ दिल आ गुफ्तगू करते है कुछ
चल बता तू यूं उदास क्यूं है
जिन रिश्तों की कोई तवज्जो न थी तुझे
“सुथार” आज वो इतने खास क्यूँ है ।।
#suthars’
वफादार और तुम, ख्याल अच्छा है
May 13, 2016 in Other
वफादार और तुम, ख्याल अच्छा है
बेवफा और हम , इल्जाम अच्छा है ।।
#unknown
वो तो बहक गये थे
May 12, 2016 in Other
वो तो बहक गये थे इश्क के ख्यालात से हम
वरना नफरत के दम पर तो
सादगी से एक उम्र जी चुके हम ।।
#suthars’
जंग
May 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
जंग
आजकल उलझा हुआ हूँ जरा
कल और आज की अजीब सी उलझन में
मेरे अंतर्कलह का दन्दव
है ले रहा रूप एक जंग का
एक जंग
खुद की खुद से ।
गुन्गुनानाता हूँ , मुस्कुराता हूँ
कुछ यु ही हल-ए-दिल छुपता हूँ
उस दिल का
जहाँ होती है साजिशे
खुद से ,खुद की खातिर…..
एक तरफ खिंची है अरमानो की तलवारे
और दूसरी और
बढ रहा किसी की उम्मीदो का पुलिंदा
और मेरा दिल टूट रहा
जैसे कोई जर्जर सा किला
और बस बन रहा गवाह
kya khoya ????
May 9, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्या खोया ?
निकला था मंजिलो को पाने
पर रास्तो से दिल लगा बैठा,
और कल को बुनने की जिद में
अपने आज को दांव पे लगा बैठा ।
दिल के अरमानो को आँखो
पर लिखा बैठा ,
और बदलते कल का मर्ज जानने
आज की हसरतो को मिटा मिटा बैठा ।।।।
नादाँ था सुथार
और थी नादाँ ये समझ मेरी
तभी तो भूल दुनिया के चेहरे
आईने से दोस्ती बना बैठा ।मत पूछ ऐ दोस्त क्या खोया है मैंने
चंद खुशियों की खातिर
मै ख्वाहिशो का दांव लगा बैठा ।
शौंक था मुझे मिट जाने का
सायद तभी बचा के उस लम्हे की नजाकत
मै हस्ती अपनी मिटा बैठा ।
poet@gulesh
हौंसला
May 4, 2016 in शेर-ओ-शायरी
जाएगी खुद से है जंग , तकदीर भी कुछ रूठी सी है
एक मुद्दत से है इंतज़ार हमे
अब तो उम्मीदें भी सब झूठी सी है
मगर है जज्बा बाकि दिल में कि
मेहनत रंग लाएगी मेरी
“सुथार” किस्मत न सही
मुश्किलें सीढियां बन मेरी ।।
-गुलेश सुथार