जहां में चाहे गम हो या खुशी क्या

May 6, 2018 in ग़ज़ल

गजल : कुमार अरविन्द

जहां में चाहे गम हो या खुशी क्या |
मेरे मा – बैन रंजिश दोस्ती क्या |

खुदा मुझको यकीं खुद पे बहुत है |
तो पंडित हो या चाहे मौलवी क्या |

मुहब्बत के ‘ चरागे – दिल बुझे हैं |
तो जाये आज या कल जिंदगी क्या |

हजारों ‘ ख्वाहिशें ‘ फीकी पड़ी हैं |
मुकद्दर है नही तो फिर कमी क्या |

अगर ‘ तुम छोड़ दो लड़ना तो सोचूं |
गुलों की खार से होगी दोस्ती क्या |

नहीं तकदीर में जो मेरे क्यों फिर जुस्तजू करते

May 5, 2018 in ग़ज़ल

गजल : कुमार अरविन्द

नहीं तकदीर में जो मेरे क्यों फिर जुस्तजू करते |
मेरी किस्मत में क्या है वो पता जाकर के यूं करते |

रखी इज्जत हमेशा है जिसने अपना समझकर तो |
उसी इंसान को ऐसे नहीं बे – आबरू करते |

हमें मिलने का मौका तो नही मिल पायेगा जानम |
कभी ख्वाबों में आ जाओ तो जी भर गुफ़्तगू करते |

ज़हर का घूंट पीकर भी बचे यदि तो बचा लेना |
किसी भी हाल में साहब नहीं ‘रिश्तों का खूं करते |

ये दिल का ‘आइना है जो सदा सच ही दिखाता है |
मुखौटे को अलग रखकर जो इसको रूबरू करते |

मुहब्बत की गली कूचों में क्या है

May 4, 2018 in ग़ज़ल

गजल : कुमार अरविन्द

मुहब्बत की गली कूचों में क्या है |
इधर देखो मेरी आँखों में क्या है |

बड़ा ही जोर है उन के जुबां में |
नही तो जोर जंजीरों में क्या है |

ये करने वाले हैं कर जाते हैं सब |
वगरना आग तकरीरों में क्या है |

खुदाया दिल नही देखा कहीं पे |
खुदा को पा गये ख्वाबों में क्या है |

चले आओ मेरी आँखों का पानी देखते जाओ

May 2, 2018 in ग़ज़ल

गजल : कुमार अरविन्द

चले आओ मेरी आंखों का पानी देखते जाओ |
कहानी है तुम्हारी ही , निशानी देखते जाओ |

मैं जिन्दा हूं तुम्हारे बाद भी तुमको तसल्ली हो |
कफ़न सरका के मेरी बे – ज़बानी देखते जाओ |

तुम्हारी बेबफाई का उतारूं आज मैं ‘ सदका |
मेरी यूं ‘ ख़ाक में मिलती जवानी देखते जाओ |

कहां गुजरी गुजारी जिंदगी तुमको पता कैसे |
मेरे इस दर्द की पागल कहानी देखते जाओ |

हमारे पैरहन से ख़ुशबुएं आती हैं हर लम्हा |
गुलों के साथ रहने की निशानी देखते जाओ |

सुकूं मिलता नहीं है बाद मर जाने के दुनियां में |
कफ़न ओढ़ी हुई ‘ आंखों मे पानी देखते जाओ |

अभी तारा ये रूठा था ‘अचानक चा़ंद निकला है |
छतों पर से करिश्मे आसमानी देखते जाओ |

अगर हिंदी हमारी माँ रही उर्दू बनी मौसी |
यक़ीनन आप मेरी हम ज़ुबानी देखते जाओ |

तुम्हीं कहते रहे अरविन्द कुछ दिल में कहीं होगा |
मुहब्बत हो गयी है ‘ मेहरबानी देखते जाओ |

बेजबानी – चुप रहना , सदका – न्यौछावर या उतारा ,
खाक – मिट्टी , पैरहन – कपडे

वक्त का वक्त क्या है पता कीजिए

April 23, 2018 in ग़ज़ल

गजल

वक्त का वक्त क्या है पता कीजिए |
बाखुदा हूं ‘ खुदा बाखुदा कीजिए |

दर्दे – दिल आज मेरे मुखालिब रहे |
सुखनवर से उन्हें ‘ आशना कीजिए |

चांद तक की अदा कुछ सँवर जायेगी |
अश्क आंखों से गर आबशा कीजिए |

कल्बे – रहबर इनायत बनी गर रहे |
चंद – लम्हों में फिर राब्ता कीजिए |

मशवरा ये हुकूमत तुम्हीं से लेगी |
नौजवानों खड़ा ‘ काफिला कीजिए |

जब वरक लफ्ज तेरे आगोश मे हैं |
दर्दे दिल लिख के ही रतजगा कीजिए |

मुझको अरविन्द हर सू नजर आते हैं |
मोजिज़ा ही सही मोजिज़ा कीजिए |
कुमार अरविन्द

जख्म दबाकर मुश्काता हूं

April 11, 2018 in ग़ज़ल

जख्म दबा – कर मुश्काता हूं |
चुप रहकर मैं चिल्लाता हूं |

मेरी बातें खुल न जाये |
बातों से ‘ मैं बहकाता हूं |

घर में ‘ आग लगा मत देना |
पानी पर मैं चढ़ जाता हूं |

मेरी आंखें नोच न लेना |
कुछ तो तुमको दिखलाता हूं |

गहरी चोटें बोल रही हैं |
खुद के खातिर लड़ जाता हूं |

तुम सब अपना छोड़ो यारों |
झूठा खुद को बतलाता हूं |

सारी ख्वाहिश ‘ छोड़ न देना |
अरविन्द तुम्हे समझाता हूं |
❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

हुआ हूं खाक यहां रह गया

April 9, 2018 in ग़ज़ल

हुआ हूँ ख़ाक यहां रह गया ‘ धुआं मेरा |
किसी में दम है तो रोको ये कारवां मेरा |

सभी ये कहते है अक्सर ज़मीन मेरी है |
कोई ये क्यों नही कहता है आसमां मेरा |

बदन से रूह तलक मैं ही बस गया तुझमें |
मिटायेगा तू कहाँ तक बता निशां मेरा |

मेरे लबों से हँसी तू मिटा न पायेगी |
ए ज़िन्दगानी ले कितना भी इम्तिहां मेरा |

नहीं है खौफ कि दुश्मन जहां हुआ कैसे |
कि अब जहां का खुदा खुद है मेहरबां मेरा |

कई हज़ार फफोले हैं पावँ में लेकिन |
खुदा गवाह ‘ अभी अज़्म है जवां मेरा |

ये और बात कि मेरी ज़बान कट जाये |
मगर बदल नही सकता कभी बयां मेरा |

फकत यही न कि तुमसे ये दिल लगा बैठे |
रोशन तुम्ही से है सारा ये आशियां मेरा |

वो दिल्लगी हुई अरविन्द खत्म सारी पर |
ये दिल भी तो नही भटका कहाँ कहाँ मेरा |
❥ कुमार अरविन्द

मेरा जिक्र उनसे न करना कुमार

April 4, 2018 in शेर-ओ-शायरी

मेरा जिक्र उनसे न करना कुमार
वो पगली हंसते हंसते रो पड़ेगी
❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

मेरा जिक्र उनसे न करना कुमार

April 4, 2018 in शेर-ओ-शायरी

मेरा जिक्र उनसे न करना कुमार
वो पगली हंसते हंसते रो पड़ेगी
❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

जो लगे कब्र पे पत्थर है

April 3, 2018 in शेर-ओ-शायरी

जो लगे कब्र पे पत्थर हैं बराबर कर दे
ऐ खुदा मेरे बराबर मेरी चादर कर दे
❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

ये आप भी देखें है कि

April 2, 2018 in शेर-ओ-शायरी

ये आप भी देखें है कि बस मुझको भरम है
हर शख़्स परेशान है खुलकर नहीं मिलता
कुमार अरविन्द ( गोंडा )

आइने में नजर न आयेंगे

April 2, 2018 in शेर-ओ-शायरी

आइने में नजर न आयेंगे
ऐसे चेहरे बना रहा हूं मैं
❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

सबको रस्ता दिखा रहा हूँ मैं

April 1, 2018 in ग़ज़ल

गजल

सबको रस्ता दिखा रहा हूं मैं |
साथ ‘ मिट्टी उड़ा रहा हूं मैं |

इन दरख्तों में अब भी जिंदा हूं |
अपना साया मिटा रहा हूं मैं |

मुझको लाकर लिटा गए जबसे |
कब्रे – रौनक बढा रहा हूं मैं |

इश्क करना ही सीख लो मुझसे |
इश्क करना सिखा रहा हूं मैं |

आइने में नजर न आयेंगे |
ऐसे चेहरे बना रहा हूं मैं |

लोग मुझे बत्तमीज कहतें हैं |
खुद जो खुद का बता रहा हूं मैं |

वो रुलाती रही मुझे हरदम |
कह जिसे ‘ बेवफा रहा हूं मैं |

चाहता हूं लिपट के फिर रो लूं |
माँ तेरे घर से जा रहा हूं मैं |

आग अरविन्द मय्यसर लेना |
अपनी बस्ती जला रहा हूं मैं |
}-❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

है चाह मिलूं उससे जो अक्सर

March 31, 2018 in ग़ज़ल

गजल

है चाह मिलूं उससे जो अक्सर नहीं मिलता |
दीवार घरों में है मगर घर नहीं मिलता |

ये आप भी देखें है कि बस मुझको भरम है |
हर शख़्स परेशान है खुलकर नहीं मिलता |

इस ज़िन्दगी के चिथड़े सिलाने है मुझे सब |
इस शहर में पर कोई रफूगर नहीं मिलता |

जज्बाती दिलों ने मेरे जब आग लगा ली |
इस से कोई गमगीन तो मंज़र नहीं मिलता |

सन्नाटे हैं तनहाई है रुसवाई है दिल में |
धोखा जो जमाना दे वो पढ़ कर नहीं मिलता |

वो प्यास बुझा देती मेरी आज सभी , पर |
अच्छा है कि प्यासे को समंदर नहीं मिलता |

हैं दोस्त भी ‘ अरविन्द ‘ बहुत सारे मेरे पर |
जब दिल को जरूरत हो तो दिलवर नहीं मिलता |
अरविन्द शुक्ला ( गोंडा )

मोहब्बत कर लूं

March 29, 2018 in शेर-ओ-शायरी

तू याद रख सके मुझे जिंदगी भर कुमार
आ तुझे कुछ इस तरह मोहब्बत कर लूं
❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

कफ़न का ही इन्तिजाम

March 23, 2018 in ग़ज़ल

कफ़न का ही इँतजाम कर दो |
दो गज की जमीं नाम कर दो |

दफन कर के मुझको जमीं में |
मुझे गुल से गुलफाम कर दो |

चलें आयेंगे देखने मुझको |
ये मैय्यत सरे – आम कर दो |

कतारों में जिन्नाद होंगे |
मुझे तुम जो हअमाम कर दो |

मेरे सर पे ‘ इनाम रख कर |
मुहब्बत सरे – आम कर दो |

तमाशा बना कर रखा क्यूं |
अगर चाहो गुमनाम कर दो |

भटकती मेरी रूह को तुम |
किसी का भी गुलआम कर दो |

मुहब्बत ‘ का इनाम देना |
मेरे सर पे इनाम कर दो |

ए अरविन्द ये खाक उड़कर |
मुझे इश्के – खैय्याम कर दो |
__________कुमार अरविन्द

गुलफाम – फूलों के समान रंग वाला ,
जिन्नाद – भूत प्रेत , हमाम – इत्र
इश्के खैय्याम – इश्क का नशा करने वाला

इश्क को माना खुदा

March 22, 2018 in ग़ज़ल

इश्क को माना खुदा है |
देख लो क्या क्या सजा है |

उन गुलों को क्यूं मसल दूं |
जो मेरा भी हमनवा है |

मुश्कुराहट देख के मेरी |
आइना मुझ पर फिदा है |

जख्मी तुम गुलनार देखना |
मुश्कुराहट भी कला है |

झुक गया है आसमां भी |
चांद छत पर जब दिखा है |

आइना मैं देख लूं क्यूं |
माँ मेरी जब आइना है |

चांद ‘ को मैं तोड़ लाऊं |
चांदनी ‘ का फैसला है |

हर खुशी मैं छोड़ आया |
जब मिली माँ की दुआ है |

बोलेगें अरविन्द क्या अब |
दर्द आखिर बेजबा है |
❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

कब्र दर कब्र

March 19, 2018 in ग़ज़ल

एक दिन आसमां से गुजर जायेंगे |
कब्र दर कब्र में हम उतर जायेंगे |

आँधियों से ये कह दो रहें होश में |
गर नही तो गुजर रौंदकर जायेंगे |

लाख तूफ़ान दरिया उठाती रही |
बस तेरा नाम लेकर गुजर जायेंगे |

क्या करूँ मैं सभी लोग बिगड़े यहाँ |
पर घरों में रहें तो सुधर जायेंगे |

चाँद तारों से कह दो घरों में रहें |
सामने से नही तो गुजर जायेंगे |

मानता हूँ , दिलों में ही महफूज हैं |
गर यहाँ से गये तो बिखर जायेंगे |

चाँद तारों रहो हद मे सब , गर नही |
लफ्ज तासीर तक भी उतर जायेंगे |

ए परिंदे उड़ो तुम जमीं देखकर |
जो मरेंगें खुदा के ही घर जायेंगें |

अब जरा देख ‘अरविन्द गुब्बार को |
पर हवा साथ खुद ही गुजर जायेंगे |
❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

दुआ ली हमने

March 18, 2018 in ग़ज़ल

रोग जाता ही नहीं कितनी दवा ली हमने |
माँ के क़दमों में झुके और दुआ ली हमने |

इस ज़माने ने सताया भी बहुत है मुझको |
आग ये सीने की अश्कों से बुझा ली हमने |

जब नजर आई नहीं ख्वाब में ‘ माँ की सूरत |
अपनी आंखों से हर इक नींद हटा ली हमनें |

देखने तो आज सभी आये तमाशा मेरा |
जब से दीवार घरों में ही उठा ली हमने |

तेरी चाहत में हुआ हाल ‘ दिवानों जैसा |
अपनी पगड़ी ही सरे आम उछाली हमनें |

हर तरफ ही यूं नजर आने लगी उल्फ़त जब |
दिल में नफरत थी मुहब्बत ही सजा ली हमने |

खत्म हो जाये न ये दौर मुलाकातों का |
ज़िंदगी बस तेरे वादे पे बिता दी हमने |

माँ के क़दमों में ये सारा ही जहां दिखता है |
बस तेरी याद में हस्ती भी मिटा ली हमने |

खौफ था मुझको चरागों से ही घर जलने का |
आग ‘ अरविन्द ‘ घरों में ही लगा ली हमने |
❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

दुआ ली हमने

March 18, 2018 in ग़ज़ल

रोग जाता ही नहीं कितनी दवा ली हमने |
माँ के क़दमों में झुके और दुआ ली हमने |

इस ज़माने ने सताया भी बहुत है मुझको |
आग ये सीने की अश्कों से बुझा ली हमने |

जब नजर आई नहीं ख्वाब में ‘ माँ की सूरत |
अपनी आंखों से हर इक नींद हटा ली हमनें |

देखने तो आज सभी आये तमाशा मेरा |
जब से दीवार घरों में ही उठा ली हमने |

तेरी चाहत में हुआ हाल ‘ दिवानों जैसा |
अपनी पगड़ी ही सरे आम उछाली हमनें |

हर तरफ ही यूं नजर आने लगी उल्फ़त जब |
दिल में नफरत थी मुहब्बत ही सजा ली हमने |

खत्म हो जाये न ये दौर मुलाकातों का |
ज़िंदगी बस तेरे वादे पे बिता दी हमने |

माँ के क़दमों में ये सारा ही जहां दिखता है |
बस तेरी याद में हस्ती भी मिटा ली हमने |

खौफ था मुझको चरागों से ही घर जलने का |
आग ‘ अरविन्द ‘ घरों में ही लगा ली हमने |
❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

मुफलिसी जहां की जबान

March 18, 2018 in ग़ज़ल

मुफलिसी जहां की बस मैं जबान रखता हूं |
आज हाथ में अपने आसमान रखता हूं |

गौर कर जरा बस्ती पे कभी खुदा मेरे |
हैं गरीब सब तो घर में दुकान रखता हूं |

है खबर जमीं तो तुमने खरीद ली सारी |
आसमान पे , लो अपना मकान रखता हूं |

तुम्हे गर लगाना है आग तो लगा दो , पर |
आँख में जहाँ वालों मै तुफ़ान रखता हूं |

जानते रहे बेईमान है खुदा हम भी |
इसलिए बेईमां के घर पे जान रखता हूं |

काश इश्क का वो आगाज तो करें गर ‘मै |
इक तरफ मुहब्बत ए कद्रदान रखता हूं |

जब यहाँ वहाँ का अरविन्द ने जमीं छोड़ा |
हाथ में तेरे लो ‘ सारा जहान रखता हूं |
❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

चांद तारों की शरारत

March 18, 2018 in ग़ज़ल

हर तरफ ही इश्क़ की कलियाँ खिला दी जायेगी |
चाँद तारो की शरारत कुछ मिटा दी जायेगी |

तुम कहो , तो चाँद – तारें आसमां से तोड़ दूँ |
गर नही तोडूं मेरी हस्ती मिटा दी जायेगी |

कब तलक मैं जान अपनी ही छुपाऊंगा कहीं |
इन हवाओं में मेरी भी जां उड़ा दी जायेगी |

होश तो तुम्हारे भी उड़ जायेगें साहब कभी |
नफ़रतों की ये दिवारें , जब गिरा दी जायेगी |

हौसलें कब के मेरे भी मर गये थे जिस्म में |
अब बदन के सारे जख्मों को दवा दी जायेगी |

होश संभाले भी संभलते नही हैं तब खुदा |
दर्द को हमदर्द दिल से जब मिला दी जायेगी |

कब तलक ये चाँद अपनी चांदनी दिखायेगा |
चांदनी ‘अरविन्द’ ले लो बस छुपा दी जायेगी |
❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )

मेरे जख्म

May 20, 2016 in ग़ज़ल

गजल

पत्थर था मै , मोम बनाकर छोड़ दिया ,
बदन को मेरे यूँ फूलों सा मरोड़ दिया !

उठता , चलता और फिर गिरता था मै ,
हिम्मत कमबख्तों ने , मेरा तोडा दिया !

ना मै था उसका वो मुक्कमल किताब ,
पढ़ा उसने खूब फिर मुझे फाड़ दिया !

था शख्स वो कैसा जो लूटा खुब मुझे ,
शख्स के इन बातों ने मुझे झंझोड़ दिया !

लिखता था जिसकी नीली आंखें देखकर ,
सितमगर शख्स ने , दुनिया उजाड दिया !

सांस समय मेरा बाकी थी अभी जहां में ,
जालिमों ने खुदा से मेरा तार जोड़ दिया !

यूं मिले ना हमसे कोई काम था उन्हे , पर ,
क्यूं ‘कुमार’ को रदीफ़ बनाकर छोड़ दिया !
••• कुमार अरविन्द •••

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