होली

March 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

छुअन तुम्हारी अँगुलियों की,
मेरे कपोलों पर, आज भी मौजूद है,
तुम्हारी आँखों की शरारत मेरी,
तासीर की हरारत में, आज भी ज़िंदा है,
तुम तसव्वुर में जवान हो आज भी,
हमारी मुहब्बत की तरह,
हर मौसम परवान चढ़ता है रंग तुम्हारा,
एक ये एहसास ही काफी है मुझे के,
तुमने मुझे चाहा था कभी अपनी सांस की तरह,
वक्त गुज़रा हज़ारों सूरज ढल गए,
तुम्हें पता है क्या…………….
मैं अभी तक वहीं खड़ी हूँ किसी तस्वीर की तरह,
होली के दिन तेरी यादों के रंग से भरी,
मेरी ये तस्वीर मुझे कांच की तरह साफ़ लगती है,
बस इसलिए हर होली मुझे बहुत ख़ास लगती है……….
स्वरचित ‘मनीषा नेमा’

मुखौटा

February 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सादर नमन ‘सावन’
२/२/२०१८
शीर्षक- ‘मुखौटा’
———————————————–
चहरे पर चहरे का खेल है,
सूरत सीरत से बेमेल है,
कोई हमको नहीं भाता,
किसी को हम नहीं भाते,
जाहिर सी बात है साहेब,
मुखौटे बदलने के हुनर,
हमको नहीं आते,

एक दिन ज़िन्दगी ने हमसे ही पूछ लिया,
क्या तुझे जिंदगी जीने के हुनर नहीं आते??

दुनिया संगदिल, जेब तंग,
बिलों की अदायगी से खाली है,
पर देखिये जनाब हमने किस तरह,
अपनी मुस्कान संभाली है,

हम मर मिट गए उन पर खुदा,
उन्होंने अपनी हंसी,
सदा कफस में संभाली है,
नकाब ही नकाब हैं,
असलियत अब सदाकत से खाली है,

हम हो जाएंगे फ़ना,
के हमें ईमानदारी की बड़ी बीमारी है,
हमारे सपनों के संसार पर,
दुनियादारी की हकीकत बहोत भारी है ।
..मनीषा नेमा..

26 जनवरी

January 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

….गणतंत्र दिवस….
लो फिर आ गई २६ जनवरी,
नौजवानों को समझाने,
क्या होता गणतंत्र ये,
बलिदानों का गुण गाने,
आज के हर युवा का फ़र्ज़ है ये,
उन संघर्षों, उन वीरों को पहचानें,
मौत चली थी श्रद्धा से जिनकी,
हिम्मत को आज़माने,
……………
जब देश मेरा परतंत्र था,
हर वाशिंदे के मन में रंज था,
आज़ादी के परवानों ने,
गुलामी की नीव हिला दी,
देश छोड़ अंग्रेज़ भागे जब,
वीरों ने जिद की ठानी,
….
नया सबेरा नई चमक,
आज़ादी की हवा में घुली महक,
फिर संविधान हमारा रचा गया,
हर जाति, धर्म, हर नागरिक को,
उसके अधिकारों, कर्तव्यों से भरा गया,
……
ये संविधान समुद्र सा विशाल है,
इसी के हाथों में लोकतंत्र की कमान है,
भिन्न जाति, धर्मों, भाषाओं का,
रंग-बिरंगा है भारत,
पार लगाता सब की नैया,
हम भारतवासी का यही खेवैया,
……
गणतंत्र हमारा महान है,
कौन हमारा मंत्री हो,
कौन हो प्रधान उप मंत्री,
चुन सकें हम अपना नेता,
हमको चुनाव का अधिकार है,
……
डॉ भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में
२ वर्षों में इसका निर्माण हुआ,
२६ जनवरी १९५० में इसका अंगीकार हुआ
हम गणतंत्र देश के वासी अब,
कर्तव्यों की भी रखते ज़िम्मेदारी,
संविधान करता है हमारे,
अधिकारों की पहरेदारी!!!
…..
आओ करें गणतंत्र दिवस की तैयारी,
आगे बढ़कर चलो करें प्रतिज्ञा,
संभली रहे आज़ादी की धरोहर,
कभी न फिर वापस आए,
गुलामी की ये बीमारी…
..मनीषा नेमा..

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं

January 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हमारी आन, मान, शान “हिंदी”
………………………………………

भावनाओं का सागर हो दिल में,
तो एक कश्ती उतरती है,
विचारों की बाहों में बाहें गूँथ कर,
लहरों सी सुंदर पंक्तियाँ बुनती है,
ये साहसी काम बस,
हमारी प्यारी भाषा ‘हिंदी’ करती है,
………….
भाषा के गागर से उछल उछल कर निकलते शब्द,
मान, मर्यादा, अपनत्व, प्रेम के फूल खिलाते हैं,
इन्हीं फूलों की खुशबू से,
हमारे देश में रिश्ते महकते हैं,
………………..
हर एहसास के लिए अलग शब्द है,
उन्माद की हर उमंग दिखाने ढेरों शस्त्र हैं,
शब्द ही शब्द हैं पर्यायवाची,
अनेकों अनेक विलोम हैं,
…………………..
संस्कारों के भारी भरकम बोझे,
इस भाषा के छोटे छोटे कटोरों में पलते हैं,
इतिहास के तमाम खट्टे, मीठे, कसैले फल,
इस भाषा रूपी वृक्ष से निकलते हैं,
……….
हिन्दुत्व के गौरव को सिंचित करती,
पुरातात्विक संस्कृत भाषा से उपजी,
सहस्त्र सहायक हाथों वाली ये बेटी
हमारे देश की आत्मा में बसती है,
…………………..
भोली, सहज, सीधी सी ये नायिका,
गंभीर विद्वता का प्रमाण देती है,
मेरे देश की ही तरह,
साम्प्रदायिकता का विरोध करती,
न जाने कितनी और भाषाओं के शब्द,
अपने साथ बहाती चलती है,
“मेरे देश की भाषा दिल बड़ा रखती है”
………………………………………
कहीं दुश्मनों को ललकारती,
रण वीरों के बोलों से उफनती,
कभी मीठे बोलों से लदी,
ममता की लोरी में लरजती,
………………………………..
सभ्यता के माथे पर संस्कारों की बिंदी,
मेरे देश की भाषा “हिंदी”,
मेरे देश की भाषा “हिंदी”……..
..मनीषा नेमा..

शहीदों की होली

March 20, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

“एक ये भी होली है एक वो भी होली थी जो शहीदों ने खेली थी, देश को आज़ाद कराने की ख़ातिर…मेरी कविता 23 मार्च पर शहीद दिवस के उपलक्ष्य में शहीदों को नमन करती है…..”

रंगों का गुबार धुआँ बन कर,

उठ रहा है मेरे सीने में…………….

वो रंग जो ‘आज़ादों’ ने भरा था,

आज़ादी की जंग में,

वो रंग जो निकला था आँखों से,

चिनगारी में,

वो रंग जिससे लाल हुई थी,

भारत माता,

इन्हीं रंगों का गुबार धुआँ बनकर,

उठ रहा है मेरे सीने में…………….

रंग जो उपजे थे, उबले थे, बिखरे थे,

आज़ादी का रंग पाने,

वो रंग जो शहीदों ने पहने थे,

सीना ताने,

उन केसरिया, लाल, सफ़ेद, और काले रंगों को,

रंगों के उस मौसम को,

मेरा सलाम…..

उन नामचीन ‘आज़ादों’, बेनामी किताबों,

उन वीरांगनाओं, उन ललनाओं,

थोड़ी सी उन सबलाओं, हज़ारों उन अबलाओं को,

मेरा सलाम……

बंटवारे में जो बंट गईं, भूखे पेट दुबक गईं,

कोड़े खाकर भी जो कराह न सकीं,

कुएँ में कूद कर भी जो समा न सकीं,

उन हज़ारों आत्माओं को,

मेरा सलाम……..

इतिहास के गर्त से उकेर कर,

सिली हुई तुरपाइयों से उधेड़ कर,

निकाली गई, हमें दिखाई गई,

1947 में आज़ादी के दीवानों की,

होली की उस उमंग को,

‘शहीदों की होली’ की उस कहानी को,

मेरा सलाम…………..

स्वरचित ‘मनीषा नेमा’

शहीदों की होली

March 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

“एक ये भी होली है एक वो भी होली थी जो शहीदों ने खेली थी, देश को आज़ाद कराने की ख़ातिर…मेरी कविता 23 मार्च पर शहीद दिवस के उपलक्ष्य में शहीदों को नमन करती है…..”

रंगों का गुबार धुआँ बन कर,

उठ रहा है मेरे सीने में…………….

वो रंग जो ‘आज़ादों’ ने भरा था,

आज़ादी की जंग में,

वो रंग जो निकला था आँखों से,

चिनगारी में,

वो रंग जिससे लाल हुई थी,

भारत माता,

इन्हीं रंगों का गुबार धुआँ बनकर,

उठ रहा है मेरे सीने में…………….

रंग जो उपजे थे, उबले थे, बिखरे थे,

आज़ादी का रंग पाने,

वो रंग जो शहीदों ने पहने थे,

सीना ताने,

उन केसरिया, लाल, सफ़ेद, और काले रंगों को,

रंगों के उस मौसम को,

मेरा सलाम…..

उन नामचीन ‘आज़ादों’, बेनामी किताबों,

उन वीरांगनाओं, उन ललनाओं,

थोड़ी सी उन सबलाओं, हज़ारों उन अबलाओं को,

मेरा सलाम……

बंटवारे में जो बंट गईं, भूखे पेट दुबक गईं,

कोड़े खाकर भी जो कराह न सकीं,

कुएँ में कूद कर भी जो समा न सकीं,

उन हज़ारों आत्माओं को,

मेरा सलाम……..

इतिहास के गर्त से उकेर कर,

सिली हुई तुरपाइयों से उधेड़ कर,

निकाली गई, हमें दिखाई गई,

1947 में आज़ादी के दीवानों की,

होली की उस उमंग को,

‘शहीदों की होली’ की उस कहानी को,

मेरा सलाम…………..

स्वरचित ‘मनीषा नेमा’

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