mishra
तू मानव है कुछ सोच रहा।
March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
तू निर्मल है तू निर्भय है , क्या बैठ यहाँ तू सोच रहा।
विधि में तेरे लिखा क्या है, तू मानव है कुछ सोच रहा।।
ये जीवन है जीते हैं सब, कुछ लोग यहाँ रोते रोते
इसमे भाग्य का दोष नही, ये मानव है सोते सोते
सब अपनी करनी भोग रहे, तू इनको क्या अब देख रहा
विधि में तेरे लिखा क्या है, तू मानव है कुछ सोच रहा।।
नम आंखों को तू पोछ जरा , जीवन का अब सम्मान तू कर
उठ कर अपने पैरों पर तु, इस दुनिया पर एहसान तू कर।
तेरे साहस के आगे बढ़कर, कौन तुझे अब रोक रहा
विधि में तेरे लिखा क्या है, तू मानव है कुछ सोच रहा।।
कि तुम याद आ गयी
March 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज सोच रहा था कोई कविता लिखू
पर कैसे ये सोच ही रहा था
की तुम याद आ गयी
नयन अदृश्य कामना में लीन हो गए
वो संसय वो समपर्ण वो अभिधान(नाम)
सब कुछ तो शायद मैं भूल ही गया
कि तुम याद आ गयी
इस मनः स्थिति की दशा एक भ्रमर की भांति है
जो गुन गुन तो करता पर उड़ता नहीं है
स्वप्न का आदर्श निश्चय ही एक प्रतीक बन गया
तो क्या अब सब कुछ निश्चित हो गया
ये सोच ही रहा था कि
कि तुम याद आ गयी
मन तो अब खुद पर भी व्यंग करता है
कुछ प्रश्नों से वो मुझे भी दंग करता है
होठों पर मुस्कुराहट आयी ही थी
कि तुम याद आ गयी
तुम शायद जान नहीं पाए
March 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
*एक अंश तुम्हारा मुझमें है, तुम शायद जान नही पाए।
हर पल मैं तुममे दिखता हूँ, तुम शायद मान नहीं पाए।।*
अब कैसे मैं तुमको दिखलाऊं ये सपना नहीं हकीकत है
जीवन का हर एक रंग ढंग यह निश्चित नहीं कदाचित है
अब तो खोलो आँखें अपनी जीवन को जान नहीं पाएं
*हर पल मैं तुममे दिखता हूँ, तुम शायद मान नहीं पाए।।*
आयाम तेरे इस जीवन का फिर कौन भला क्यों समझेगा
तू आज नही तो कल लेकिन इस संसय में ही तड़पेगा
यह कुंठा है तेरे मन की जिससे तुम पार नहीं पाए
*हर पल मैं तुममे दिखता हूँ, तुम शायद मान नहीं पाए।।*
मैं भीष्म नहीं ना अर्जुन हूँ ना और कोई अंदाज़ मेरा
तेरे जीवन पर न्यौछावर ये सपनो का संसार मेरा
अब साथ नहीं तो लगता है जीवन को जान नहीं पाए
*हर पल मैं तुममे दिखता हूँ, तुम शायद मान नहीं पाए।।*
तुम शायद जान नहीं पाए
March 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
मैं भीष्म नहीं ना अर्जुन हूँ ना और कोई अंदाज़ मेरा
तेरे जीवन पर न्यौछावर ये सपनो का संसार मेरा
अब साथ नहीं तो लगता है जीवन को जान नहीं पाए
*हर पल मैं तुममे दिखता हूँ, तुम शायद मान नहीं पाए।।*