Nikhil
मजदूर की मजबूरी
June 10, 2020 in Poetry on Picture Contest
हां मजदूर है; सो मजबूर हैं, उनकी क्या खता; जो घर से दूर हैं
पैदल चल- चल; थक कर चूर हैं, सड़कें सारी; तपती तंदूर है,
ट्रेनों में भी; भीड़ भरपूर है, सरकारों को आखिर; कैसे मंजूर है
कैसा यह; बना दस्तूर है, जो मजदूर है; आज मजबूर हैं
जिसने सबके सपनों को, मेहनत से किया पूरा
आज उसी के सपनों का, कोविड ने कर दिया चूरा
कहीं पांव में छाले, कहीं खाने के लाले
पानी पिये तो खाली, पड़े हैं सारे प्याले
इंसानों की मंडी में अब, इंसानियत ना दिखती
वरना पलायन करते मजदूरों की भीड़ यूं ना दिखती
जब तक काम तब तक खुश, पूरे प्रदेश का वासी
अब काम निकला तो फेंक दिया, समझ कर बासी
कर्मस्थली से जन्मस्थली, की यह दूरी,
लगने लगी है अब, धरती से चंदा की दूरी
उनके पास नहीं चेक, ना ही है कोई जेक
सरकार क्यों करे परवाह, वो नहीं है वोट बैंक
आज सुअवसर आया है, चलो मानवता दिखलाये
भूल जाये क्षेत्र की बातें सारी, सब भारतीय बन जाये
ना बैठे सिर्फ सरकार भरोसे, सब हाथ मदद का बढ़ाये
भावना वसुधैव कुटुंबकम् की, जागृत कर दिखलाये
जवानों की होली
March 7, 2020 in काव्य प्रतियोगिता
जवानों ने खाई है, सीने पर अपने गोली
ना भागे दिखाकर पीठ , प्राणों की लगा दी बोली
आये दिन खेलते रहते, वो खून के रंग संग होली
तब जाकर देश में बन पाती, रंगो वाली होली
उनके लिए हर दिन ही, होली और दीवाली है
खून बहे तब होली मनती, बंदूक चले तब दीवाली है
बारुदों के ढ़ेर को समझे, वे तो अबीर गुलाले है
तत्पर देश की रक्षा में, हरपल वो मतवाले है
कारतूसों की जय माला पहन, विजय श्री वरने हुए खड़े
शत्रु की पिचकारी छोड़ती गोलियां, फिर भी कभी नहीं है डरे
बन प्रहलाद; दहन करने होलिका, दुश्मन सीमा में कूद पड़े
फ़ाड़ दुश्मन का सीना रण में, नृसिंह बन वे है डटे
ढाल बनाते बंकर को ऐसे, जैसे लठमार होली है
कारण उनके ही तो हैप्पी, होली और दीवाली है
परिचय अदभुत वीरता का देकर, अपना बना लिया हम गैरो को
इस होली सब मिल नमन करें, हम देश के हर रणधीरों को
देश के सच्चे हीरो को
Maa
October 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
हां बहुत से रिश्ते पाये है, मैंने अपने इस जीवन में
कुछ में है प्यार, कुछ में है स्वार्थ, सामने वाले के मन में
लेकिन एक बंधन ऐसा है, जिसमें सिर्फ सच्चा प्यार घुला
सबसे सुंदर सबसे न्यारा, माँ बेटे का उसको नाम मिला
आज उस माँ को करने वंदन, मैं समक्ष आपके आया हूं
त्रिदेव जिसके आगे बच्चे, बन जाते बताने आया हूं
जो कभी काली कभी सरस्वती, कभी दुर्गा नारायणी है
लेकिन अपने बच्चों के लिए, वो उनकी भोली माँ ही है
जन्नत का खजाना मेरी माँ , रहमत बरसाती मेरी माँ
सबसे अनुपम ;अप्रतिम, ख़ुदा कि कृति है मेरी माँ
गुस्से में प्यार घोल डांट देती, फिर गले लगाती मेरी माँ
चिंताओं का उठा पहाड़, उफ्फ तक भी ना करती मेरी माँ
जब नींद नहीं आती मुझको, मेरे संग संग जागे मेरी माँ
खुद गीले में सोती मुझको, सूखे में सुलाती मेरी माँ
लगती सबसे अच्छी गायिका, जब लोरी सुनाये मेरी माँ
मिलता इंद्रासन सा अहसास, जब गोद में सुलाये मेरी माँ
मुझसे ज्यादा मेरे खाने का, ध्यान रखती है मेरी माँ
मैं चाहे कितना परेशान करूं, फिर भी लाड लड़ाती मेरी माँ
मेरे संग में खूद बच्ची बन, खेलने लग जाती मेरी माँ
जो देख उसे मैं हॅ॑स जाऊँ, भूल जाती पीड़ा अपनी माँ
कदमों कि धूल माथे पर लगा, अम्बर मैं झुका दूं ऐसी माँ
तकलीफ में जो देखे मुझको, चट्टान बन जाती कोमल माँ
मेरी हर छोटी जरूरत बिना, बोले पहचाने मेरी माँ
मैं आंख का हूं तारा उसका, मेरी पथ प्रदर्शक गुरु भी माँ
आसमां सा हृदय विशाल उनका, बन तारा मैं खो जाता हूं
सागर सा लहराता आंचल, मोती बन मैं डूब जाता हूं
हां थोड़ी सी सेवा में ही पुण्य, चारों धामों का पाता हूं
आज दुनिया कि हर माँ को शीश, शत शत यह नवाता हूं
महात्मा गांधी
September 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
कारण जिसके हर हिंदवासी, आजाद हवा में रहता है
कारण जिसके आज विदेश में, सर उठा के भारत चलता है
उस मां भारत के वीर पुत्र को, श्रद्धा सुमन चढ़ाने आया हूं
मै उस आंधी जिसका नाम था गांधी कि गाथा गाने आया हूं
2 अक्टूबर 1869 , पोरबंदर बड़ा हर्षाया था
करमचंद और पुतलीबाई के, घर पर मोहन आया था
हां करी शैतानी; अठखेली, और कई बदमाशी भी
जब पकड़ी राह सत्य के पथ कि, मिली सिर्फ शाबाशी ही
वे प्रेरणापुंज वह राष्ट्रकुंज, दिव्य ज्योत जलाने आये थे
सत्य, अहिंसा, देशभक्ति का, पाठ पढ़ाने आये थे
वह धर्म; छूत का भेद मिटा, समरसता सिखाने आये थे
जन मन में राष्ट्रभक्ति जगा, अंग्रेज़ भगाने आये थे
वे रुके नहीं वे झुके नहीं, खाकर लाठी भी डिगे नहीं
हासिल जब तक ना हुई आजादी, रण क्षेत्र छोड़ वे भगे नहीं
वह राष्ट्रपिता; वह महात्मा, उनके दिल में भारत बसता है
आज भारत के दिल में वे और हर हृदय में गांधी बसता है
जन जन के दिल गांधी में बसता है