
Poonam Agrawal
अगर आह्वान करूं चांद का…
September 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
देखती हूँ चांद को –
लगता है बहुत भला ,
सोचती हूँ कईं बार –
अगर आह्वान करूं चांद का
क्या आएगा चांद धरती पर?
अगर आ भी गया
तो बदले में कन्या रत्न
ना थमा दे कही।
मगर उस कन्या का
होगा क्या हश्र।
इस धरती की पुत्री को
धरती मे समाना पड़ता है।
वो तो दूसरी
धरती से आयी होगी।
क्या होगा उसका।
यही सोचकर –
ड़र जाती हूँ ।
नहीं करती आह्वान
चंद्रदेव का।
हे चांद ! तुम
जहाँ हो वहीँ
भले हो मुझे……..
-पूनम अग्रवाल
वो एक सितारा
September 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
आसमां के तारों में वो एक सितारा
क्यों लगता है अपना सा।
पलकें बंद कर देखूं तो सब
क्यों लगता है सपना सा।
बाहें किरणों की पसरा कर वह
देख मुझे मुस्काता है।
बस वही सिर्फ एक सितारा
हर रोज मुझे क्यों भाता है।
आसमां के तारों में वो एक सितारा
क्यों लगता है अपना सा।
बादल की चादर के पीछे जब
वह छिप जाता है।
बिछड़ा हो बच्चा माँ से जैसे
इस तरह तडपाता है।
आसमां के तारों में वो एक सितारा
क्यों लगता है अपना सा।
पलकें बंद कर देखूं तो सब
क्यों लगता है सपना सा। ….
– पूनम अग्रवाल
छलने लगे है….
September 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
महक रही है फिजा कुछ इस तरह,
खुली पलकों में तसव्वुर अब पलने लगे है।
पिंघल रही है चांदनी कुछ इस तरह ,
ख्याल तेरे गज़लों में अब ढलने लगे है।
उभर रही है आंधियां कुछ इस तरह,
सवाल मेरे लबों पर अब जलने लगे है।
मचल रहे है बादल कुछ इस तरह,
जलते सूरज के इरादे अब टलने लगे है।
छलक रहे है सीप से मोत्ती कुछ इस तरह ,
मीन को सागर में वो अब खलने लगे है।
बढ़ रही है तन्हाईयाँ कुछ इस तरह,
कदम मुड़कर तेरी तरफ़ अब चलने लगे है।
उतर रही है मय कुछ इस तरह,
हम ख़ुद-बखुद ही ख़ुद को छलने लगे है॥
– पूनम अग्रवाल ……..
नवदीप
September 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
शीशे का एक महल तुम्हारा,
शीशे का एक महल हमारा.
फिर पत्थर क्यों हाथों में
आओ मिल बैठें , ना घात करें ।
प्रीत भरें बीतें लम्हों को,
नवदीप जलाकर याद करें
– पूनम अग्रवाल
सावन का सूरज
September 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेघों में फंसे सूरज,
तुम हो कहाँ?
सोये से अलसाए से,
रश्मी को समेटे हुए,
तुम हो कहाँ ?
मेरे उजालों से पूछों –
मेरी तपिश से पूंछो-
सूरज हूँ पर सूरज सा
दीखता नहीं तो क्या !
पिंघली सी तपन मेरी
दिखती है तो क्या !
मैं हूँ वही,
मैं हूँ वहीं,
मैं था जहाँ ।
– पूनम अग्रवाल ……
एक नजारा
September 10, 2016 in Other
ट्रेन के डस्टबिन के पास
मैले -कुचेले फटेहाल
वस्त्रों से अपना तन ढकती,
गोद में स्केलेटन सा
बिलखता बच्चा थामे,
डालती है अपना हाथ
डस्टबिन में वो ।
कचरे के बीच
बचे -खुचे खाने से भरी
एक थाली
ले आती है चमक
उसकी आँखों में।
इसपर भी चखती
अपनी उंगली से
बची-खुची दही-रायता।
फ़िर भरती है
बिनी हुई कटोरियों में
वोही झूठन ….
शायद घर पर
बीमार बूढी माँ
के लिए है वो सब ।
रोते बच्चे को
सूखे स्तन से
लगाती है जबरन ।
बटोरकर आशा
ट्रेन से
उतर जाती है
अगले पड़ाव पर ।
वाह रे भारत देश !
भारत की ये भारती !
– पूनम अग्रवाल ……

नारी…..
September 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ईश्वर की अनूठी रचना हूँ मै
हाँ ! नारी हूँ मैं ………
कभी जन्मी कभी अजन्मी हूँ मैं ,
कभी ख़ुशी कभी मातम हूँ मैं .
कभी छाँव कभी धूप हूँ मैं,
कभी एक में अनेक रूप हूँ मैं.
कभी बेटी बन महकती हूँ मैं,
कभी बहन बन चहकती हूँ मैं .
कभी साजन की मीत हूँ मैं ,
कभी मितवा की प्रीत हूँ मैं .
कभी ममता की मूरत हूँ मैं ,
कभी अहिल्या,सीता की सूरत हूँ मैं .
कभी मोम सी कोमल पिंघलती हूँ मैं,
कभी चट्टान सी अडिग रहती हूँ मैं .
कभी अपने ही अश्रु पीती हूँ मैं,
कभी स्वरचित दुनिया में जीती हूँ मैं .
ईश्वर की अनूठी रचना हूँ मै,
हाँ ! नारी हूँ मै …..
– पूनम अग्रवाल …..
मेरे नन्हे फ़रिश्ते
September 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम्हें न देखा न स्पर्श किया,
नाही सुना है अब तक
पर तुम कितने खास बन गए हो,
तुम्हारे आने की जब से हुई है दस्तक !
तुम्हारे आने का इन्तजार है अब
तुम्हे पाने को बेकरार है सब
जुड़ गए है तुमसे अनेको रिश्ते
मेरी दुवाये तुमको मेरे नन्हे फ़रिश्ते!
तुम कभी हिचकी कभी किकिंग से
कराते हो अहसास अपना
तभी तुम लगते हो हकीकत,
नहीं हो कोई सपना !!
जब से पता चला है
एक नवजीवन पल रहा है .
जुड़ गए है तुमसे मेरे इमोशंस
तुमने करा दिया है मेरा भी प्रमोशन !!
– पूनम अग्रवाल