मुझसे अब वो बड़ी तंगदिली से मिलता है

February 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझसे वो अब बड़ी तंगदिली से मिलता है
ऐसे लगता है जैसे किसी अजनबी से मिलता है।।

अब उसके मिलने में वो पहली जैसी बात कहाँ
जमाने को दिखाने को ही शायद गले मिलता है।।

ये तो हम ही है जिसे सब बेवफा समझते है
उसका जिक्र अब भी वफ़ाओं की किताबो में मिलता है।।

उसकी आँखों मे अब भी भरी है नमी प्यार की
फिर भी वो बड़ा मुस्कुरा के मिलता है।।

रिश्ते कब के तल्ख हुए जो थे हमारे दरमियां
फिर भी वो आ सबसे पहले हमी से मिलता है।।

मुझे देख अब भी एक बार जरूर मुस्कुराते है वो
भरी महफ़िल में अब भी हालचाल पूछने आता है वो ।।

तुम्हे छोड़ फिर कभी किसी को अपनाया ही नही
ये बात हर बार हर महफ़िल में मुझे बताता है वो।।

ये अलग बात है अब हमारी मुलाकात नही होती
मेरी रूह मेरी सांसो में अब भी समाता है वो।।

हम भी जानते है ये अब भी प्यार है उन्हें
फिर हम से ही क्यूं दूरियाँ की शर्त लगता है वो।।
@प्रदीप सुमनाक्षर

जलन

February 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

चिरागों की बात मत करो
उनका काम जलना है
जब तन्हा मैं होता हूँ
मेरे साथ जलते है
जब साथ होती हो तुम मेरे
हमें देख ये सारी रात जलते है
बे बात जलते है
@प्रदीप सुमनाक्षर

दिल मे क्या दर्द है

February 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल मे क्या दर्द है बताऊं क्या
बोलो सहारा दोगे दिखाऊँ क्या।।
आंखों में सन्नाटा नही ये आग है
बोलो बुझाओगे करीब आऊं क्या।।
तन्हाइयां बसी है मेरी दुनिया मे
घंटियां बजाओगे लगवाऊं क्या।।
होठों पे नाम नही है किसी का भी
अपना रचाओगे रचवाऊं क्या।।
नजरें खामोश है मेरी वर्षो से
बोलना सिखाओगे मिलाऊँ क्या।।
दिल धड़कता नही अब सीने में
धड़काओगे दिल मे बसाऊं क्या।।
ख़्वाबों में मेरे कोई नही आता
तुम आओगे बिस्तर लगवाऊं क्या।।
मुद्दत से इस गली से कोई नही गुजरा
तुम गुजरोगे अरमान बिछाऊँ क्या।
मौसम एक ही ठहरा हुआ है सदियों से
तुम आओ तो बदल जाये आओगे क्या।।
अकेला हूँ तन्हा हूँ साथी चाहिए
दुल्हन बन कर आओगी बारात लाऊं क्या।।
@प्रदीप सुमनाक्षर

भूल जाना मोहब्बत को मुमकिन नही

December 28, 2017 in गीत

भूल जाना मोहब्वत को मुमकिन नही
भूल जाने की तुम यूँ ही जिद्द न करो
अश्को को तुम छुपा लोगे माना मगर
इन नजरों को कैसे संभालोगे तुम
ये होठो की लाली झूटी सही
इन सांसों को कैसे संभालोगे तुम
ये आएंगी मिलने की रुत फिर वही
सच मे मिलने कभी भी न आओगे तुम
इस दिल की मुझे क्या पता क्या कहूँ
बिन मेरे जिंदगी क्या बितालोगे तुम
इस दुनियां में फिर मिल गए हम कभी
खुद को खुद से ही कैसे छुपा लोगे तुम
के इतना आसां नही ये कोई खेल है
तुम न मानो मगर जन्मों का मेल है
मैं तो जी लूंगा इक तेरे खाब में
तेरी चाह में और तेरी राह में
तेरी आँखों मे आंसू नही है पसंद
ये ही सोच रख लेंगे तेरा भ्रम
मेरी सांसो को अब भी यही काम है
जीना मरना इन्हें बस तेरे नाम है
अपने ख़्वाबों की तुमसे अब क्या कहूँ
तेरे ख़्वाब अब भी मेरे ख़्वाब है
जिंदगी से मुझे कुछ गिला ही नही
इक तेरे प्यार में ये जहाँ जी लीया
मौत आ जाये चाहे कभी भी मगर
मुलाकात का एक सफर दीजिये
मेरे मरने से पहले ओ बेखबर
मौहब्बत का कुछ हक़ अदा कीजिये
चलिए आइये आप फिर से वही
जहां से चले थे संग मिल हम कभी
जिंदगी तो मुझे बड़ी भारी रही
मौत को मेरी आसां बना दीजिये
चले आईये आप फिर से वही…
@प्रदीप सुमनाक्षर

ग़ालिब

December 27, 2017 in शेर-ओ-शायरी

ग़ालिब के जन्मदिन पर सभी शायरों, कवियों को हार्दिक शुभकामनाये…
ग़ालिब ये किस जहान में तू हमे छोड़ गया है
ना सच्चाई है ना अफसाने ना यार रहे ना दीवाने
@प्रदीप सुमनाक्षर

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