by Prafull

नासूर पर मरहम

October 2, 2019 in ग़ज़ल

नासूर पर तो मरहम भी बेअसर से निकले,
करते है याद जिनको वह बेखबर से निकले।

जब कभी मुझे पुराने दिनों की याद आती है,
तब कभी तेरी याद में उस डगर से निकले।

इश्क़ से महरूम हो कर मैखाने जाने को मैं,
दर्द भुलाने के लिए अपने ही दर से निकले।

यादों के पिटारे से निकाले मैंने खुशी के पल,
ज़िन्दगी में वो पल आज अब्तर से निकले।

लोगों में खुशियां बांटता रहता हूँ दिन भर मैं,
अकेले में दिल के ये आँसूं भीतर से निकले।

ग़म बेतहाशा दिया तूने मुझे फिरभी दिल से,
तेरे लिए खुशियों की दुआ अन्दर से निकले।

“पागल” इश्क़ को ज़िन्दगी की जन्नत समझा,
पर ये हालात जहन्नुम से भी बदतर से निकले।

✍🏼”पागल”✍🏼

डगर – रास्ता
महरूम – वंचित
मैखाना – मधुशाला
दर – दहलीज
अब्तर – बिखरा हुआ
बेतहाशा – बिना सोचे समझे
जन्नत – स्वर्ग
जहन्नुम – नरक, नर्क
बदतर – अधिक बुरा, घटिया

by Prafull

तेरी जयकार

September 27, 2019 in ग़ज़ल

बेटी कभी तेरी पायल की झंकार सुनाई देती है,
बेटी कभी तेरी चीखों की पुकार सुनाई देती है।

बेटी ये देश है तुझ जैसी महान वीरांगनाओं का,
बेटी तुझ में वीरांगना सी ललकार सुनाई देती है।

बेटी तू नही रही अब लाचार, बेबस और अबला,
बेटी अब तेरी उन दुश्मन को हुँकार सुनाई देती है।

सड़क पर मासूम को नोचने वाले भेड़िये बहुत है,
बेटी उनको तेरी नागिन सी फुंकार सुनाई देती है।

“पागल” बेटियों के बलिदान का कोई मोल नही,
बेटी देश में हर जगह तेरी जयकार सुनाई देती है।

✍🏼”पागल”✍🏼

by Prafull

तेरी जयकार

September 27, 2019 in ग़ज़ल

बेटी कभी तेरी पायल की झंकार सुनाई देती है,
बेटी कभी तेरी चीखों की पुकार सुनाई देती है।

बेटी ये देश है तुझ जैसी महान वीरांगनाओं का,
बेटी तुझ में वीरांगना सी ललकार सुनाई देती है।

बेटी तू नही रही अब लाचार, बेबस और अबला,
बेटी अब तेरी उन दुश्मन को हुँकार सुनाई देती है।

सड़क पर मासूम को नोचने वाले भेड़िये बहुत है,
बेटी उनको तेरी नागिन सी फुंकार सुनाई देती है।

“पागल” बेटियों के बलिदान का कोई मोल नही,
बेटी देश में हर जगह तेरी जयकार सुनाई देती है।

✍🏼”पागल”✍🏼

by Prafull

अपना इख्तियार

September 27, 2019 in ग़ज़ल

जहाँ में बेटियों को आज भी अपना इख्तियार चाहिए,
गर्व से जीने बेटी आज वीरांगना सी ललकार चाहिए।

आँगन में अपने ही क्यों महफूज नही होती है बेटियाँ,
खुद की हिफाजत खुद करने हाथ में तलवार चाहिए।

पाबंदी-ए-परवाज़ के दौर से अपनी आज़ादी के लिए,
अपने खूबसूरत शब्दों में भी कटाक्ष सी कटार चाहिए।

यहाँ हवसखोर की नज़र से अपना मान सम्मान बचाने,
तेरी ममता भरी आँखों में भी शोलों की बौछार चाहिए।

पुरुष प्रधान समाज में स्वभिमान से जीने के लिए भी,
बेटी अपने सीने में गुस्सा और हौसले की धार चाहिए।

✍🏼”पागल”✍🏼

इख्तियार – अधिकार
महफूज – सुरक्षित
हिफाजत – रक्षा
पाबंदी-ए-परवाज़ – उड़ने पर अंकुश

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