मां

May 13, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक मां ही तो है जो अब भी अपनी लगती है
वरना इस परायी दुनिया में कौन अपना है

जिंदगी

March 14, 2018 in शेर-ओ-शायरी

इक इक दिन करके जिंदगी गुजर गयी
फूल सी जिंदगी कांटो में ढल गयी

आग की तरह

March 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम मुझे अपनी वाणी से हताहत कर सकते हो
अपनी गंदी नजरों से मुझे काट सकते हो
अपनी नफ़रत से मुझे मार सकते हो
लेकिन मैं हर बार ऊठूंगी
आग की तरह

कहीं कोई इक लफ़्ज ही खिल जाये

February 22, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई आफ़ताब तो नहीं जिंदगी में
कहीं कोई दीया ही जल जाये
कोई कविता हम कह नहीं पा रहे है
कहीं कोई इक लफ़्ज ही खिल जाये

जम जाते है क्यों रिश्ते बर्फ़ की तरह

January 8, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोचता हूं कभी कभी
क्यों हो जाते है शुष्क
जम जाते है क्यों रिश्ते
बर्फ़ की तरह

लेकिन तभी लुड़क पडते है
गर्म गर्म आंसू
नर्म रुखसारों पर
पिघल जाती है सारी बर्फ़
रिश्तों की |

रंगीन दुनिया में अब बस लहू नजर आता है

October 1, 2015 in शेर-ओ-शायरी

न चिराग नजर आता है, ना आफ़ताब नजर आता है

भीड है चारों तरफ़ मगर, ना कोई इंसान नजर आता है

रंगो की ख्वाहिश थी इस दिल को दुनिया मे बिखेरने क़ि

क्या करे रंगीन दुनिया में अब बस लहू नजर आता है

……….चाहत होती है!

July 14, 2015 in शेर-ओ-शायरी

पराये जज्बातों को अपना बनाने की चाहत होती है

किसी की आहों में डूब जाने की चाहत होती है

उम्र भर चलते रहे तनहाईयों के साथ हम

उनके साथ चंद कदम चलने की चाहत होती है

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