by Purvesh

Likhta hoon

November 14, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो दिल में उतर जाए ऐसे जज़्बात लिखता हूँ,
रातों की नींदें चुरा ले ऐसे ख्वाब लिखता हूँ।

हकीम नहीं हूँ मैं कोई साहब,
पर दिलो दिमाग पर असर कर जाए ऐसे अलफ़ाज़ लिखता हूँ।

शायर नहीं हूँ और ना ही हूँ कोई कवि
फिर भी कविताएं और शायरियाँ बेशुमार लिखता हूँ।

हूँ मैं एक नादान सा परिंदा
पर आसमान को चीर जाऊं ऐसा हौंसला लिखता हूँ।

नहीं हूँ कोई समंदर मैं फिर भी
दरिया में फसी हुयी कश्ती का किनारा लिखता हूँ।

बंज़र सी जमीन पर
मैं एक गुलिस्तां लिखता हूँ।

जो क़ाबिल ए रहम हो कर भी दुसरो का दर्द समझ उससे अपना हिस्सा बांटे
ऐसे शक्श को मैं इंसान लिखता हूँ।

अँधेरी पड़ी एक कुटिया में
उम्मीद की किरण को रोशनदान लिखता हूँ।

टूट कर जुड़ जाना और जुड़ कर टूट जाना
बस इसी रिश्तें को तो में प्यार लिखता हूँ।

जो दिल में उतर जाए ऐसे जज़्बात लिखता हूँ,
रातों की नींदें चुरा ले ऐसे ख्वाब लिखता हूँ।

by Purvesh

Chalo der hi sahi

November 14, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलो देर से ही सही उसे समझ तो आया था
आधी रात को खामोशी में
खुले आसमान के निचे, चाँद सितारों की मौजूदगी में
मेरे यार ने मुझे गले तो लगाया था।

याद है मुझे सर्दियों की वो रात थी
शिकायतें उसकी मुझसे,
शिकायतें मेरी उससे बेहिसाब थी।
तकल्लुफ थी नज़रो में और कपकपाहट थी लफ्ज़ो में
एक कशिश सी थी उन फिजाओ में।

क़यामत सी थी वो रात
क्यूंकि जज़्बातो के सैलाब में उफान आया था
फिर भी बेइन्तेहाँ खुश था दिल मेरा
क्यूंकि आधी रात को ख़ामोशी में
खुले आसमान के निचे, चाँद सितारों की मौजूदगी में
मेरे यार ने मुझे गले तो लगाया था।

भूल गए थे शिकवे सारे
सारी बुरी यादो को लाशो की तरह हमनें उस रात दफनाया था
बन कर काफिर नफरत के उस दिन
हमनें प्यार का परचम फेहराया था।

बैचैन सी रातें कब चैन ओ करार में तब्दील हुयी पता ही ना चला था
उस कोहरे की चादर कब हवा बन गयी पता ही न चला था
फूल की मुर्झाहट कब खुशबू बन गयी पता ही ना चला था
नासमझिया, गलत फेहमिया प्यार में तब्दील हो गयी और हमें पता ही ना चला था।

चलो देर से ही सही उसे समझ तो आया था
आधी रात को खामोशी में
खुले आसमान के निचे, चाँद सितारों की मौजूदगी में
मेरे यार ने मुझे गले तो लगाया था।

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