पहला प्यार ?

October 13, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो है बेखबर,
शायद न हो उसे खबर!
कैसे हुआ ये इश्क़ मुझे न पता चला,
इन दिनों इश्क़ इतने करीब से गुजरा की लगा बस हो गया।
आते जाते उसे देख खुद में मुस्क़ुरती हूँ।
पाने की चाह किसे है,
बस उसे जी भर देखना चाहती हूँ।
पहले तो जुबा ही बोलती थी,
पर अब तो आंखे भी बोलने लगी है!
ये आँखो की आँख मिचोली है,
यू तो बहुत कुछ बोलती है मुझसे,
पर जब तुम आते हो,
तो पगली झुक सी जाती है।
ये मन भी बड़ा चंचल है,
दौड़ता रहता पल पल है,
दिल भी तेरा, मन भी तेरा,
ये दिमाग करे तो क्या करे बेचारा।
ये दिल क्या हो गया है तुझे?
आजकल कहाँ रहते हो?
यारो के बीच रहते हुए भी खोये हुए जान पड़ते हो!
मुझे नहीं इंतजार तेरे लबो की इजहार की,
राज तो होगा दिल पे जिंदिगी भर तेरे पहले प्यार की!!
नहीं चाहिए वो सात जनमो का साथ।,
बस तुझे देख- देख गुजरते रह जाए ये दिन रात।।।।।

…… सौन्दर्य नीधि…….

ऐ इंसान सम्भल जा

October 11, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक प्रश्न है मुझे,
ये इंसान क्या हो गया है तुझे?
क्यों कर रहा है ऐसे काम,
जिससे हो रहे हो बदनाम।
क्या हक़ है तुझे,
कर रहा इस सृष्टि को नष्ट,
ये इंसान होगा तुझे ही कष्ट।
मैंने तम्हे बनया है श्रेष्ठ,
ये इंसान न कर इतना कलेश।
तुझे क्या लगता है ?? तुझसे चल रहा है यह संसार,
ये मुर्ख इंसान कर थोड़ा विचार।
तूने काट डाले सारे पौधे और पेड़,
क्यों करता जा रहा है अधेड़।
ख़त्म कर डाले तूने झील और नदिया,
कहाँ गए वो सुन्दर चहचहाती चिड़या।
ना रहा स्वच्छ ये पानी, न शुद्ध रही यह हवा,
जन्म से ही खा रहे शिशु दवा।
पैसो के पीछे भाग रहे हो तुम,
भागते भागते हो गए हो ग़ुम।
मैने दिया था तम्हे ये बुद्धि,
अब कर रहे तुम हर जंतु की शुद्धि।
मेरे लिए हर जंतु है सामान,
ये नादान इंसान ना कर इतना अभिमान।
समय है ये नादान सम्भल जा,
नहीं तो अपनी अग्नि में स्वयं ही जल जा।
तुझे होगा एक दिन प्रायाचित करना,
तुझे अपने कर्मो का फल होगा भरना।

…….. सौंदर्य निधि………

माँ

October 11, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम शान थी मेरी ,
तुम मान थी मेरी ,
तुम अभिमान थी मेरी ,
इस दुःख भरी दुनिया में ,खुशियों की पहचान थी मेरी !
जब इस दुनिया में आयी ,पहचान कराया माँ तमने ,
परिवार में बेटो के चाह में पागल ,
पर मैं बेटो से कम नहीं यह स्थान दिलाया तमने !
बचपन से बेटो बेटियों की भेद भाव की सीडी देख बड़ी हुई ,
पर तुम हर सीडी के बिच खड़ी हुई ,
मेरी बेटी बेटो से कम नहीं इस बात पे तुम अड़ी रही !
आज भी याद है माँ स्कूल का वो पहला दिन
कैसे कटे थे हर घड़ी माँ तेरे बिन !
उस कड़कती धूप में , वो बरसती सावन में
माँ तमने मेरा साथ दिया हर उस उत्सव पवन में !
चाँद सितारों से हस्ती खेलती वो गलिया,
कितनी प्यारी थी ना माँ हमारी वो दुनिया !
कैसे गुज़रे वो हसीन से पल ,
आज लगता है बचपन तो था कल !
माँ की बिटिया आज सायानी हो गयी ,
छोड़ अपना घर किसी की बहुरानी हो गयी !
आज समझ आया कैसे कर लेती थी माँ इतना काम ,
घर , आंगन की मालकिन पाती जग का सम्मान !
हर पथ पे साथ दिया माँ तमने मेरा ,
फिर क्यों जा रही छोड़ साथ मेरा !
फिर क्यों आ रही माँ हर बात याद तेरी ,
वो प्यारी मुश्कान तेरी, वो बिटया रानी कहना मेरी!
लगता है उस खुदा की प्यारी हो माँ ,
जिसने इतनी जल्दी बुला लिया तम्हे आसमां !
उस रब से मेरी है ये दुआएँ ,
मेरी माँ की झोली में खुशिया ही सदा बरसाए !
भूल नहीं सकती माँ तेरे करम को जब तक हु ,पूजा करुँगी तेरी चरण को !
ये खुदा एक छोटी सी मेरी है तमन्ना ,
जब ,जब दुनिया में आउ उसकी आखो से ही देखु जमाना !

…………..सौंदर्य निधि ……………………

वो साथ तेरा

October 11, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाँ, नहीं हो तुम साथ मेरे ,
पर क्यों लगता है तुम पास हो मेरे !
हर घड़ी हर पहर जिंदिगी लगाती है अब ज़हर,
तेरी ये नाराज़गी, और कहर लगती है धुप की दोपहर!
तो क्या हुआ तुम ने छोड़ दिया साथ मेरा ,
अब मान लिया मैने नहीं है मेरा सबेरा l
गुज़र गए वो दिन गुज़र गए वो राते,
कितनी प्यारी थी तेरी साथ की बरसाते l
वो बारिश की बूँदे, वो शाम की चाय,
जो लम्हे तेरे साथ बीतये!
वो हाथ में हाथ डाल कर घूमना
वो माथे पे तेरा चूमना!
वो घंटो बातें करना,
दुनिया से मेरे लिए लड़ना,
याद है तम्हे वो रातो में जागना
और छोटी – छोटी बातो पे झगडना,
तो क्या हुआ भूल चुके हो तुम साथ
मेरा,
पर मैं कैसे भूलू वो मेरे लिए प्यार तेरा!
वो छोटे छोटे बातो पे मेरा रूठना,
और तेरा प्यार से मुझे चूमना!
दिल करता था तुम मानते रहो जिंदिगी भर,
और रूठती राहु मैं पल – भर।
तो क्या हुआ जो मैंने रूठना छोड़ दिया,
मैंने तेरी बेवफाई को ख़ुशी से जिया।
तेरे साथ मे बिताए वो पल लगता था अब ना होगी कल,
सही भी था, किसे फ़िक्र थी कल की जब साथ थी मैं
अपने दिल की!
तो क्या हुआ वो दिल ना रहा अब,
मुझे पता ना हुआ, हुआ ये कब!
तेरे उस झूठे प्यार को मैंने तो सच्चा माना,
खुश हु मैं, आज जो हसंता है मुझपे जमाना l
मुझे नहीं शिकायत है तुझसे
ना उस जिंदिगी से,
तो क्या हुआ अब वो जिंदिगी ना रही उस मोड़ पे,
उसने भी छोड़ दिया मेरा साथ तेरा साथ छोड़ते!

सौन्दर्या नीधि

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