तू नासमझ ही रहना …….

April 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू न समझे बस यही दुआ है मेरी,
समझ में अक्सर दिल जला करते हैं।
तू नासमझ है और न ही तू समझना कभी ,
न दिल मेरा लगे तुझसे और , न तू लगाना कभी।
जख्म जो सूख गया है मेरा, न अब तू गलाना उसे ,
दिल जो टूटा है मेरा, तू दिल से न लगाना उसे।
दिल जो लगा तो हंसी रात ये गुजर जाएगी,
और सुबह होते ही तू आसमान में उड़ जाएगी।
समझ के भी नासमझ बनु में, और तू नासमझ ही रहे,
बस इतनी सी दुआ है मेरी
– शिवम् दांगी

मैखाने

November 2, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मुखौटे से भरे हुए मैंखाने हैं….
किस पे भरोसा करें यहां तो अपने ही बेगाने हैं।

मैखाने

September 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मुखौटे से भरे हुए मैंखाने हैं….
किस पे भरोसा करें यहां तो अपने ही बेगाने हैं।

तेरी मुस्कुराहट

September 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ तो खास है उसकी मुस्कुराहट में,
जब भी देखता हूं, दिल मिजाज़ करने लगता है।
लाख समझा लूं मैं इस दिल को मगर कमबख्त,
तुझे देखकर बेवजह ही धड़कने लगता है।
शाम की चादर जैसे ही आसमां ओढ़ लेता है,
तब मेरा दिल भी धड़कने के बहाने ढूंढ लेता है,
न जाने कौन अजनबी है वो,
जब भी उसे देखता हूं, अपना सा लगता है।
कुछ तो खास है उसकी मुस्कुराहट में,
जब भी देखता हूं, दिल मिजाज़ करने लगता है।
तू है तो अजनबी ही, लेकिन फिर भी……
तुझे अजनबी कहने से डर लगता है।
तू और सिर्फ तू ही रहे मेरे पास,
बस यही दुआ मेरा दिल ये करता है।
कुछ तो खास है उसकी मुस्कुराहट में,
जब भी देखता हूं, दिल मिजाज़ करने लगता है।
…. शिवम्

याद

February 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात चांदनी है आज, लेकिन उदास है,
शायद मेरे दिल में किसी की याद का एहसास है।
ये सर्द हवा ना जाने मेरे दिल में क्यूं चुभ रही है,
शायद आज किसी को मेरी याद आ रही है।
मेरी आंखें आज नम है, और ये कमबख्त हवा भी इसका लुफ्त ले रही है।
आंसू तो किसी और के है, लेकिन मेरी आंखें आज क्यूं बह रही हैं।
शायद कोई है जिसको मेरी बहुत याद आ रही है।
इस तन्हा रात में शायद वो भी अकेली होगी,
याद अब मुझे आ रही है, और तड़प वो रही होगी।
इस कमबख्त शराब से ज्यादा नशा तो उसकी याद में है।
तड़प वो रही है और जान मेरी ज रही है,
इस तन्हा रात में शायद किसी को मेरी याद आ रही है।
– शिवम्

चेहरे

July 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

न फसाओ अपनी पलकों को खूबसूरती की रंजिस् में,
के अक्सर खूबसूरत चेहरे बेबफा हुआ करते हैं।

वतन के लिए

July 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

खून का हर एक कतरा ,
वतन के नाम कर देंगे।
वतन की मिटटी का ये जिस्म,
वतन पे कुर्बान कर देंगे।
कोशिशे तुम लाख करो गद्धारों,
हर कोशिश को हम नाकाम कर देंगे।
कोई अंगार न छु पाये इस जमीं को,
बस इतना सा काम कर देंगे।
वतन की मिटटी का ये जिस्म,
वतन पे कुर्बान कर देंगे।
बहुत कर्ज है वतन का हम पर,
मरते दम तक इसका इंतेजाम कर देंगे।
सफ़ेद सी शीतल चादर ओढे वो घांटी,
सेवा में उसकी हम जी जान लगा देंगे।
एक कतरा भी न हम देंगे इस मिट्टी का,
क़त्ल तुम्हारा हम सरेआम कर देंगे।
वतन की मिट्टी का ये जिस्म,
वतन पे कुर्बान कर देंगे।
खून का हर एक कतरा हम,
वतन के नाम कर देंगे।
– शिवम् दांगी

वो प्यारे सपने

July 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ तो जरूर होगा उन प्यारी सी आँखों में,
सपने तो उसके भी होंगे उड़ने के आसमानों में।
सहमी तो वो भी रहती होगी उस अनजानी भीड़ में,
घर से दूर उस बिन पहचानी सी पीर में।
अच्छे कपडे और खाने का शौक उसे भी तो होगा,
पर पैसों की मार ने शौकों को तोडा होगा।
उन अनजाने लोगों में अपनों की याद तो आती होगी,
अपनी बेबसी देख आंखों में नमी तो आती होगी।
स्कूल का बस्ता और किताबो का शौक भी तो होगा उसे,
मन के एक कोने में आशाओं का दीप सताता तो होगा उसे।
डर सी जाती है वो अपने हालातों को यूं देखकर,
जो उम्मीदों को रख देते हैं झंझोड़ कर।
आखिर वो क्या करे उन उम्मीदों का,
दिल में समेटे हुए उन सपनो का।
आखिर वो कहाँ जाये इस निर्दयी दुनिया में,
कौन है उसका इस घनी अँधेरी बगिया में।
शिवम् दांगी

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