काश!

April 25, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितना अच्छा होता कि
कोई वक़्त को टटोल सकता
झाँक सकता
उसके पिछले हिस्सों में
किस्सों में
कोई कमी ना रहती
सदा के लिए
शायद
अगर ऐसा हो सकता
या यूं कहो
कि बिखरी हुई तस्वीर को
फिर से
जोड़ पाना
मुमकिन हो सकता था
काश
हकीकत जैसी होती है
उसे ज्यों का त्यों
हरेक बयां कर पाता
उसे महसूस कर पाता
कम से कम
अपना पाता
क्यू्ं कई बार
ना चाहते हुए भी
वक़्त से इतना अागे आ जाते हैं
कि वापस जाना
मुमकिन नहीं होता
और अगर कोई
उसी राह पर चल रहा हो
तो क्यूं
उसे रोक नहीं पाते
मानो कि
सदियों से चली आ रही
परंपरा की बेड़ियां
हाथों और जुबां को जकड़े है
क्यूं हर बड़ी खुशी में
उस छोटी सी
सिकन का आना जरूरी है
गर जरूरी नहीं
तो क्यूं आती है वो
बार बार

किसी-रोज़-सब-साथ-होंगे

December 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी रोज़ सब साथ होंगे
मिलेंगे, बैठेंगे, जुमले फरमाएंगे

एक कप चाय के साथ
फिर भिड़ जायेंगे

वही कल जो बीत गया
फिर से दोहराएंगे

वो बातें जो अधूरी रह गयी
उन्हें पूरा करने आएंगे

वो शाम जो कभी ढल गयी थी ..
वो शाम फिर से लाएंगे

वो वक़्त
जो उस वक़्त रुका नहीं था
उस वक़्त को ठहराएंगे

अपनी अपनी किस्सो की
कहानी के किरदार
फिर से निभाएंगे

वो आंख जो नम-सी थी
अब..
हल्का सा रो जायेंगे

वो जुबां जो कभी रूकती न थी
आज कुछ बोल नहीं रही ..
उस उम्र का वो लड़कपन
फिर से जी जायेंगे

कोई रोया हो या कोई किसी के दर्द में झुलसा हो
खिल्ली सबकी उड़ाएंगे

वो मन जो कभी बच्चा था
फिर उस पल में लौट आएंगे

उस चुप रहने वाले आशिक़ को फिर से थोड़ा सतायेंगे

उन बीती यादों को लेकर
नई याद बनाएंगे

अपनी कट रही ज़िन्दगी का
हाल-ए-बयां सुनाएंगे

जो प्यार अधूरा रह गया
उस पर
ज़रा मुस्करायेंगे

वो यारी जो सदा के लिए रह गयी उस पर नाज़ जताएंगे

वो दूरी जो बनाई है
उसे उसी पल मिटायेंगे

किसी शाम उस रुख़सत को
फिर से यूँ दोहराएंगे

किसी रोज़ जब साथ होंगे
तब वो पुरानी ज़िन्दगी बिताएंगे

– Vijay Maloo

किसी रोज़ सब साथ होंगे


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आसान नहीं है उड़ना कई मर्तबा गिरना होगा

November 20, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

आसान नहीं है उड़ना कई मर्तबा गिरना होगा


 

वो जो ठहरे हैं हवा में

कभी घसीटे गए होंगे जमीं की धूल में,

गर चाह है उस जिंदगी की

जिया जिसे तु सपनो में..

ना फिक्र कर

तु है उस दिशा में

जहाँ कुछ खा़स तेरे संग

होने को है..

आँधीयां तो आएगी तेरी

जलती लौ को थामने..

ना घबरा इनसे तु कभी

तु आज में कल को संजो,

कुछ पाना है तो कर गुज़र

हो सकता है कई दफा

टुटे तु हर राह पर

आसान नहीं हैं जीना यूं कई मर्तबा मरना होगा !

जो ठान ली तो कर दिखा

मानो जैसे,

मन बसा हो उस मंजि़ल में

गर ना हुआ तो फिर सही ..

गर हो गया तो कहना क्या !!

https://myreadss.wordpress.com

आसान नहीं है उड़ना कई मर्तबा गिरना होगा

November 20, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

आसान नहीं है उड़ना कई मर्तबा गिरना होगा

वो जो ठहरे हैं हवा में

कभी घसीटे गए होंगे जमीं की धूल में,

गर चाह है उस जिंदगी की

जिया जिसे तु सपनो में..

ना फिक्र कर

तु है उस दिशा में

जहाँ कुछ खा़स तेरे संग

होने को है..

आँधीयां तो आएगी तेरी

जलती लौ को थामने..

ना घबरा इनसे तु कभी

तु आज में कल को संजो,

कुछ पाना है तो कर गुज़र

हो सकता है कई दफा

टुटे तु हर राह पर

आसान नहीं हैं जीना यूं कई मर्तबा मरना होगा !

जो ठान ली तो कर दिखा

मानो जैसे,

मन बसा हो उस मंजि़ल में

गर ना हुआ तो फिर सही ..

गर हो गया तो कहना क्या !!

 

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याद

October 16, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

था बे हरकत ऐसे मैं
कि ज़िंदा लाश हो जैसे ,
तेरी उन यादों के ख़ब्त से
जीना सीख आया हूँ

-vijay

यार अनमुल्ले

September 27, 2016 in शेर-ओ-शायरी

भागता है

आज भी मन

उस सुहानी राह पर,

होती ठिठौली और हँसी की ..

गूँज

जो हर बात पर,

मिल बैठ कर..

जब यार खोले

पोल जो हर बात की ..

जुम्ले है सारे याद ..

जो चल रहे थे

रात भर ||

ख़्याल मन का कहने दे

September 20, 2016 in शेर-ओ-शायरी

ठहरा दे

इस वक़्त को

ये वक़्त गुज़र जाएगा

कुछ बात अब भी है हलक तक

वो एहसास बयां ..करने तो दे |

गफलत हुए अरसा हुआ

पर मलाल उसका..

ज़िंदा है

गर ना करे तु बात..

मुलाकात निगाहों को.. करने दे |

कहा ना मैंने कुछ…

चुप तुम भी रहे,

ख़ामोशी ये नज़र-ए-प्यार की

ज़रा..

कुछ पल  तो रहने दे |

हुई जब गुफ़्तगू दरमियान

गलत फहमी का सागर था,

समझ ना पाए तुम हमको

इस घाव को ..भरने तो दे |

कुछ कह सका.. कुछ रह गया

कुछ मन ही मन में बह गया..

जो रह गया ..जो बाक़ी है.. वो…

ख़्याल मन का कहने दे |

माना कि नादां हम भी थे

पर गलती दोनों से हुई..

अब छोड़ पुरानी बातों को

इक नया किस्सा ..बनने तो दे ||

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