आज मुझे आलिंगन देकर मुक्त करो हर भार से

May 12, 2016 in गीत

आज मुझे आलिंगन देकर मुक्त करो हर भार से…
प्रियतम मेरा हाथ पकड़ कर ले चल इस मझधार से…
नयन मौन हैं किन्तु प्रणय की प्यास संजोये बैठे हैं..
भाव हृदय के स्मृतियों में अब तक खोये बैठे हैं…
तुमसे तृष्णा पाई है तृप्ति तुमसे अभिलाषित है..
विगत दिवस आकुल श्वासों में..खुद को बोये बैठे हैं..
निरीह हूँ लेकिन तुमसे तुमको माँग रहा अधिकार से..
प्रियतम मेरा हाथ पकड़ कर ले चल इस मझधार से..
मेरे स्वप्न तुम्हारी हठ की हठता पर नतमस्तक हैं…
कुछ प्रश्न प्रतीक्षक बने खड़े जिनके उत्तर आवश्यक हैं..
“मन” सोच रहा निज जीवन का सारांश तुम्हें ही कह डालूँ..
ये सत्य है जग को मालूम है, पर उत्तम कहो कहाँ तक है..
मेरे संशय को दो विराम , तुम अर्थपूर्ण उद्‌गार से..
प्रियतम मेरा हाथ पकड़ कर ले चल इस मझधार से..
आयाम छुये थे कभी प्रेम ने निच्छलता ,सम्मान के..
भेंट चढ गये सभी हौसले , झूठे निष्ठुर अभिमान के.
अब कौन दलीलों से व्याकुल उर की इच्छायें बहलाऊँ..
मेरी आस का दीपक लड़ते-लड़ते बस हार गया तूफान से..
ये अन्तिम जीवन सन्ध्या थी..अब चलता हूँ तेरे द्वार से..
काश तू मेरा हाथ पकड़ मुझे ले जाता मझधार से..
मुझे ले जाता मझधार से…

अब तुम्हारे बिना जी ना पाऊंगा मैं

May 10, 2016 in गीत

बेसबब प्रश्न हैं शब्द सब मौन हैं

पूछते हैं कि हम आपके कौन हैं

मैं युधिष्ठिर सा  सच झूठ भी बोल दूँ

वो कहां शष्त्र त्यागे हुऐ द्रोण हैं

जानते हैं वो सब मानते कुछ नहीं

अब कहाॅ तक भरोसा दिलाऊगा मैं

प्यार तुम सार तुम मेरा आधार तुम

अब तुम्हारे बिना जी ना पाऊंगा मैं

 

मन ये मंदिर बने देवता तुम बनो

सारी इच्छाओं का इक पता तुम बनो

जन्म जन्मों का कर लूँ सफर हस के मैं

तुम ही मंजिल बनो रास्ता तुम बनो

बिन किसी डोर के बंध गये हम औ तुम

रिश्ता मर कर भी हमदम निभाऊंगा मैं

प्यार तुम सार तुम मेरा आधार तुम

अब तुम्हारे बिना जी ना पाऊंगा मैं

 

एक सुर श्वांस स्वर एक बन्धन बनें

एक दूजे के हम प्राण जीवन बनें

मैं सजा दूँ सितारे सभी मांग में

तुम सजो जब नयन मेरे दर्पण बनें

तुम अमर दीपमाला जो बन जाओ तो

बिन दियों के दिवाली मनालूॅगा मैं

प्यार तुम सार तुम मेरा आधार तुम

अब तुम्हारे बिना जी ना पाऊंगा मैं

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