आज़ाद हिंद
सम्पूर्ण ब्रहमण्ड भीतर विराजत !
अनेक खंड , चंद्रमा तरेगन !!
सूर्य व अनेक उपागम् , !
किंतु मुख्य नॅव खण्डो !!
मे पृथ्वी भूखंड !
अति मुख्य रही सदा !!
यहा पर , सप्त द्वीप !
जॅहा पर , उन समस्त !!
द्वीप मे प्रमुख रहा !
भारत का द्वीप सदा !!
यहाँ पर , भारत को !
नमाकन कर सोने की !!
चिड़िया ,हिंदोस्ताँ व भारत !
की उपाधि दे डाली !!
भारत मेरा प्रतिभाशाली रहा !
पृथ्वी के आरंभ से !!
ही तो कमी यहाँ !
किस बात की रही !!
महा कवियो मे महाकवी !
कालिदास , माहाऋषि मे मःआॠषी !!
बाल्मिकी आदि समान महारत्न !
पनपे , रचे जिन्होने महाकवय !!
सहित रामायण सम्मुख भाती !
– भाती के ज्ञानवान रत्न !!
तब पर भी कमी !
कदाचित् कहाँ थी , सोने !!
की चिड़िया के पर !
रोंद कर लूट रहा !!
था ,उसे कोई न कोई !
मानो बन के हमराही !!
जिस भारत ने संसार !
को शून्य व दशमलव !!
दे कर गिनती सिखाई !
आर्यभट्ट -. चाणक्य की निंदा !!
नाही , ओषधि मे महात्मा !
बुद्ध बने जगत के !!
अनुरागी ,योग व ओषधि !
से करत चले गये !!
दूर समस्त बुराई , आज !
इस भारत की दुर्गति !!
देखो के प्रत्येक रास्ट्र !
अभी भी लूटना चाहता !!
हो इसे भाई , वह !
समाए क्या कम था !!
जब जो भक्ति काल !
से आदि काल से !!
लेकर आधुनिक काल तलाक़ !
डच-डेनिश , मुगल-हीमायू !!
अकबर – बाबर ने लूटा !
से .क्षतिग्रस्त करा भारत !!
के प्रत्येक राज्य के !
कन- कन को , जैसे !!
हो बचा कही कोई !
अंदेशा नहीं तब कर !!
भी ,पनपे भारत के !
भाषीय स्तर पर धुरन्दर !!
महाकवी तुलसीदास ,सूरदास व !
कबीरदास तो सभी अब !!
भी ईर्षा क्या कम !
थी जो , आगमन अंग्रेज़ो !!
का हो गया, सोना !
उगलने वाली माटी को !!
अफ़सोस तब पर भी !
न हुआ , ब्रहमण्ड -क्षत्रिय !!
शुद्रा व वैश्य क्या !
बैर रखते जब चोट !!
पड़ती थी खानी अंग्रेज़ो !
की , गुलामी के दिवस !!
मे क्या चोट थी !
वह कुछ नहीं दर्द !!
तो कायम रही ह्रदाए !
के भीतर , नस्तर समान !!
चूबा रहे थे सर्यंत्र !
स्वयं का मानो यह !!
रास्ट्र हो,उनका ससुराल !
बहन-बेटी की इज़्ज़त !!
से खेल, भाइयो के !
खून का कर रहे !!
थे व्यापार , वह तो !
क्रांतिवीर थे जिन्होने गरमदल !!
व नरमदल रूप मे !
कई सारे अथक प्रयास !!
करे , राष्ट्र की आज़ादी !
हेतु कई वीर मृत्यु !!
के घाट जले , फाँसी !
चड़े अजर-अमर मंगल पांडे !!
राजगुरू -सुखदेव व भग्त सिह !
न जाने आज कहाँ !!
गये जो बच गये !
वे तो मानो आज !!
भी राजनेताओ के रूप !
मे दीमक बन अंग्रेज़ो !!
के शासन का पालन !
ही करते जा रहे !!
है , भारतीय सभ्यता को !
पश्चिमी सभ्यता ने लूटा !!
अब नग्नता उमड़ रही !
यहाँ पर है , पन्द्रह !!
अगस्त १९४७ की पहचान !
करू तो करू किससे !!
जब आज भी राष्ट्र !
स्वयं के जातिवाद के !!
गुलामी से जूज रहा है !
अंबेडकर जी के क़ानून !!
पस्त होते दिख रहे !
हिंदू मुस्लिम सिख व ! !
ईसाई समस्त कोई दुर्जन !
बन आपस मे लड़ !!
रहा , आज भी खून !
ख़राबा , बलात्कार व नारी !!
पर अत्याचार है , बंधुवा !
मज़दूरी मे बँधा वह !!
बालक मजदूर बेबस व !
लाचार है, क्या खूब !!
पदवी है , मेरे राष्ट्र !
” आज़ाद हिंद ” की के !!
ये आज़ाद हो कर !
भी पूर्ण रूप से लाचार !!
है , अपाहिज व बीमार !
है , ग़रीबो का शोषण !!
थाना कचहरी मे मानो !
अमीरो की सरकार है !!
योग्य व्यक्ति लगता ठेला !
अग्यानी व्यक्ति करता देश !!
का व्यापार है , कोन !
कहता की आज १५ !!
अगस्त २०१६ तलक मे भी !
हमारा हिंदोस्ताँ आज़ाद है !!
यह तो बेबसी मे !
डूबता जाता किंतु लगता !!
किसी ने मुख्य मंत्री रूप !
मे इसे संभालना चाहा !!
तो भी उस दीलेर !
पर लगे कई इल्ज़ाम !!
है , कुरीतीयो मे डूबा !
विष को जहन मे !!
रख जूबा से उडेलता !
ख़ाता रास्ट्र की व !!
अलकता अन्य की वह !
दुराचार व पाखंड मृत्युदंड !!
के काबिल भया ,अब्दुल !
रहीम , यह समस्त अंश !!
” आज़ाद हिंद ” के रहे !!
न जाने क्यो आज !!
भी ह्रदय ,भारत के !
आज़ाद होने पर भी !!
रूदन कर रहा !!!
bahut khoob …
जय हिंद
बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुति