एक संवाद तिरंगे के साथ।
जब घर का परायों का संगी हुआ।
क्रोधित तेरा शीश नारंगी हुआ।
ये नारंगी नासमझी करवा न दे।
गद्दारों की गर्दने कटवा न दे।।
साँझ को अम्बर जब श्वेत हुआ।
देख लेहराते लंगड़ा उत्साहित हुआ।।
श्वेताम्बर गुस्ताखी करवा न दे।
मेरे हाथों ये तलवारें चलवा न दे।।
तल पे हरियाली यूँ बिखरी पड़ी।
खस्ता खंडहरों में इमारत गड़ी।।
ये हरियाली मनमानी करवा न दे।
गुलमटों को अपने में गड़वा न दे।।
तेरा लहराना मुसलसल कमाल ही है।
तेरी भक्ति करूँ क्यूँ?निरुत्तर सवाल ही है।।
तेरी लहरें मेरे रक्त को लहरा न दें।
कहीं हर तराने में तुझे हम लहरा न दें।।
Nice
Patriotic feelings!!!!
Behtareen …
Good
Jay hind
जय हिंद
👌👌
बहुत ही बेहतरीन