क्या होगा. . . . . .❤
क्या होगा. . . . . .❤
कभी सोचा है, कि जब तुझको, मेरी याद आई तो क्या होगा;
ना हम होंगे, ना तुम होगे, और ना तन्हाई तो क्या होगा !
कि आकर लफ्ज़ होठों तक, पलट जायेंगे मुमकिन है;
किसी से कह दिया, और हो गयी, रुस्वाई तो क्या होगा!
करोगे जज़्ब कैसे तुम, जो कहना ना हुआ मुमकिन;
ख़ुशी की महफ़िलों में आँख, भर आई तो क्या होगा!
ये माना जीतने का हुनर है, तुम्हारे पास मोहब्बत में;
पर सोंचते हैं, गर किसी से, शिकश्त पायी तो क्या होगा!
रखो बेशक हमारी खामियों का, गुनाहों-सा तुम हिसाब;
कभी सोंचा है, जब तुम्हारी, ज़फाएँ सामने आयीं तो क्या होगा!!. . . . . #अक्स
enjoyed reading your poem.. 🙂
Thank u mohit ji……(y) 🙂
Pleasure to read such spontaneous creation …
thaaaaaaaanq uuuuu Vikas ji…for ur valuable feedback 🙂
जब निग़ाह , निग़ाह पर आकर ठहरेगी …..
और स्वप्न में , तुम ही तुम दिए दिखाई , तो क्या होगा……..
v. nice pankaj ji……n thanks a lot
nice
thank u
nice bro 🙂
thank u so much Ajay bhai…..for ur valuable appreciation !!
Good
बहुत खूब