जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)
वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं
लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं
भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये
माता बहन बेटियों के, इज्ज़त धन सम्मान लुटे
बिक गये धरम लुट गये करम, सब ओर गुलामी बू छायी
प्राचीन सभ्यता संस्कृति गौरव, भूल गये हम सच्चाई
ब्राह्मण कहता हम सर्वशेष्ट, छत्रिय कहता हम शासक है
बनिया कहता हम धन कुबेर, हरिजन अछूत बस सेवक है
मंदिर मस्जिद स्कूल सभी, जाना हरिजन को वर्जित था
ईश्वर था उच्च जातियों का, सब पुण्य उन्हीं को हासिल था
बेकार अगर हो जाय अंग, मानव ताकत घट जाती है
सब लोग दबा सकते उसको, आबरू मान छिन जाती है
भारतजन का एक बड़ा भाग, हमने ही निष्क्रिय कर डाला
शक्तिहीन बना इनको हमने, कमजोर देश को कर डाला
हर वर्ग धर्म में फूट डाल, दंगे फ़साद करवाते थे
राजा राजा जनता राजा, हिन्दू मुस्लिम लड़वाते थे
आपस में जब फूट पड़ी, अंग्रेजों कि बन आई थी
आज़ादी कैसे मिल सकती, आपस में ठनी लड़ाई थी
कुछ रजवाड़े कुछ नेतागड़, गोरों के सिपहसलार बने
कुछ राय बहादुर सर की ताज, बने गोरों के सच्चे बन्दे
अन्न, कपास जूट लोहा, भर भर जहाज़ ले जाते थे
हर साल नया लंदन बनता, हर साल स्वर्ग बन जाते थे
कंगाल हो गया देव भूमि, लाखों भूखे नंगे फिरते
हर साल पड़े बंगला अकाल, हर साल हज़ारों जरे मरे
यह देश हमारा अपना था, सब चीज़ यहाँ कि उनकी थी
अंग्रेज़ हमारे स्वामी थे, बेड़ियाँ पैर में जकड़ी थी
कानून न्याय सब उनका था, हम बने मूक दर्शक केवल
लाखों बिस्मिल आज़ाद मरे, हम मौन रो रहे थे केवल
देवभूमि उद्धार हेतु, गांधी का अवतार हुआ
भारत जननी स्वर्ण भूमि में, नया रक्त संचार हुआ
सत्य अहिंसा निर्भयता की, बचपन में शिक्षा पाई
मानव सेवा सर्वशेष्ठ धर्म, माता ने यही सिखाई थी
इंग्लैंड गये शिक्षा लेने, आज़ाद मुल्क की हवा मिली
आज़ादी है अनमोल रत्न, जौहरी हृदय को भनक लगी
भाषण लिखने पढ़ने की, गोरे केवल अधिकारी थे
पेशा चुनने धन रखने की, केवल वे ही अधिकारी थे
काले हिन्दुस्तानी कुत्ते, दोनों ही एक बराबर थे
होटल गिरजा में जाने से, भारतवासी वर्जित थे
गोरे काले का भेद देखकर, गाँधी का दिल भर आया
आज़ादी है एकमात्र लक्ष्य, दिल में यह बात उभर आया
भारत आकर देख दुर्दशा देश की गाँधी रोया
कैसे टूटे लौह बेड़ियाँ, इस विचार में खोया
सत्य अहिंसा जन क्रांति का, मार्ग श्रेष्ठ व उत्तम है
मात्रभूमि की मुक्ति अर्थ, बस मार्ग यही सर्वोत्तम है
सत्य अहिंसा शस्त्र ग्रहण कर, आज़ादी रण में कूद पड़ा
आज़ादी का शंख फूंककर, भारत छोड़ो आवाज़ दिया
लार्ड ह्यूम की कांग्रेस, निर्जीव शक्ति से हीन बनी
कर्मठ नीतिज्ञ नेता अभाववश, जन जन मन से दूर हटी
गाँधी का नेतृत्व मिला तो, प्राण शक्ति संचार हुआ
एक नयी शक्ति एक नया जोश, ले कांग्रेस तैयार हुआ
तैयार हुआ संघर्ष हेतु, अन्याय गुलामी के विरुद्ध
जन जन में जागृति लाने को, चल पड़े कांग्रेसी विश्रुब्ध
झंडा कांग्रेस नीचे, हर वर्ग किस्म के लोग जुटे
जंजीर गुलामी तोड़ेंगे, लाखों हज़ार कंठ स्वर फूटे
नेताजी नेहरु पटेल, राजेन्द्र रत्न अब्दुल कलाम
अम्बेडकर राजा जयप्रकाश, चल पड़े तिरंगा हाथ थाम
धनवान पुत्र वनिता छोड़े, सब मोह नेह से मुँह मोड़े
आज़ादी की आग जलाने, चल पड़े फकीरी वेश धरे
एक नयी चेतना नयी लहर, जन जन में भर आयी थी
उठ खड़ा हुआ सम्पूर्ण देश, आज़ादी की लिप्सा जागी
चल पड़ा देश गाँधी पीछे, सब छोड़ मोह माया धन जन
भर गये जेल अंग्रेजों के, अभिमान मान उनके टूटे
गाँधी की आवाज़ राह पर, जत्थे के जत्थे निकल पड़े
निज माथ हथेली पर रक्खे, शत शत सहस्त्र इन्सान चले
चल पड़े छोड़ रोते बच्चे, कोई सुहाग की रात तजे
बूढ़े माँ बाप छोड़ कोई, कोई धन राज्य मान छोड़े
माता बहनों कि फौज़ देख, चल पड़ी पोंछ सिन्दूर माथ
मातृभूमि को मुक्त कराने, चल पड़ी नारियों की बरात
निकल पड़े नवयुवक छोड़, कॉलेज पढ़ाई सब अपनी
आज़ादी की आग जलाने, चल पड़े नवयुवक नवयुवती
छोड़ वकालत कोर्ट चला, कानून पंडितों का जत्था
भूखे नंगे श्रमिकों का, निकल पड़ा पैदल जत्था
छोड़ किसानी चले भूमिधर, व्यापारी व्यापार छोड़ कर
आजादी का दीप जलाने, चले सिपाही कफ़न बांध कर
मंदिर मस्जिद गुरुदारे, बन गये सभा स्थल सारे
आज़ादी की प्रतिमा को, हर रोज़ पूजते जन सारे
हर रोज़ हजारों आते थे, संदेश सुनाये जाते थे
हर गाँव गली में जाकर के, सब लोगों तक पहुँचाते थे
देश में निर्मित अपनी चीज़े ही, भारतवासी अपनाओ
अगर रोकनी ब्रिटिश लूट है, भाई भाव स्वदेशी लाओ
बहिष्कार कर ब्रिटिश माल का, मोह विदेशी छोड़ो
ब्रिटिश माल की होली फूंको, कानून ब्रिटिश की तोड़ो
माल विदेशी की होली, हर गाँव गली में खूब जली
ब्रिटिश किताबें कपड़े लत्ते, गोरों की सम्मान जली
बहिष्कार कर ब्रिटिश माल का, लोग स्वदेशी अपनाये
हर घर में चरखा चलता था, घर घर वस्त्र बनाते थे
जूट कपास चाय कहवा, ब्रिटिश मिलों कि जननी थी
अंग्रेज़ व्यापारी को हमने, इनकार किया इनको देनी
ब्रिटिश मिलें हो चलीं बंद, लंदन में हाहाकार मचा
चरखा करघा पर रोक लगे, लंदन में आवाज़ उठा
ब्रिटिश मिलें हो जाय बंद, यह उनको नहीं गँवारा था
खो जाय हाथ से पारसमणी, हरगिज़ यह नहीं गंवारा था
भारत जन के इन कामों से, गोरे शासक थे घबराये
सदियों से दबी जातियों का, उठना कैसे उनको भाये
हर रोज़ हजारों चले जेल, हर रोज़ गोलियाँ चलती थी
हर रोज़ सैकड़ों विधवा हों, हर रोज़ चितायें जलती थीं
जलियाना का बाग़ देख,कुर्बान सैंकड़ों हुए जहाँ
जनरल डायर की गोली से, सिन्दूर हजारों मिटे जहाँ
खून का हर कतरा कतरा, हर चोट जिस्म पर पड़ा हुआ
गोरी शासन कि नींव ईट, हर रोज़ हिला खोखला करता
ज्यों ज्यों अत्याचार बढ़े, चिनगारी जोर पकड़ती थी
लाखों शहीद कुर्बान हुए, पर आग लगी न बुझती थी
एक ओर खड़े थे शांति वीर, एक ओर क्रांति मतवाले थे
एक ओर अहिंसा के सेवक, एक ओर खून के प्यासे थे
आज़ाद भगत सिंह बिस्मिल ने, एक लहर क्रांति की फैलायी
आजादी मस्तक माँग रही, आवाज़ देश भर में छायी
बम फेंक अंग्रेजी संसद में, इन्क़लाब भगत सिंह चिल्लाया
सोती जनता की नींद तोड़, गोरी शासन को झकझोरा
पंजाब के कोने कोने में, इक आग लाजपत ने फूंका
आजादी की समर भूमि में, वह वीर निडर होकर जूझा
बलिदान हो गया देश अर्थ, बर्बर शासक के हाथों से
यह खून व्यर्थ नहीं जायेगा, आवाज़ उठी हर बूंदों से
भगत सिंह सुखदेव गुरु, हँसते फांसी पर झूल गये
जय जननी जय कर्मभूमि, जपते आज़ाद कुर्बान हुए
देश पर मरने वालों का, बलिदान रंग लेकर आया
अन्यायी शासन के विरुद्ध, जेहाद देश भर में छाया
आज़ादी के रंग मंच पर, गाँधी सुभाष दो नायक थे
सत्य अहिंसा जन क्रांति के, दोनों की सच्चे साधक थे
लाहौर कांग्रेस सम्मेलन से, दोनों नेता दो राह चले
सुभाष क्रांति की राह पकड़, कांग्रेस से मुहँ मोड़े
ब्रिटिश राज की गिद्ध दृष्टि से, कब तक सुभाष बच सकते थे
शासन की खोजी आखों से, कब तक सुभाष छिप सकते थे
पड़ गयी बेड़ियाँ हाथों में, निज घर में बंदी बन बैठे
ब्रिटिश फौज़ के घेरे में, सन्यासी का रूप धरे
वह शेर नहीं था जंगल का, जो लौह सींखचों में रहता
वह तो ऐसा अंगारा था, जो नीचे राख नहीं दबता
ब्रिटिश कैद से निकल पड़े, सब तोड़ गुलामी के बंधन
आज़ादी के हवन कुंड में, चल पड़े जलाने अपना तन
सिंगापुर रंगून पहुँच, “आज़ाद हिन्द” का गठन किया
खून के बदले आज़ादी, जन जन को आवाज़ दिया
बन गये सिपाही लाखों जन, लाखों ने धन का दान किया
मातृभूमि के चरणों में, लाखों ने जीवनदान दिया
सिंगापुर, इटली जापान गये, हिन्दुस्तानी मित्रों से मिलने
नापाक ब्रिटिश शासन विरुद्ध, हथियार समर्थन धन लेने
हथियार समर्थन धन लेकर, सेना का विस्तार किया
ब्रिटिश दैत्य से भिड़ने को, “आज़ाद हिन्द” तैयार हुआ
हे वीर पुत्र भारत माँ के, आज़ादी तुम्हें पुकार रही है
हिम आलय है बाट देखता, दिल्ली तुम्हें निहार रही है
गूंज उठा जय हिन्द हिन्द, सर कफ़न बाँध फौजी निकले
ब्रिटिश हुकुमत थर्रायी, जब आज़ाद हिन्द पलटन निकले
अंडमान निकोबार द्वीप, “काला पानी” कहलाते थे
आज़ादी के दीवानों के, बंदीगृह समझे जाते थे
विहँस पड़ी उस समय भूमि, जब झंडा सुभाष ने फ़हराया
रो पड़ा सिंह समकक्ष देख, बंदी वीरों की कृष काया
ब्रिटिश दासता के प्रतीक, उन द्वीपों के नव नाम दिये
आज़ादी पा जो हर्षित थे, ‘स्वराज्य’ ‘शहीद’ वे कहलाये
नागालैंड तरफ बढ़ गया वीर, सदियों से दास बना जो था
आज़ाद हिन्द गोरी फौजों का, वह प्रांत बना रणस्थल था
ललकार उठा वह मस्त सिंह, वीरों जय शीश मांगती है
देखो आज़ादी प्यासी है, वह खून खून चिल्लाती है
बढ़ गए वीर तन मोह छोड़, छोड़े प्रिय जन घर माया
कुर्बान हुये जननी खातिर, संपूर्ण जगत में यश छाया
वह महायुद्ध की बेला थी, हो गया पराजित जर्मन था
इटली जापान मर चुके थे, विजयी इंग्लैंड मुदित मन था
हाथ दाहिना टूट गया, जब हार गये जापानी
अभाग्य देश का सचमुच था, जय ‘आज़ाद हिन्द’ को मिली नहीं
जन जन के नेता गाँधी यदि, असहयोग क्रांति को फैलाते
वीरवर सुभाष के युद्ध यज्ञ में, थोड़ा भी खून गिरा पाते
उस समय अन्य स्थिति होती, आज़ाद देश हो सकता था
सदियों से बना गुलाम देश, आज़ाद हवा ले सकता था
हार गया आज़ाद हिन्द, भाग्य देश अपना हारा
सो गया देश का पारसमणि , जो बना देश का प्यारा था
बुझ गयी विश्वयुद्ध कि लपटें, नव निर्माणों की बेला थी
पर भारत में सत्य अहिंसा, क्रांति युद्ध की बेला थी
इस नयी क्रांति की ज्वाला को, रे कौन बुझा सकता था
सदियों से सोयी जाति जगी, रे कौन कुचल सकता था
थका हुआ बूढा ब्रिटेन, कमजोर शक्ति से हीन बना
अमरीका कम्युनिस्ट रूस, दो नयी शक्ति से दीन बना
गोलमेज़ कांफ्रेंस चला, आज़ादी की बात चली
दिन गुजरे हफ्तों गुजरे, पश्चात देश की भाग्य जगी
ब्रिटेन उस समय शासित था, लेबर के लार्ड ऐटली से
कुछ सहानुभूति जो रखता था, गुलाम देश व दलितों से
आज़ादी से वंचित रखना, ब्रिटेन के वश की बात न थी
पर हिन्दू मुस्लिम भाई भाई, में नफरत की बीजें बोयी
जिन्ना साहब मुस्लिम लीगी, आज़ादी के इक नायक थे
अंग्रेजी शासन के खिलाफ, इंसान सही माने में थे
ब्रिटिश कूटनीति के फंदे में, स्वयं जिन्ना साहब फंस बैठे
मजहब धर्म की आंधी में, दो देश समर्थक बन बैठे
हिन्दू मुस्लिम में आग लगी, बन गये खून के प्यासे थे
जो कल तक भाई होते थे, बन गये आज दुश्मन पक्के
हर साल रंग की होली थी, इस साल खून से हम खेले
हर साल प्यार की खुशबू थी, इस साल घृणा के मेले थे
आज़ादी की या सत्ता की, नेताओं में जो जल्दी थी
ब्रिटिश कूटनीति के फंदे में, फंसने की उनको जल्दी थी
सब शर्त मान अंग्रजों का, आज़ादी हमने हासिल की
जो भूमि गुलामी में जुड़ी रही, वह आज़ादी में टूट गयी
सैंतालिस का पन्द्रह अगस्त, खुशियों का सागर लाया
एक तरफ हजारों जीवन में, दुःख का मातम छाया
लाखों हज़ार घर उजड़ गये, चहुँ ओर भीड़ थी दुखियों की
जन जन के प्रिय गाँधी के लिए, वह समय नहीं था खुशियों की
जिन आदर्शो के खातिर, जीवन भर संग्राम किया
दब गये घृणा आंसू नीचे, सब बापू का अरमान मिटा
BEHATREEN SIR…BAHUT ACHI KAVITA
Nice
Nice
जय हिंद
👌👌👌
💯💯
अच्छी कविता।