नही मिलते
ये रास्तें है कैसे हमसफ़र नही मिलते,
छूट गए जो पीछे उम्र भर नही मिलते!
सूख चूके है उनके दीदार के इंतजार में,
हरे-भरे अब ऐसे शजर नही मिलते!
तार-तार होते रिश्तों पर खड़ी दीवार हो गई,
मोहब्बत हो जहां अब ऐसे घर नही मिलते!
एक दूजे की मुसीबत में काम आए कोई,
दरिया दिल लोग अब मगर नही मिलते!
मिल जाये ठिकाना इस उखड़ती सांस को,
न गांव मिलते है अब और शहर नही मिलते!
वक्त की भीड़ में न जाने रातें कहाँ खो गई,
चैन की नींद मीले ऐसे पहर नही मिलते !
दिखावे की चाह ने आखिर वृद्घालय ढूंढ ली,
तभी तो “नील”बुजुर्ग महलों पर नही मिलते!
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स्वरचित-राजेन्द्र मेश्राम “नील”
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Abhishek kumar - December 16, 2019, 10:37 am
Nice
Pragya Shukla - December 16, 2019, 10:40 am
Good
Amod Kumar Ray - December 16, 2019, 12:30 pm
Mast
देवेश साखरे 'देव' - December 16, 2019, 12:51 pm
Bahut khub
Poonam singh - December 16, 2019, 2:39 pm
Nice
Poonam singh - December 16, 2019, 2:41 pm
Sundar
Pragya Shukla - December 16, 2019, 3:48 pm
Congratulation
Amod Kumar Ray - December 16, 2019, 9:05 pm
Mast
Satish Pandey - July 13, 2020, 10:25 am
वाह वाह