पूस की रात
कभी ना भूलेगी वो
पूस की रात…….
ठंडी सर्द हवाओं और
बारिश की बूंदों के साथ……
मैं और मेरी तन्हाई
बस दो ही थे।
उस दिन वो
बारिश की नर्मी
और चादर की
सिलवट वैसी ही थी
जैसी मैनें छोड़ी थी …..
मौसम कितना भीगा सा था
उस पूस की रात में
बारिश की बूंदों ने
मन के सारे घावों
पर मरहम लगा दिया था…….
मैं और मेरी तन्हाई बस
डूबने वाले ही थे
तुम्हारी यादों के
समंदर में………
अचानक मैंने देखा कि
एक बुलबुल काफी
भीगी हुई कांप रही थी
बारिश में भीग गई थी शायद…….
मुझे ऐसे देख रही थी
मानो मुझसे कह रही हो
मुझे आज यहीं रहने दो
एक रात का आसरा दे दो……
मैं एकटक उसी को
देखती रही ।
सुबह जब आंख खुली
तो देखा धूप बारिश की बूंदों पर
चमक रही थी …..
बारिश बंद थी ,
वह बुलबुल भी जा चुकी थी
शायद मेरे उठने से पहले ही
चली गई थी वो……..
लेकिन उसका एक
पंख पड़ा था
शायद मुझे एक रात
का नजराना या निशानी दे गई थी …….
उस पंख को
जब मैंने उठाया तो
लिखा था कि ‘फिर आऊंगी’……
आज फिर आ गयी ‘पूस की रात’
मुझे फिर से उस बुलबुल का
इन्तज़ार है…
मुझे कभी ना भूलेगी
वो बुलबुल वो बारिश और
वो पूस की रात ………
अति सुंदर रचना
थैंक यू
Welcome
सुन्दर
🙏🙏🙏🙏🙏
झकास
Thnx
🙏🙏🙏🙏
Goood
Thnx
सुन्दर
Thanks
Waah ji
Thanks
Bahut hi sundar likha hai aapne
Thanks
Badhiya hai
Thanks
Thnx
Sundar vichar
थैंक यू
Waah ji
धन्यवाद
अति सुन्दर रचना है
धन्यवाद आदरणीय
इस बार आप ही जीतेगी
As your विश
अत्यधिक पसंद आयी
धन्यवाद आपका बहुत
Thank u
वाह वाह क्या बात है
Thank u
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
धन्यवाद
Sundar
थैंक यू
Good
Thanks
Goood very good
Thanks
नई अभिव्यक्ति
Thanks
वोट के लिये धन्यवाद
बहुत सुन्दर।
Thanks
Thank u all of you
चकित हूँ कि आपकी इतनी सुन्दर कविता होने पर भी और अधिक वोट मिलने पर भी इसे पुरिस्कृत न किया गया।