आखिर ये है कैसा संताप
पति की गलती पुत्र की गलती
गलती करे चाहे भाई-बाप।
हर गलती पर रोए नारी
आखिर ये है कैसा संताप।।
अपराध नहीं करती कोई
एक अपराधी की बन रहती।
बस यही एक अपराध सदा
अँखियाँ आँसू भर नित सहती।।
‘विनयचंद ‘ ममता नारी की
कवच रूप जो पाकर।
निज उत्कर्ष करे न
न औरों का बने ठहर।।
वीर नहीं कायर है जग में
नारी को रुलानेवाला।
नमकहलाल बनो विनयचंद
नित नित नमक खानेवाला।।
नारी के सम्मान में बहुत सुंदर रचना, अति सुंदर भाव
अबला नारी हाय तुम्हारी
यही कहानी,
आंचल में है दूध और आँखों में पानी…
बहुत खूब
बहुत ही सुन्दर कविता