ऐ मेरी याद-ए-उल्फत सुन
‘ऐ मेरी याद-ए-उल्फत सुन, तू इतना काम कर देना,
जो उसको भूलना चाहूँ, मुझे नाकाम कर देना..
सुबह का वास्ता किससे, सहर की राह किसको है,
तू उसकी ज़ुल्फ़ के साये मे मेरी शाम कर देना..
उसे बेहद ही लाज़िम है, ये मेरी सादगी या रब,
मेरे किरदार को बस खास से तू आम कर देना,
वफ़ा की शर्त भी तेरी, मैं बेहद फर्क से जीता,
है तेरी हद से बाहर अब, मुझे ईनाम कर देना..
ज़मीने दर्द की सारी, गमों की मिलकियत तेरी,
तू अपनी ये वसीहत अब से मेरे नाम कर देना..
ऐ मेरी याद-ए-उल्फत सुन, तू इतना काम कर देना,
जो उसको भूलना चाहूँ, मुझे नाकाम कर देना..’
– प्रयाग धर्मानी
मायने :
याद ए उल्फत – मोहब्बत की याद
सहर – सुबह
लाज़िम – अनिवार्य
मिलकियत – प्रॉपर्टी
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ लिखी हैं, इस शैली को सलाम है। वाह वाह
बहुत शुक्रिया आपका । इस शैली पर इस थोड़े बहुत इख्तियार के लिए मुझे सालों लग गए बस इस बात का थोड़ा अफसोस है मुझे ।
बहुत ही शानदार निखार है, बार बार पढ़ने को जी चाहता है।
पाक महोब्बत को प्रकट करती हुई बहुत ही बेहतरीन पंक्तियां ।
शुक्रिया सर
बेहतरीन रचना
बहुत आभार आपका
Sunder
धन्यवाद आपका
✍👌👌
शुक्रिया जी