कविता : यह कैसा धुआँ है

लरजती लौ चरागों की
यही संदेश देती है
अर्पण चाहत बन जाये
तो मन अभिलाषी होता है
बदलते चेहरे की फितरत से
क्यों हैरान है कैमरा
जग में कोई नहीं ऐसा
जो न गुमराह होता है
भरोसा उगता ढलता है
हर एक की सांसो से
तन मरता है एक बार
आज ,जमीर सौ सौ बार मरता है ||
उसी को मारना ,फिर कल उसे खुदा कहना
न जाने किसके इशारे से
ये वक्त चलता है
नदी ,झीलेँ ,समुन्दर ,खून इन्सानों ने पी डाले
बचा औरों की नज़रों से
वो अपराध करता है
आज ,जीवन की पगडंडी पर
सत चिंतन हो नहीं पाता
तृष्णा का तर्पण करने पर ही
तन मन काशी होता है ||
‘प्रभात’ कैसी है यह मानवता ,जिसमें मानवता का नाम नहीं है
होती बड़ी बड़ी बातें ,पर बातों का दाम नहीं है
मजहब के उसूलों का उड़ाता है वह मजाक
डंके की चोट पर कहता ,भगवान नहीं है
देखो नफ़रत की दीवारें ,कितनी ऊँची उठ गईं
घृणा द्धेष की ईंटे ,आज मजबूती से जम गईं
खोटे ही अपने नाम की शोहरत पे तुले हैं
अच्छों को अपने इल्म का अभिमान नहीं है
कहीं भूंखा है तन कोई ,कहीं भूंख तन की है
पुते हैं सबके चेहरे ,यह कैसा धुआँ है ||

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close