बेटी को सम्मान कब..??
सब मुझे देख रहे थे ऐसे
जैसे मैं कोई चीज बिकाऊ
कुर्सी, मेज खरीदने जैसे
वो कर रहे थे भाव-ताव
क्या मेरा कोई स्वाभिमान नहीं
क्या मैं कोई इंसान नहीं
लड़कियों का इस देश में
क्या कोई अस्तित्व नहीं ??
क्या लड़की होती है बाजारू
बस एक ‘शो पीस’ बिकाऊ
ना उसकी अपनी मर्जी है
ना उसमें है कोई जान
सीना तान के कहते हैं पुरुष यहाँ
“मेरा भारत देश महान”
देश महान हैं लेकिन देश के
नियम बड़े पौराणिक हैं
हम जैसे लोग इसी कारण से
अभी तक अविवाहित हैं
जितना अधिकार मिले बेटे को
उतना ही बेटी को सम्मान मिले
सीता, रुक्मिणी की तरह ही
पति चुनने का अधिकार मिले
तब बनेगा सुंदर प्यारा-सा
हर घर, हर परिवार
करेगी फिर हर बेटी अपने
परिवार, पति से प्यार…
“सीता, रुक्मिणी की तरह ही पति चुनने का अधिकार मिल”
बहुत सुंदर विचार है प्रज्ञा जी आपके ,हमारे पुराणों में भी बेटियों को उनका मन पसंद वर चुनने का अधिकार था,तो आजकल माता पिता क्यों संकोच करते हैं, क्यों ये समाज उंगली उठाता है,जब कोई लड़की अपने विवाह के लिए अपनी पसंद या नापसंद बताती है ,लडक़ों पर ये बंदिशें नहीं है यही तो विडम्बना है इस भारतीय समाज की,आखिर लड़की को भी सुख से जीवन जीने का अधिकार है
जी..
पर ऐसा होता नहीं इस बात का खेद है
होगा… जरूर होगा ।
समाज को एक संदेश देती हुई बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद दी
बहुत सुन्दर लिखा
धन्यवाद अनु…
ऐसा होना चाहिए पर होता नहीं..
लड़कियों को इंसान ना समझने की जो गलती करते हैं बाद में वो बहुत पछताते हैं
धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद
सटीक और यथार्थ अभिव्यक्ति
धन्यवाद
धन्यवाद