मायापति की माया

अभिमन्यु वध से व्याकुल अर्जुन जयद्रथ की कायरता  सुनकर के क्रोध से जल उठा।
जल रही प्रतिशोध की आग को शांत करने चीखकर प्रतिज्ञा कर उठा ।
या तो सायंकाल तक जयद्रथ का मस्तक – धड़       से अलग कर दूंगा,नहीं तो जलती चिता पर अपने
प्राण त्याग दूंगा।।

सुनकर अर्जुन की प्रतिज्ञा कौरव खेमे में बेचैनी सी छा गई,
जयद्रथ को लगने लग गया अब तो मृत्यु आ गई।

चारों ओर विचारो का दौर सा शुरू हो गया ,
जयद्रथ सिंध भागने को आतुर हो गया।
किन्तु दुर्योधन ने उसे रोक लिया ,
उसके प्राणों की रक्षा का वचन दिया।

अब फैसले का दिन शुरू हो गया था ,
जयद्रथ तो मानो विलुप्त सा हो गया था।
जैसे – जैसे दिन बीतता जा रहा था,
पांडवो के हृदय में अंधेरा सा छा रहा था।

द्रोणाचार्य ने जयद्रथ की रक्षा को एक घेरा बना दिया,
घेरा जैसे मानो की जयद्रथ को युधस्थल से छुपा ही दिया।
युद्ध की स्थिति को चक्रधारी ने भाप लिया,
नज़रे तिरछी करके सूर्य को अस्त होने का
आदेश दिया।।

मायापति की माया से थे सब अनजान,
समझ बैठे सब मानो की अर्जुन का हो गया विनाश,
चतुर्दिश छा उठा घोर अंधियारा
सुर्य का था ना कोई नामोनिशान,
भूखे गिद्ध उड़ रहे चारों और
कुरूक्षेत्र मानो बन गया था शमशान।

कौरव जोर जोर से हर्षित हो चीख रहे थे,
पांडव खेमा शोक से बिल्कुल शान्त था।

तभी युद्ध समाप्त समझकर तोड़कर सब घेरा,
बाहर गया छुपा बैठा जयद्रथ अकेला।
कहने लगा है अर्जुन तुम अपनी प्रतिज्ञा निभाओ,
जलती हुई चिता में जाकर बैठ जाओ।

तभी चक्रधारी ने अपना खेल दिखलाया ,
अपनी तिरछी नजर को दिनकर की और घुमाया,
समझकर चक्रधारी का आदेश चतुर्दिश
अंधेरों को चीरता हुआ प्रकाश छा गया,
चिता पर बैठने को जाता हुआ अर्जुन
लौटकर वापस रथ पर आ गया।
फिर क्या था धनुर्धर ने तनिक भी समय ना लगाया,
खीचकार गांडीव की प्रत्यंचा जयद्रथ का मस्तक उसके ही पिता की गोद में गिराया।

हैरान सभी ने पूछा बस यही कि सूर्यास्त के जैसी वो कैसी छाया थी,
तभी हंसते हुए श्रीकृष्ण को देखकर सब समझ गए
वो कोई छाया न थी।
वो तो साक्षात् ” मायापति  की माया” थी।।

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