गांव याद आये
“गाँव याद आये”
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हमें क्या पता आज,ये दिन देखना पड़ेगा |
न जाने कैसी मजाक,आज तूने किया है ||
हँसते हुए निकले घर से,भूख मिटाने सभी |
गाँव घर ये आँगन,छोड़ चार पैसा कमाने ||
दूर तलक परदेश,सभी हर कोने-कोने गए |
खेत खलिहान ले याद,बूढ़ी अम्मा की प्यार |
काम की धुन काम करता,कोई चलता गया |
मजबूरी मे हमें आज,मजदूरी दूर करना पड़ा ||
घोर अंधियारा छाए,ये काली रात आज कैसी |
पसंद न आए तुझे हम,मजदूरों की ये मजबूरी ||
बच्चे बिलखतेअम्मा,बोझा लिए नंगे पाँव चली |
बाबुल भूख से कुम्हलाए,जिम्मेदारी लिए हुए ||
पैरो में छाले पड़े है,डगर आज चलते चलते |
नीर को तरसे ये,रोटी बिखरे हुए पथ में पड़ी ||
प्राण गवांते हम पथ में,मंजिल तलाश करते |
रहम कर परवरदिगार,गाँव अब याद आया है ||
👏👏
बहुत खूब भाई
Nice
तत्कालीन परिस्थिति पर बहुत सुंदर कविता
👏
वाह