दादी माँ
आज दादी की बहुत याद आई!
वो बेचैन आत्मा ना जाने कहाँ
घूमती होगी….
ब्रह्मांड के किन कोनों से
गुजरती होगी…
कोई नहीं जानता…
जब मैं भूखी होती थी
तो दादी मां अपने हाथों से
खाना बनाती थी…
और पूरे परिवार को
हंसी-खुशी खिलाती थी…
वह दादी मां
आज बहुत याद आ रही है…
न जाने कहां ब्रह्मांड के किन
कोनों से टकराकर…
गुजरती होगी उसकी आत्मा
न जाने कहां होगी मेरी दादी मां..
शायद मुझे देख रही होगी..
और मुझे सुन रही होगी..
मार्मिक रचना
थैंक्स
Sunder
धन्यवाद
वाह
🙏
बहुत मार्मिक