उर्मिला की विरहाग्नि
जब मैं कली बन मुस्कुराई अली
तब ही प्रियतम बन आए अली…
घेरा मुझको बाहुपाश में
डूब गई मैं प्रेमपाश में…
प्रिय चले गए वनवास अली
जब बिछोह की हवा चली…
नित क्रंदन, रुदन करूं मैं अली
कामेच्छा से विरहाग्नि भली…
ना मैं जलूँ सती सम अग्नि की ज्वाला
ना डूबूँ लक्ष्मी सम पयोनिधि धारा…
हे प्रभु! जब दी विरहाग्नि मुझे
करो सहने की भी शक्ति प्रदान मुझे…
बीते शीघ्र निशा हो सुप्रभात
उर्मिला की कर दो आकर प्रतीक्षा समाप्त…
दूसरी पंक्ति में अलि होगा
जिसका अर्थ भौरा है
Very nice👏👍😊
आभार आपका
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर कविता है,शब्दों का बहुत उचित प्रयोग है,वाह!
धन्यवाद बस अभी
हिन्दी साहित्य पढ़ रही थी तो
मन किया की पुराने कवियों की भाषा-शैली में लिखकर देखूँ
बहुत सुंदर लिखा है आपने, उच्चस्तरीय रचना
थैंक्स दी
Welcome sis
खुद में भरपूर हिंदी साहित्य समाहित किये हुए प्रस्तुत रचना बेहतर बन गई है
इतनी सुंदर समीक्षा करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया
🙏🙏
बहुत बढिया लिखा है आपने
🙏🙏
अतिसुंदर रचना
धन्यवाद आपका
Very well composed
आभार आपका
वास्तव में उर्मिला की करूण व्यथा एक विचारणीय बिंदु है
आपने बहुत ही बेहतरीन तरीके से उसे प्रस्तुत किया है
👌👏👏👏
जी सर
आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूँ मैं
शुद्धतम,उच्चतम तथा
परिपूर्ण रचना
हिंदी को आत्मसात करती हुई रचना
🙏🙏
🙏🙏
धन्यवाद आपका बहुत बहुत आभार