आज उन्हें जय हिंद लिख रही
डटे हुए हैं सीमा में वे, रोक रहे हैं दुश्मन को,
चढ़ा रहे हैं लहू- श्रमजल, मिटा रहे हैं दुश्मन को।
ठंडक हो बरसात लगी हो, चाहे गर्मी की ऋतु हो,
सरहद के रक्षक फौलादी, रौंध रहे हैं दुश्मन को।
भारत माता की रक्षा पर, तत्पर शीश चढ़ाने को,
निडर खड़े हैं रक्षक बनकर, रौंध रहे हैं दुश्मन को।
आज उन्हें जय हिंद लिख रही, अक्षरजननी यह कवि की,
जो सीमा पर डटे हुए हैं, रोक रहे हैं दुश्मन को।
मात्रिक छंद – उल्लाला छंद 15-13 में, देश प्रेम संजोती उल्लाला पंक्तियाँ।
“निडर खड़े हैं रक्षक बनकर, रौंध रहे हैं दुश्मन को।
आज उन्हें जय हिंद लिख रही, अक्षरजननी यह कवि की,
जो सीमा पर डटे हुए हैं, रोक रहे हैं दुश्मन को।”
देश प्रेम से सुसज्जित कवि सतीश जी की अति उत्तम रचना
छंद युक्त अति सुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर समीक्षागत टिप्पणी हेतु हार्दिक हार्दिक धन्यवाद
कवि सम्मेलन करा के श्रीमान
हो के आए हैं क्या शरहद से।
कितने दिनों के बाद मिले हैं
पाण्डेयजी अब फुर्सत में।।
देश भक्ति का भाव है प्यारा
प्यारी -सी इस रचना में ।
शत सलाम सदा हीं मेरी
वीर सपूतों की वन्दना में।।
बहुत बहुत धन्यवाद, 🙏🙏 शास्त्री जी, आपकी यह टिप्पणी और पंक्तियाँ बहुत ही लाजवाब हैं।
बहुत बहुत धन्यवाद शास्त्री जी, आपकी इस आत्मीय टिप्पणी हेतु मन में अत्यंत प्रसन्नता हुई। यह आशिर्वाद बना रहे।
सुन्दर
बहुत बहुत धन्यवाद
डटे हुए हैं सीमा में वे, रोक रहे हैं दुश्मन को,
चढ़ा रहे हैं लहू- श्रमजल, मिटा रहे हैं दुश्मन को।
ठंडक हो बरसात लगी हो, चाहे गर्मी की ऋतु हो,
सरहद के रक्षक फौलादी, रौंध रहे हैं दुश्मन को।
उपर्युक्त पंक्तियां बेहद
सराहनीय हैं
जो देशभक्ति से ओत प्रोत हैं
सच ही कहा है
हमारे जवान बिना मौसम की परवाह किये ही
हमारे देश की रक्षा हेतु
सीमा पर डटे रहते हैं
इस लाजवाब और बेहतरीन टिप्पणी हेतु बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत बहुत धन्यवाद, 🙏🙏 शास्त्री जी, आपकी यह टिप्पणी और पंक्तियाँ बहुत ही लाजवाब हैं।