Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
rajesh arman
हर निभाने के दस्तूर क़र्ज़ है मुझ पे
गोया रसीद पे किया कोई दस्तखत हूँ मैं
राजेश'अरमान '
Related Articles
यादें
बेवजह, बेसबब सी खुशी जाने क्यों थीं? चुपके से यादें मेरे दिल में समायीं थीं, अकेले नहीं, काफ़िला संग लाईं थीं, मेरे साथ दोस्ती निभाने…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
क्या बयॉ करे
क्या बयॉ करे…… क्या बयॉ करे अपने लफ्जो से हंसकर दर्द छुपाता हूँ दिल के गहरे घाव को अपने किस्मत को मैं कोसता हूँ सुबह…
न सवाल हुआ , न जवाब ही हमारी तन्हाई में
न सवाल हुआ , न जवाब ही हमारी तन्हाई में । आंखों ही आंखों से बात हुई हमारी तन्हाई में । खामोशी को इकरार समझने…
एक ऐसी ईद
एक ऐसी ईद भी आई एक ऐसी नवरात गई जब न मंदिरों में घंटे बजे न मस्जिदों में चहल कदमी हुई बाँध रखा था हमने…
वाह