Category: शेर-ओ-शायरी
“सिल-सिला” #2Liner-66…….
ღღ__मोहब्बत थी तुझसे ही, तुझसे ही हर गिला रहा; . उम्र-ए-शब-ए-रोज़ का, बस यही सिल-सिला रहा !!……#अक्स .
“मैं”-१
वक्त की कलम से जिन्दगी के हँसी पल लिखने जा रहा हूँ मैं, गमों की परछाई पर खुशियों के साये सा छाने जा रहा हूँ…
“मोहब्बत” #2Liner-65….
ღღ__बिछड़कर देर तक तुझसे, उस दिन मैं सोंचता रहा “साहब”; . मोहब्बत गर ना हुई होती तो, मेरा क्या हुआ होता !!……#अक्स .
छोड़ आया थी
छोड़ आया थी अपनी तन्हाई को भींड में लुत्फ़ अब ले रहां हूँ तन्हाई की भीड़ में राजेश ‘अरमान’
ग़मे-ए-मुदाम
ग़मे-ए-मुदाम से इस कदर परेशां न हो , सुना है हर गम के पंख भी होते है राजेश’अरमान’
तेरे साथ गुज़ारे
तेरे साथ गुज़ारे चंद लम्हों की जागीर की बस मिल्कियत रखता हूँ ये अलग बात है खुद को सबसे अमीर अब भी समझता हूँ राजेश’अरमान’
वो समझते रहे ताउम्र
वो समझते रहे ताउम्र, बस एक किस्सा मुझे हम वहम् में रहे वो समझते है ,अपना हिस्सा मुझे फरेब खाने की तो तालीम अपनी बड़ी…
तूफां मन के
तूफां मन के अंदर हो या समुन्दर में लहरें कुछ न कुछ खींच के ले ही जाती है राजेश ‘अरमान’
बंदगी तेरी
बंदगी तेरी यूँ मेरे काम आ गई अब किसी दुआ की जुस्तजू न रही राजेश’अरमान’
“हद” #2Liner-64…..
ღღ__कभी फुरसत मिले जो ‘साहब’, तो पूरी ये अहद कर दो; . कुछ इस हद तक मुझे चाहो, कि बस “हद” कर दो !!…..#अक्स .
patjhar
!!!! SAGAR KE DIL SE !!!! patjhar main bhi kuch patte shakho par reh jaate hai bhure waqt main bhi kuch dost saath nibha jaate…
baitaab
!!!! SAGAR KE DIL SE !!!! phir ek baar sagar shant hai kisi khaas lehar ka intzaar hai baitha hun baahain failaaye kinaare par dil…
हासिल कुछ भी
हासिल कुछ भी नहीं नफरतों से क्यों खेलते हो फिर जज्बातों से जब इंसा ही इंसा का दुश्मन हो क्या मिलेगा किसी को इबादतों से…
कमबख्त दिल
कमबख्त दिल सब समझता है खुद दिल से दूरियां रखते है वज़ूद सामने होता है लेकिन खुद को बहरूपिया रखते है राजेश’अरमान’
HINDU MUSLIM ROTI
मुस्लमान बनके बांटो या हिन्दू होके बांटो ,, पर दोस्त , केवल रोटी के ही …
न हुई सुबह न कभी रात इस दिल ए शहर में
न हुई सुबह न कभी रात इस दिल ए शहर में कितने ही सूरज उगे कितने ही ढलते रहे
जिनके आने से पहले
जिनके आने से पहले, मौसम का गुमाँ हो जाता था आज वो खुद ही हो गए, इक मौसम की तरह राजेश’अरमान’
इम्तिहाँ लेते है वो
इम्तिहाँ लेते है वो कुछ इस अंदाज़ से आता हुआ जवाब भी हम भूल जाते है राजेश’अरमान’
गैरों से क्या करें
गैरों से क्या करें शिकायत अपनों से ही मिली तिज़ारत रूसवाइयां तेरी साथ लेकर कर लेंगे इस जहाँ से रुखसत राजेश ‘अरमान’…
समझते सब है
समझते सब है पर मानता कोई नहीं पहचान सब से है पर जानता कोई नहीं यूँ तो पड़ा हूँ खुली किताब की तरह…
हर शख्स बस
हर शख्स बस अपने ही ख्याल बुनता है जिसका जवाब नहीं वही सवाल चुनता है कोई कैसे कहे वो गुमसुम सा क्यों है जिसे …
शेर
चंद मुट्ठी भर तुफान से लड़ेंगे , शायद अंदाज़ा नहीं ,, इन्हें ताकत मोमबत्तियां लिए हजारों हाथ की ….!! …………….~~**#चंद्रहास**~~
हम मर्दों की ख़ास निशानी होती है
हम मर्दों की ख़ास निशानी होती है ,, हसीं चेहरा देखा नहीं की नियत फिसल जानी होती है …………..!! चलते चलते निगाहों में बात…
अहिंसक हो – 4
अहिंसक हो मेरे चित् , अहिंसक हो अनैतिक भाव , क्भी नहीं निर्जीव पे वार , क्भी नहीं
अहिंसक हो – 3
अहिंसक हो मेरे चित् , अहिंसक हो जीव हत्या , क्भी नहीं वनस्पति अपमान , क्भी नहीं
अच्छा है – 4
अच्छा है , जितना जल्दी जान लो सच में तो हैं सब अकेले , फिर भी करते मेले – मेले
अच्छा है – 3
अच्छा है , जितना जल्दी जान लो नही है कोई यहाँ किसी का, ना ही हो तुम भी किसी के
अच्छा है – 2
अच्छा है , जितना जल्दी जान लो ना कोई आने की राह का साथी, ना जाने की राह का कोई नाती
इश्क-ए-खुदाई – 7
इश्क–ए–खुदाई भी कैसा सौदाई है तेरे अंतर्मन अपनी जगह बनायी है
इश्क-ए-खुदाई – 6
इश्क–ए–खुदाई भी कैसा सौदाई है खुदी ख़ुद में घोल ख़ुद को ही पिलायी है
इश्क-ए-खुदाई – 5
इश्क–ए–खुदाई भी कैसा सौदाई है कैद–ए–खुदाई में ना कुंडी है ना पहरा है
इश्क-ए-खुदाई – 4
इश्क–ए–खुदाई भी कैसा सौदाई है ख़ुद को ख़ुद में ख़ुद ही क़ैद दिलाई है
इश्क-ए-खुदाई – 3
इश्क–ए–खुदाई भी कैसा सौदाई है लाज–शर्म–हया–तेह्ज़ीब इसने भुलाई है
इश्क-ए-खुदाई – 2
इश्क–ए–खुदाई भी कैसा सौदाई है जग की बेजड़–सोचें इसने छोडा़ई हैं
इश्क-ए-खुदाई – 1
इश्क–ए–खुदाई भी कैसा सौदाई है मन डोर झूम के यूँ तुझमें बंधायी है
है इरादा गर अटल
माना के यह राह् है कुछ जटिल समाने का मुझमें है इरादा गर अटल तो मुश्क़िल हर पार तूँ कर जाएगा काँटों पे चल समा…
सकून
दहक रही है जो आग तुझमें मिलेगा सकून उसे मिल मुझमें सिमटने की मुझमें तेरी बेकरारी है मुझे अपनी ख़ुदाई से भी प्यारी
मैं – तूँ
हूँ मैं जो रौशनी है तूँ भी वही रौशनी हूँ तूँ जो रौशनी है मैं भी वही रौशनी
ज़िन्दगी ना थी – 11
ज़िन्दगी ना थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी इस ज़िन्दगी के बाद भी यूई के बुलंद हौंसलों पे दुश्मन भी इतराते हैं
ज़िन्दगी ना थी – 10
ज़िन्दगी ना थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी इस ज़िन्दगी के बाद भी सामने मेरे आने से अब तूफान भी घभराते हैं
ज़िन्दगी ना थी – 9
ज़िन्दगी ना थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी इस ज़िन्दगी के बाद भी लिया है सीख रुख पलट बाधाओं के हर हाल में जीना हमने
ज़िन्दगी ना थी – 8
ज़िन्दगी ना थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी इस ज़िन्दगी के बाद भी लिया है सीख अवरोधों को सर करना हमनें