Puneet Sharma
“झूठी शान से बच जाती”
September 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
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गोद में लेकर मुझे
हे पिता! तुमने कहा था
मांग ले गुडिया तुझे
जो खिलौना मांगना है
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हाथ जिस पर रख दिया
तुम्हे कब ना पसंद था
उसका क्या मोल है
उठा कभी यह प्रश्न था?
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जिन सपनो के संग खेली
भेदभाव था नहीं उनमे कभी
जीवनपथ में स्वयं चुनाव हो
एसा सन्देश था जिनमे कभी
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माँ भी मुझे प्यार करती
पर कभी वह डांट लेती
किन्तु पिता तुमसे मिला
अनवरत अक्षीण प्रेम प्रकाश
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संवेदना माँ से अधिक
मैंने तुम्हारी पाई थी
छत्र छाया में तुम्हारी
मैं निडर जीती आई थी
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वक्त जैसे स्वतंत्र पंछी
की तरह उड़ता गया
आँगन में तुम्हारे एक चाँद
पूर्णिमा को बढता गया
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फिर एक दिन क्यों
सब कुछ बदल गया
मेरा किसी से प्रेम तुमको
क्यों और कैसे अखर गया
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कैसे समाज की रूडीवादिता
तुम पर हावी हो गई..
क्यों तुम्हारी गुडिया से तुम्हे
घनघोर नफरत हो गई?
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क्या प्रेम करना था मेरा गुनाह
या स्वयं चुनाव से हुए तुम शर्मिंदा?
क्यों खांप नियमो के मोहताज हुए तुम
कैसे तुम मेरे गले पर चला पाए रंधा?
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मुझे ससुराल भेज दोगे
सोच कर रोने वाले, हे पिता!
अपनी शान की खातिर
कैसे मुझे तुम मार पाए?
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मुझे अपना भाग्य
बताने वाले हे पिता!
मेरे भाग्य में कैसे
तुम मौत लिख पाए?
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तुमने ही बतलाया था
प्रेम करना ही धर्म है
तुमने ही सिखलाया था
नफरत सबसे बड़ा कुकर्म है
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मनुजो के काम न आये
धर्म नहीं आडम्बर है
मनुज मनुज को प्रेम करे
यही धर्म का सन्दर्भ है
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तुमने मेरा खून नहीं
अपना खून किया है
मानवता शर्मशार हुई है
तुमने बड़ा अधर्म किया है
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हे पिता! मैं जा रही हूँ
इन अधूरे सवालों साथ
फिर कभी न लौटकर
आने के वादे के साथ.
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मनुष्य बनने से अच्छा
मैं पशु ही बन जाती
कोई पिता नहीं देता
किसी खांप को मेरी आहुति
मैं झूठी शान से बच जाती
मैं झूठी शान से बच जाती!
…………………… © पुनीत शर्मा
जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश
+91 7895300487, +91 7055274298
मेरे भारत का झंडा तब बिन शोकसभा झुक जाता है
August 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
देख तिरंगे की लाचारी
कैसे हर्शाएं हम
आजादी पर कैसे नांचे
कैसे झूमे गायें हम
भारत माँ का झंडा जब
पैरों के नीचे आता है
और जहाँ अफ्जालों पर
मार्च निकाला जाता है
जिस देश में दीन-हीन कोई
पत्ते चाटकर सोता है
भूख की खातिर कोई यहाँ
जब बच्चे बेच कर रोता है
जहाँ अमीरों के हाथो से
बेटिया नोची जाती हैं
जब कोई सांसद संसद में
महिला को गाली दे जाता है
मेरे भारत का झंडा तब
बिन शोकसभा झुक जाता है
इस झंडे को किस तरह
दूर तलक फहराएं हम
विजय पताका कैसे कह दे
कैसे दुनिया पर छायें हम
आजादी पर गर्व हमें भी
पर ये कैसी आजादी है
जे एन यु में भारत माँ के
विरुद्ध नारे लगवाती है
भारत की एकता तब
खंडित खंडित हो जाती है
जब लालचोक पर झंडा फेहराने
को पाबन्दी हो जाती है
फिर आजादी पर कैसे नांचे
कैसे झूमे गायें हम
देख तिरंगे की लाचारी
कैसे हर्शायें हम
जब नेता गरीबी के बदले
गरीब हटाने लग जातें हैं
बी पी एल से सामान्य के
कार्ड बनाने लग जाते हैं
पकवानों के चक्कर में
रोटी महंगी हो जाती हैं
सड़कों पर अस्मत लुटती है
पर कोई शोर नही होता
किसानो की आत्महत्या पर
जब राजभवन में कोई नहीं रोता
भारत माता चुपके-चुपके
तब अपने आंसू बहाती है
इन आंसुओ की कीमत जानो
जनता का उद्धार करो
ख़ामोशी खल जाएगी हमको
देशद्रोहियों पर पलटवार करो
जो भारत माता को
नोचकर खाने वाले हैं
जो बेटियों की इज्जत पर
हाथ लगाने वाले है
इस आजादी की वर्षगांठ पर
ऐसे हाथ काट कर फेंको तुम
जो जय भारत न बोले
उसकी जीभ उखाड़कर फेंको तुम
करो स्थापना शांति की
और संस्कार भी गढ़ दो तुम
तभी आजादी के गीतों से
गुंजायमान ये धरती होगी
नहीं तो वो दिन दूर नहीं
जब फिर नई क्रांति होगी
नया सवेरा है, नए है दिन
नए नियम बनाओ तुम
इस धरती पर जन्म लिया
तो देशभक्त बन जाओ तुम
उसके बाद लाल किले पर
आजादी के गीत सुनाओ तुम!
© Puneet Sharma
मेरे भारत का झंडा तब बिन शोकसभा झुक जाता है
August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
देख तिरंगे की लाचारी
कैसे हर्शाएं हम
आजादी पर कैसे नांचे
कैसे झूमे गायें हम
भारत माँ का झंडा जब
पैरों के नीचे आता है
और जहाँ अफ्जालों पर
मार्च निकाला जाता है
जिस देश में दीन-हीन कोई
पत्ते चाटकर सोता है
भूख की खातिर कोई यहाँ
जब बच्चे बेच कर रोता है
जहाँ अमीरों के हाथो से
बेटिया नोची जाती हैं
जब कोई सांसद संसद में
महिला को गाली दे जाता है
मेरे भारत का झंडा तब
बिन शोकसभा झुक जाता है
इस झंडे को किस तरह
दूर तलक फहराएं हम
विजय पताका कैसे कह दे
कैसे दुनिया पर छायें हम
आजादी पर गर्व हमें भी
पर ये कैसी आजादी है
जे एन यु में भारत माँ के
विरुद्ध नारे लगवाती है
भारत की एकता तब
खंडित खंडित हो जाती है
जब लालचोक पर झंडा फेहराने
को पाबन्दी हो जाती है
फिर आजादी पर कैसे नांचे
कैसे झूमे गायें हम
देख तिरंगे की लाचारी
कैसे हर्शायें हम
जब नेता गरीबी के बदले
गरीब हटाने लग जातें हैं
बी पी एल से सामान्य के
कार्ड बनाने लग जाते हैं
पकवानों के चक्कर में
रोटी महंगी हो जाती हैं
सड़कों पर अस्मत लुटती है
पर कोई शोर नही होता
किसानो की आत्महत्या पर
जब राजभवन में कोई नहीं रोता
भारत माता चुपके-चुपके
तब अपने आंसू बहाती है
इन आंसुओ की कीमत जानो
जनता का उद्धार करो
ख़ामोशी खल जाएगी हमको
देशद्रोहियों पर पलटवार करो
जो भारत माता को
नोचकर खाने वाले हैं
जो बेटियों की इज्जत पर
हाथ लगाने वाले है
इस आजादी की वर्षगांठ पर
ऐसे हाथ काट कर फेंको तुम
जो जय भारत न बोले
उसकी जीभ उखाड़कर फेंको तुम
करो स्थापना शांति की
और संस्कार भी गढ़ दो तुम
तभी आजादी के गीतों से
गुंजायमान ये धरती होगी
नहीं तो वो दिन दूर नहीं
जब फिर नई क्रांति होगी
नया सवेरा है, नए है दिन
नए नियम बनाओ तुम
इस धरती पर जन्म लिया
तो देशभक्त बन जाओ तुम
उसके बाद लाल किले पर
आजादी के गीत सुनाओ तुम!
© Puneet Sharma
सच में मिली आजादी?
August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
हिन्द के निवासियों
धरती माँ पुकारती है
उठ खड़े हो जाओ तुम
माँ भारती पुकारती है
धर्म, जाती-पाती से तुम
बाहर आकर भी देख लो
आजाद भारत में आज भी
मजदूर बंधुआ बने देख लो
ये आजादी है या भ्रमजाल
वक्त चल रहा ये कैसी चाल
भूख की खातिर जहाँ
जिस्म बिकते देख लो
शौक की खातिर जहाँ
जिस्म नुचते देख लो
मानव की औकात क्या
पशु असुरक्षित हैं, देख लो
भारत के कर्णधारों से
भविष्य के सितारों से
माँ भारती ये पूछती है
सच में मिली आजादी है?
या फिर से कोई सजा दी है?
सच में आजादी गर चाहते हो
मत बटने दो देश को
धर्म-जाती के नाम पर
और अस्मिता की रक्षा करो
अपनी जान पर खेल कर
सुरक्षित स्त्री-पुरुष हों,
भरपेट भोजन गरीब को
छत बेघर को मिले,
आसरा अनाथ को
जिस दिन यह हो जायेगा
माँ भारती का बच्चा बच्चा
आजादी वाले गीत गायेगा
ऐसा हुआ नहीं कभी तो
आजादी का दिन मात्र एक
झंडा फहराने का त्यौहार
बन कर ही रह जायेगा.