by Anshika

साप्ताहिक कविता प्रतियोगिता

September 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

उठी है एक आवाज, सत्ता को पलटने के लिए,
जागी है एक भावना,जन जन की चेतना के लिए,
गूंजी है एक पुकार,कुछ बदलने के लिए,
अब समाप्त करनी है लोगों में फैली जो है भ्रांति,
समय आ गया है अब जन्मेगी एक क्रांति,
आगाज़ करता हुआ एक विगुल कह रहा,
डरो ना आंधी पानी में,
हर फिजा खुल कर सांस लेगी अब इस कहानी में,
मजदूरों और मेहनतकशों के इम्तिहानों की,
अब लाल सलाम करती हुई उठेगी एक क्रांति हम जवानों की,
हुई थी क्रांति और होगी एक क्रांति,
अब एक जलजला उठ रहा है मजदूरों और मेहनतकशों के नारों का,
हर हिसाब चुकता होगा अब पूंजीपतियों और शासकों की मारों का,
देखो उस परिवर्तनकारी दृश्य को,
जो बन रहा है इस जहान में उस मैदान में,
ख़त्म होगी अब जो भी है भ्रांति,
अब जन्मेगी क्रांतिकारी क्रांति ।

अंशिका जौहरी

by Anshika

ख्वाब बुने

September 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

आओ एक ख्वाब बुने कल के वास्ते,
सबकी अपनी अलग है मंज़िल पर एक है रास्ते,
कुछ तो अलग करेंगे कुछ तो नया करेंगे अपने देश के वास्ते,
चलो आज ही तय कर लेते है कौन से सही है रास्ते,
जुनून है जज्बा है आत्मविश्वास से भरा एक हौसला है,
दो हाथ है दो पैर है और सबसे महत्वपूर्ण कुछ अलग करने की लगन है,
पर चिंता की है कि सब अपने में मगन है,
पर हम जानते है कि नीचे धरा है ऊपर गगन है
और हम में कुछ नया करने की लगन है ।

अंशिका जौहरी

by Anshika

गंगा

September 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहने को है अमृत की धारा,
कूड़े से पटा हुआ उसका जल सारा ।
पाप धुलने का मार्ग बन गई गंगा,
हर किसी के स्पर्श से मैली हो गई गंगा ।
कभी प्रसाद की थैली के नाम पर,
कभी फूलों के बंडल के नाम पर,
कभी कपड़े के गट्ठरों के नाम पर,
भरती चली गई गंगा ।
धो डालो सारे रीति रिवाज,
जो करते है गंगा को गन्दा,
अब मिलकर साफ करेगा गंगा को हर एक बन्दा ।
समय आ गया है अब बदलने गंगा की मूरत,
गंगा हमारी मां जैसी,
अविरल है उसकी मूरत ।
प्रण करो न डुबकी लगाएंगे,
ना प्रसाद चढ़ाएंगे,
सब मिलकर गंगा को साफ बनाएंगे,
और थोड़ा सा जल हाथ में लेकर अब उसका अस्तित्व बचाएंगे।

अंशिका जौहरी

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