श्रद्धांजलि

August 9, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस गर्जन का इस तड़कन का ,
करुण स्वर कुटुंब के तड़पन का,
कम हो जाये इससे पहले ,
कुछ धड़ हमको भी लाने होंगे।
विस्मयबोधक विरक्ती का,
परिमाण कड़ी निंदा शक्ति का,
कम हो जाए इससे पहले,
कुछ रुदन हमको भी लाने होंगे,
वीरगति उनके पाने का,
पैमाना उनके जाने का,
बढ़ जाये इससे पहले,
कुछ कदम तो सख्त उठाने होंगे।

याद रख

August 9, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

उठ तू शहर से पर गांव को याद रख,
पहुँच आसमां से ऊपर पर जमीं को याद रख,
बेशक मिले होंगे यार हजार पर ,
जर्रे ए जिगर में इस दुश्मन को याद रख।
अगर लाना है अपनी डाल पर फल ए बहार,
तो अपनी टहनियों में लचक बरक़रार रख…

मै जीत गया होता, मै हार गया होता

August 9, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मै जीत गया होता, मै हार गया होता,
तेरा साथ जो ना होता, मै उलझ गया होता,
तेरे साथ का है ये असर जो दौड़ उठा हूँ मै
नही तो दुनिया की भीड़ मे सिमट गया होता,
मै जीत गया होता, मै हार गया होता,
माँ वचन तेरा अब भी मेरा साथ निभाता है
गिरने से बचाता है गुमने से बचाता है,
नही तो एक बार फिर……
मै हार गया होता, मै जीत गया होता
मेरे मन मे है क्या ये सब तू जानती है
मेरे मन का कोना कैसे पहचानती है?
तेरी अभिलाषाओ ने हाँ मुझे संभाला है
छोटे से उस कस्बे से यहा तक पहुंचाया है
सन्सय से भरा वो राग पुनः दोहराता हूँ
की
मै हार गया होता या जीत गया होता..

पहला कदम

August 9, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब पहला कदम बढ़ाना था
कोई उगली पकड़ाया था
जब घुटनों मे मेरी चोट लगी
कोई मलहम लगवाया था
उस चोट से आगे फिर मेरा कदमो का सफर जब बढ़ता है
पेनसिल के युग मे जाकर करके वो सीधी मेड़ पकड़ता है.
तब तक सब कुछ ही अच्छा था
निर्मल मनो का संगम था
और मेरा मन भी निर्मल था
ना द्वेष कोई संग करता था
ना किसी से द्वेष मै करता था
जीवन के इस काल चक्र में रुकना उस वर्ग मे मुस्किल था,
अनजाने और जान के भी इस युग से आगे बढ़ना था
घटित हुआ वही तंग इतिहास मेरे भी मस्तिष्क मे
पड़ गया फिर मै भी देखो उसी द्वेष रँग की मुस्किल मे
फिर कहा मिलेगा मार्ग मुझे इस भँवर जाल से मुक्ति का?
यह प्रश्‍न बड़ा ही सुंदर था उत्तर उससे भी सुंदर था
की
” क्या फर्क पड़ता है किसी के कहने या मानने से
मेरी तो जंग होनी चाहिए मेरे आइने से ”

काल खंड में चलना होगा

August 9, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन के पथ पर आगे बढ़कर,
काल नियंतर परिवर्तित कर,
शून्य वेदना अनुनादित कर,
प्रश्नचिन्ह को परिभाषित कर,
स्वयं रिक्ति को भरना होगा, काल खंड में चलना होगा।
हृदय कंठ स्वर निर्मल करके,
मन कर्म वचन संगठित करके,
निज विरक्ति को दंडित करके,
सर्व कुटुंब को पोषित करके,
स्वयं निरादर सहना होगा, काल खंड में चलना होगा।

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