Vinita Shrivastava
हरी रस
July 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
रसना है ,हरी रस के लिए
मत ,रसना ,मधु ,पान करो
रंग जा रसिया हरी रंग में
अंतर रस ,रस पान करो
-विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर)-
ढूंढ रहा हूँ
July 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
इस जहां में ,कहाँ खो गया हूँ
खुद में ,खुद को ढूंढ रहा हूँ
पी रहा हूँ , पी रहा हूँ
में बस गम को पी रहा हूँ
-विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर)-
वक़्त
July 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
वक़्त ,है ये
कभी जमीं ,
तो कभी आसमा
गम की रफ़्तार है ऐ ,
कुछ लम्हा , कारबां
बड़ा सख्त है ऐ
वक़्त है ऐ
-विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर)-
घरौंदे
July 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
रेतों के घरौंदे को ,
किसने है बचा पाया
हम रेत के घर सारे,
एक दिन ढह जाना है
-विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर)-
सावन
July 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
सावन की रिमझिम में,
झुमे गगन औ धरा
आवन पै सावन के,
कण कण , रंग है भरा
-विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर)-
मधुमास
July 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
मैं पतझड़ प्रिय तू मधुमास,
छण प्रति-छण तेरा आभास
-विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर)-
तू द्वीप
July 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
माटी में , तू द्वीप
पानी में, तू सीप
राग में,तू गीत
हार हूँ, तू जीत
–विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर)–
लाल
July 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
देखो सपूतों इस धरा पर,
पैर न गैर जमने पाए
कोई न अब लाल बिछड़े ,
कोई मांग उजड़ न पाए
–विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर)–
बिंदु
July 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
कर चुके भौतिक उपलब्धि ,
फिर भी मन उदास है
बिंदु को सिंधु मिलन की,
जनम जनम से प्यास है
–विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर)–
बोध
July 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्यूँ मनुज अबोध ,
बोध तुझमे ही सब
क्यों करता है खोज ,
शोध तुझमे ही सब
अविराम गति तू ,
विश्राम तुझमे ही सब
–विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर)–
पद चिन्ह
July 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
देख मनुज संसार में ,
कोई नहीं किसी का
मतलब की दुनिया ये सारी
कौतुक ब्रह्म विधि का
मत सोच मनुज कि तू निर्बल है
तुझमे परम प्रभु का बल है
नश्वर्य जग में पग दो चल
पहचान बना पद चिन्ह छोड़ चल
मिटे अज्ञान जिस पल
मिले श्रोत सिद्धि का
कौतुक ब्रह्म विधि का
–विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर )–
विधाता
July 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
विधाता अब कौन सा कौतुक रचोगे
क्या घटित को , अघटित कर सकोगे
–विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर )–
सृजन
July 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
सृजन के साथ विनाश जुड़ा है
विनाश के साथ सृजन
सुख दुःख का संगम है
मानव का यह जीवन
मरण के साथ जनम है
जनम के साथ मरण
वैसा भाग्य बनेगा
जैसे जिसके कर्म
–विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर )–
युग परिवर्तन
July 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
ये कैसा युग परिवर्तन
नर दे रहा नर को , मौत का निमंत्रण
नहीं चाहिए ये परिवर्तन , नहीं चाहिए ये परिवर्तन
–विनीता श्रीवास्तव (नीरजा नीर )–
शहीद
July 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
–शहीद–
भवर मैं खड़े होकर , तूफानों से टकराते हो
अँधेरे में रह कर , चिराग देश का जलाते हो
सुख सम्पति निज सपनो की , हस कर बलि चढ़ाते हो
कली मैं सब कपूत हैं , तुम सपूत कहाँ से आते हो
रक्त रंजित तेल मैं , प्राण बाती जलाते हो
भारत माँ की लाज बचा कर, लाल कहाँ छुप जाते हो
ऐ शहीद तुम देश की खातिर , किस देश से आते हो
भवर मैं खड़े होकर , तूफानों से टकराते हो
–विनीता श्रीवास्तव(नीरजा नीर)–