मैं तुम्हारी धरोहर

April 19, 2021 in Poetry on Picture Contest

मैं तुम्हारी धरोहर

मैं पृथ्वी बोलूँ आज अपने दिल की,

सुनू,देखूँ मैं भी तुमसा तुम ये जानो,

बोला तुम्हरा हर शब्द हर पल मैं सुनती,

सुनू वो जिसे सुन खिल उठती मैं भी,

दिल न चाहें कभी वो भी सुनना पड़ता,

देखूं उसे भी जो सँवारे सजाएं मुझको,

होता वो भी जो हर पल रौंदे मुझको,

फ़र्क रौंदने का हर का मैं भी समझूँ,

भरू पेट किसी का तो पेट मेरा भरता,

नियत नहीँ भरी होती वो रहता भूखा,

हूँ मैं तुम्हारी जननी अब तो मुझे पहचानों,

दे गए तुम्हें अपने तुम्हारे धरोहर मान मुझको,

करो संचय धरोहर की मान तुम अपना,

कल देते समय हो मुस्कान चेहरों पर तुम्हारी,

करे सलाम तुम्हें पीढियां देख धरोहर तुम्हारी।

प्रतिभा जोशी

मैं अन्नदाता

February 16, 2021 in Poetry on Picture Contest

मैं अन्नदाता

देख अपनी थाली में खाना रूखा सूखा,
हो उदास सोचे किसान फ़िर एक बार,
हूँ किसान कहलाता मैं जग में अन्नदाता,
रहता साथ अन्न के, मिले मुझे ये मुश्किलों से,
मेहनत मेरी रोटी बन भूख मिटाती जग की,
न देख सके वो सुबह सुहावनी सब सी,
पसीना मेरा शर्माए गर्मी जेठ बैसाख की,
बैलों संग मेरे हल के धरा मेरी निखरती,
बीज लिए आशाएं धरा के मैं बोता,
आशाएं अब मेरी देखें बादल वो चंचल,
आता सावन घुमड़ घुमड़ लाये मुस्कान,
मेहनत फ़िर मेरी नवांकुर धरा खिलाए,
दिन रात मेरे फसलों संग लहलहाएँ,
देख फसलें मुझ संग मेरी धरा खिलखिलाए,
सोना जग का सोना हमेशा गुमाये,
सोना खोकर सोना फसलों का मैं पाता,
धान मेरी धरा का अब घर घर जाए,
मेहनत मेरी ढल रोटी में माँ की भूख मिटाये,
भूख जग की मैं मिटाता सोता ख़ुद भूखा,
करो गुणगाण जब रोटी का माँ की ,
याद करना मेरी भी मेहनत मेरे वीरा।

स्वरचित
प्रतिभा जोशी

मां

April 17, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

लिये छः ऋतुयें आये नया साल,
हर ऋतु गुजरे मेरी संग मां के,
त्यौहार मेरे न तुमसे, संग मां के,
मेहनत मेरी ,उगले सोना मेरी माँ,
समझता मैं खिलखिलाना मां का,
सिसकता मैं देख सुखी धरा को,
सुनी सुखी आंखे मेरी देखे अंबर,
सुख गया वो भी जैसे भूख मेरी,
जा रहा मैं अब उसके द्वारे,
लिये जा रहा अपने शिकवे,
सौप दिये जा रहा मां अपनी,
विलाप मेरा भरेगा अंबर,
बन बूंदे टपकेंगे मेरे आँसू,
मेहनत से थाम लेना मेरी माँ,
जा रहा मैं अब उसके द्वारे।

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