Prithi
रात का फ़ितूर अब भी है
March 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
उस रात का फ़ितूर अब भी है
तेरे होठों से पिया था जी भरकर,
जाम-ए-उल्फ़त का नशा अब भी है ।
बहुत खलतीं हैं तुमसे ये अब दूरियाँ
क़रीब आने की वजह अब भी है ।
पास आओ, करो फ़िर वही नादानियाँ
दिल लगाने की इल्तज़ा अब भी है ।
मुझ में फ़िर से बिखर कर समा जाओ तुम
लिपट जाओ मुझसे किसी बेल की तरह
मेरे पहलू में आकर सिमट जाओ तुम
ग़र शौक़-ए-वफ़ा उधर अब भी है ।
आवारा सा दिल
March 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मैं अकेला ही ख़ुश हूँ, इन राहों में कोई साथ नहीं है
यह तनहा सी शब है, और हाथों में कोई हाथ नहीं है।
न कोई मंज़िल है अपनी, न कोई हमसफ़र मेरा
एक आवारा सा दिल है, और साँसों में कोई नाम नहीं है ।।
काश कभी गले लगाकर
March 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
सोचता हूँ अक्सर
कि तुमको देखे बिना
पता नहीं
कितनी सदियाँ
गुजर गयीं हों जैसे
और तुम
अभी भी बुन रहे होगे
मेरी दुनिया से परे
मेरे लिए
कुछ और इल्ज़ाम
कि जब अचानक
किसी मोड़ पर
मिल गए हम
तो पहना सको मुझे
झट से उन्हें
मेरे कुछ कहने से पहले ही ।
एक छोटी सी
नाराज़गी ही तो थी
या एक पागलपन
जिसे ढो रहे हो अब तक,
काश कभी गले लगाकर
बस एक बार
देख तो लेते…
शायद पिघल कर
लिपट जाता मैं भी
तुमसे
और भूल जाता
अपनी नाराज़गी
और
तेरे हाथों से मिले
वे सारे ग़म।
आज फिर से
March 15, 2020 in काव्य प्रतियोगिता
आज फिर से
खिल जाने दो रात
महकती हुई साँसों से भीगी
तेरी हँसी की ख़नक
उतर जाने दो
एक बार फिर से
रूह तक
जैसे गूँज उठती हैं
वादियाँ
पर्वत से उतरती
किसी अलबेली नदी की
कल-कल से
और तृप्त हो जाती है
बरसों से प्यासी
शुष्क धरा
मन्नतों से मिली
किसी
धारा से मिलकर ।
छोटी सी मुलाक़ात
March 14, 2020 in काव्य प्रतियोगिता
वह छोटी सी मुलाक़ात
विचरती रहती है अक्सर
स्मृतियों में मेरी ।
जब सिमट आए थे तुम
मेरी पलकों के दायरे में,
सकुचाते हुए,
छोटे-छोटे कदमों से…
मुस्कुराती हुई कोई बहार
उतर आई हो
किसी वीरान उपवन में जैसे ।
सुनो न !
एक बार फिर से भर दो
मन की सूनी टहनियों में वही फूल
तितलियों से एकाकी आकाश
और फ़िज़ाओं में उन्हीं साँसों की महक ।
सदियों तक रहेगा इंतज़ार
कभी फिर से आ जाना
उसी उपवन की देहरी पर,
सकुचाते हुए,
छोटे-छोटे कदमों से चलकर
ऐ बहार !