वो कहती नहीं …पर जताती तो है

January 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुल के भले ही न कहा हो कभी
पर अपनी “देह-बोली” से
कितनी ही बार जताती है वो
तुमसे कितना …..

कभी ख्याल किया तुमने

तुम्हारे कमरे के करीब से गुजरते वक़्त ठिठक कर कितनी ही बार
तुम्हें देख कर मुस्कुराती है वो

तुम्हारे टेक्स्ट-मेसेज़ का जवाब
अगले ही सेकेंड क्यूं दे देती है वो
फिर भले ही उसे जवाब देना
भूल ही क्यूं न जाओ तुम

मां : दो पहलू ममता के

May 8, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मां
मां

मोहब्बत

January 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मोहब्बत

मेरी कविता

January 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी कविता

मां

December 31, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

मां

ज़िस्म

December 30, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़िस्म

… और मैं खुश रहता हूं

December 29, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

PRINTING PLATE3

मर्जी उसकी

December 28, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

marji usaki compressed

मैं आंसू बटोर लाता हूं

December 28, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

सैकड़ों आंसू …. , यूं ही नहीं …. खज़ाने में मेरे ,

जब भी कोई रोता है , उसके आंसू बटोर लाता हूं .

किसके हैं … , कब गिरे थे … वज़ह …… बता सकता हूं .

उंगलियों के पोरों पर रख …
गिरने का…. वक़्त बता सकता हूं .
सफर अनज़ान ही सही .. पर खत्म किस जगह …
वो मंज़िल बता सकता हूं
आंसूओं से मिलान आसूओं का कर ..
फ़र्क़ बता सकता हूं
आंखों के….. मज़हब से …..नहीं वास्ता इनका ,
नमक क्यूं घुला… आंखों से निकलकर …
वो दर्द बता सकता हूं .
झूठी शान का है ……या भूखे पेट से टपका
चख के खारापन ……
इनका फर्क़ बता सकता हूं
मैं हर आंसू का किमिया बता सकता हूं ॥
कुछ खास आंसू भी रखें हैं , मेरे खज़ाने में ,
ज़िंदगी के दौड़ में नाक़ाम …..
और “ हासिल” से नाखुश
कई दुख के आंसू …..
बिकते ज़िस्म के भीतर . … मौजूद
पाकीज़ा रुह के .. आंसू
फिर भी …. समेट नहीं पाता हूं
एक़्वेरियम में कैद —
शीशे से झांकती
मायूस आंखों के आंसू ..
जो निकलते ही घुल जाते हैं ,
अपने ही संस्कारों के पानी में .
आसान नहीं है , हर आंख को इंसाफ़ दिला पाना
थक कर सोचता हूं , छोड़ दूं ये काम अपना
पर क्या करुं….
काम मन का हो तो , छोड़ा नहीं जाता
लाख चाह के भी मुंह मोड़ा नहीं जाता
अरे सुनी है … ये सिसकी .. अभी तुमने …
जाना होगा… मुझे ….
गिरने से पहले जमीं पर… थामना होगा उन्हें
क्या करूं , मैं हूं ही ऐसा …
शामिल .. उन चंद लोगों में….
जो बेज़ुबानों के बोल जानते हैं ,
जो उनके आंसूओं का मोल जानते हैं . ॥
………………..रविकान्त राऊत 

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