Ravikant Raut
वो कहती नहीं …पर जताती तो है
January 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
खुल के भले ही न कहा हो कभी
पर अपनी “देह-बोली” से
कितनी ही बार जताती है वो
तुमसे कितना …..
कभी ख्याल किया तुमने
तुम्हारे कमरे के करीब से गुजरते वक़्त ठिठक कर कितनी ही बार
तुम्हें देख कर मुस्कुराती है वो
तुम्हारे टेक्स्ट-मेसेज़ का जवाब
अगले ही सेकेंड क्यूं दे देती है वो
फिर भले ही उसे जवाब देना
भूल ही क्यूं न जाओ तुम
मैं आंसू बटोर लाता हूं
December 28, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
सैकड़ों आंसू …. , यूं ही नहीं …. खज़ाने में मेरे ,
जब भी कोई रोता है , उसके आंसू बटोर लाता हूं .
किसके हैं … , कब गिरे थे … वज़ह …… बता सकता हूं .