हमारे दिल की न सुनी उन्होने एक भी बार

December 1, 2015 in शेर-ओ-शायरी

उनकी सुनते सुनते हमारी उम्र निकल गयी
हमारे दिल की न सुनी उन्होने एक भी बार

अकेले होने का यह मरहला मुसलसल है

November 16, 2015 in शेर-ओ-शायरी

अकेले होने का यह मरहला मुसलसल है
यहां किसी को किसी का ख्याल कब कुछ है

 

जब भरोसा उठ जाए, तो खुद के पास खुदा रखना

November 14, 2015 in ग़ज़ल

तुम अपने गिर्द हिसारों का सिलसिला रखना
मगर हमारे लिये कोई रास्ता रखना

ज्यादा देर तक जुल्म नहीं सह सकता मैं
अब अगर आयें कडे दिन तो दिल कडा रखना

तुम्हारे साथ सदा रह सकें जरूरी नहीं
अकेलेपन में कोई दोस्त दूसरा रखना

वो कहते हैं न कि जिसका कोई नहीं खुदा होता है
जब भरोसा उठ जाए, तो खुद के पास खुदा रखना

लम्हा लम्हा जीने वालों का मक़ां कोई नहीं

November 9, 2015 in शेर-ओ-शायरी



 

वह रहे कैदे जमां में जो मकीने आम हो
लम्हा लम्हा जीने वालों का मक़ां कोई नहीं

 



 

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