“मैं”-१

March 7, 2016 in शेर-ओ-शायरी

वक्त की कलम से जिन्दगी के हँसी पल लिखने जा रहा हूँ मैं,
गमों की परछाई पर खुशियों के साये सा छाने जा रहा हूँ मैं,
गर समझ हो तो आ जाना मेरे साथ , वरना अपना ही साथ आजमाने जा रहा हूँ मैं,

मुलाकात

March 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिनके आने के ख्वाब में हम पलकों को बिछाये बैठे हैं ,
वो किसी और के ख्वाबों को पलकों पर सजायें बैठे हैं
चलों ये गुस्ताखी भी हम माफ करें , गुफ्त़गू के लिये मुलाकात करें ,
पर कब तक यूँ ही बात करें , दिन रात वफा की फरियाद करें ,
आओ हम नई शुरूआत करें ख्वाबों में ही क्यूँ ना मुलाकात करें,

“पतझड़”

March 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

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मासूम निगाहें पलकों पर आश सजोयें अब भी राह ताकती होंगी,
सबके खो जाने के गम में छुप – छुप  कर  दर्द  बाँटती  होंगी,

वो यादें बड़ी सुनहरी है उनको मैं बार बार दोहराता हूँ,
उनको हर वक्त याद कर कर ख्वाबों में गुम हो जाता हूँ,

हर वक्त इसी का इन्तजार कि कोई तो उंगली थामेगा,कोई फिर नन्हें पांवो को  सही  राह दिखलायेगा,
हर गलती पर पीछे मुड़ता की फिर कोई डाँट लगायेगा, फिर कोई बाहों में भर गालों को सहलायेगा,

वक्त की इन बंदिशों पर विजय पाना है मुझे,यादों के कटोरे से वो हंसी पल चुराना है मुझे,
एक बार फिर उसी बचपन में जाना है मुझे,पतझड़ में भी बहार सा मौसम लाना है मुझे,

गुजरते वक्त नें जब ली थी फिर से अंगड़ायी,चंद सिक्कों की कीमत फिर मुझे थी याद आयीं,
बस गुजारिश है मेरी रब से यहीं कि फ़कत में कुछ वक्त लिख दे,

सारी दौलत के बदौलत मेरा वो हंसी वक्त लिख दे,ख्वाबों के संसार में मेरा भी इक शहर लिख दे,
गर नहीं पूरी हो रही है  मेरी छोटी सी दुआ तो मेरी झोली में रंजिशों का  कहर  लिख दे ,
…सारी जिन्दगानी की बदौलत मुझे एक नयीं सहर लिख दे

चंद यादें

February 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

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वो दिन थे ये भी दिन हैं वो बचपन था ये जवाँ उम्र ,
ता उम्र रहेगी याद हमें वो बचपन की प्यारी यादें,

नभ में बादल छा जाते ही हम बारिश की राह तका
करते थे ,
सतरंगी इन्द्रधनुष को देख देख अतरंगी स्वप्न बुना
करते थे ,
कागज की नावों में सवार हो भंवरों को पार किया
करते थे ,
वो नाँव नहीं वो स्वप्न मेरे जो पानी पर तैरा करते थे ,

बचपन की सारी यादों को जवाँ उम्र जज्बातों को कागज की नाँव समेटे हैं
वो वक्त कहाँ है छूट गया लगता है मुझसे वो रूठ गया ,
आज फिर मैं उसे बुलाऊँगा सपनों के दीप जलाऊँगा,
पर उन गलियों और चौबारों को मैं कहाँ ढ़ूढ़ फिर पाऊँगा
उन जिगरी बिछड़े यारों को मैं कहाँ ढ़ूढ़ फिर पाऊँगा ,

घनघोर घटा फिर छा जाये यादों की बारिश हो जायें ,
सब यादों को मैं समेट लूँ जज्बातों को भी सहेज लूँ ,

बस एक बार फिर बादल हो बस एक बार फिर बारिश हो,
बस एक बार फिर नाव वहीं हो ख्वाबों को ले संग साथ बही जो,

गुमनामी का समंदर

February 22, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

होठों से बयाँ होता है आँखों का दर्द सुनहरा ,
जब अश्क रूठ जाते हैं किसी बेगाने की यादों में ,

हर दर्द जवाँ हो जाता बीते हुये हर उस पल सेें,
जिनकी यादों की कहानियाँ लिख गयी हैं वो आँचल से,

हर बात बयाँ हो जाती आने वाले उस कल में,
खामोशी का चादर ओढ़े तन्हाई के हर मन्जर में ,

बेनाम सा चेहरा याद कभी जो आँखों को आ जाता है ,
पलकों से बहकर आँसू अधरों से जा मिल जाता है ,

हर ख्वाब उसी से शुरू हुआ हर ख्वाब उसी पर थमता है,
ख्वाबों का भी वो ख्वाब बना ख्वाबों में नहीं वो दिखता है

भीगी पलकों पर ख्वाब समेंटे रात यूँ ही कट जाती हैं ,
जब इतंजार की घड़ियाँ भी इकरार नहीं ला पाती हैं,

वो नाम रहे गुमनाम रहे अधरों से भी अन्जान रहे,
बस दिल के हर इक कोने में उस की अपनी पहचान रहे ,

इस गुमनामी के समंदर में गुमनाम बात वो याद रहीं,
याद रहीं वो रात वहीं जिसमें वो ख्वाबों में साथ रहीं,

हर याद संजोये रखी है हर साँस संजोये रखी है ,
तेरे वापस आने की हर आश संजोये रखी है ,

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