
रकमिश सुल्तानपुरी
रंग से परहेज़ कैसा
March 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
नवगीत
आजकल है
खुब चलन में
झूठ का ये क्रेज़ कैसा ?
रंग सच का
हो अगर तो
रंग से परहेज़ कैसा ?
धर्म की
पिचकारियों में
द्वेष का भर रंग ताने ।
जाति की
लेकर अबीरें
छेड़ते कौमी तराने ।
स्वार्थ में
मदमस्त होकर
लोग रँगते जा रहे है
हो रहा
बेरंग जाने
जिंदगी का पेज़ कैसा ?
प्रेम का
सबरंग मिलकर
खेलते उनसे न बनता ।
खेलते
हुड़दंग नेता
हो रही बदरंग जनता
उड़ रहीं हैं
इन गुलालों
सी चुनावी घोषणाएं
सिर्फ़ ख़ुद को
रँग रहा है
आज का रँगरेज कैसा ?
प्रेम का
देकर छलावा
खेलकर हुड़दंग लौटे
अधखुले पर
फब रहे हैं
गिरगिटी जिनके मुखौटे
टोलियाँ में
बाँट रिश्ते
लोग अंधे हो गए हैं
पेपरों से
छप रहे ख़ुद
पूछते कवरेज़ कैसा ?
-रकमिश सुल्तानपुरी
क्या हुआ है शहर को आख़िर
March 3, 2020 in ग़ज़ल
आप सब की नज़र को आख़िर ,
क्या हुआ है शहर को आख़िर .
नफरतों की लिए चिंगारी ,
लोग दौड़े कहर को आख़िर .
चाँदनी चौक की वह दिल्ली ,
आज भूखी गदर को आख़िर .
मजहबी क्यों सियासत करके ,
घोलते हो ज़हर को आख़िर .
जिस्म से दूर रहकर भरसक ,
रूह तड़पी सजर को आख़िर .
ज़िन्दगी का हिसाब क्या दें ,
जिंदगी भर बसर को आख़िर .
ऐ ज़मानों वफ़ा मत परखो ,
फैशनों में असर को आख़िर .
खामखाँ प्यार करके ‘रकमिश’ ,
रौंद बैठे जिगर को आख़िर .
-रकमिश सुल्तानपुरी
हुड़दंग करेगे होली में
March 3, 2020 in काव्य प्रतियोगिता, हिन्दी-उर्दू कविता
फिर आज गुलालों के खातिर
बदरंग बनेगे होली में ।
अंग अंग पर रंग सजा
हुड़दंग करेगे होली में ।।
न जानेगे कितने रंग नये
चेहरों पर खिल जायेगे ।
न जाने कितने टूटेंगे
कितने दिल जुड़ जायेगे
कितनो को तो तन्हा आकर
तंग करेगे होली में
अंग अंग पर रंग सजा
हुड़दंग करेगे होली मे।।2
कुछ नये मुबारक आयेगे
चाहत मे रंग लाने को
कुछ दूर बहुत हो जायेगे
यादो में तड़पाने को
भींग किसी की बारिस में
कुछ दंग करेगे होली में
अंग अंग पर रंग सजा
हुड़दंग करेगे होली में ।।3
क्या सच्चा है इस जीवन में
रंग कौन सा झूठा है
पर प्यार में दिल से न खेलें
इस प्यार का रंग अनूठा है
कुछ आँशू भी तो बरसेंगे
बेरंग बहेंगे होली में
अंग अंग पर रंग सजा
हुड़दंग करेगे होली मेँ।।4
✍रकमिश सुल्तानपुरी
सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश