Ajay Nawal

आजादी
August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
लहू है बहता सड़कों में
आक्रोश है कुम्हलता गलियों में
लफ़्जों मे है क्यों नफ़रत का घर
आग है फैली क्यों फिजाओं में
रंगो में है क्यों बारूद भरा
क्यों दीये अंधेरों में रोते है
क्यों अजाने आज चीख रही है
क्यों आज हम गोलियां बोते है
ममतायें क्यों मायूस है आज
बचपन आज बिलख रहा है
आज क्यों जल रहे है घर
भविष्य भारत का सुलग रहा है
है अपने को आजाद कहने वाले
जरा आंखे तो उठा, नजरें तो मिला
कौन सी आजादी, किसकी आजादी
नारे लगाने क़ी आजादी
या फिर झण्डें फ़हराने की आजादी
कवितायें लिखने की आजादी
या राम-रहीम से लड़ने की आजादी
यूं सड़्कों पर नारे लगाने वाले
अभागे मायूसों को गले लगा
महगीं कारों पर झण्डे फहराने वालों
किसी किसी का तन तो ढक
है आजादी, आजाद है हम
जरा गले तो मिल, आवाज तो मिला
है अपने को आजाद कहने वाले
जरा आंखे तो उठा, नजरें तो मिला
लगा है इन्सान खुद को बनाने में
March 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
बनाया है खुदा ने इन्सान को
दुनिया बनाने के लिए
मगर देखिए क्या हो रहा है दुनिया में
लगा है इन्सान खुद को बनाने में!

कागज की कश्ती
February 26, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
कागज की कश्ती
जिसमें तैरता था बचपन कभी
बहता था पानी की तेज धारों में
बिना डरे, बिना रुके
न डूबने का खोफ़
न पीछे रह जाने का डर
जिंदगी गुजरती गयी
बिना कुछ लिखे
जिंदगी के कागज पर
लिखा था जो कुछ
घुल गयी उसकी स्याही
वक्त के पानी में बहकर
अब खाली खाली सी है जिंदगी
बहने को तरसती है
बिना रुक़े, बिना डरे
सुनो, मैंने भी एक दौर देखा हैं..
February 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
सुनो, मैंने भी एक दौर देखा हैं..
पिछले कुछ समय में मैंने एक दौर देखा हैं,
मैंने अन्ना का आंदोलन देखा हैं,
मैंने निर्भया की माँ देखी हैं,
मैंने रोहित वेमुला की लाश देखी हैं,
दिल्ली की गद्दी को बदलते देखा हैं,
जिनकी गोली नहीं, बल्कि कलम से डर था, उनकी मौत देखी हैं,
कभी जो डरकर जात छुपाते थे,
उनको खुलकर खुद को चमार कहते देखा, ,
जो खुद के रेप की रिपोर्ट लिखाने पुलिस स्टेशन तक नहीं जा सकी,
आज उसको दूसरों के हक़ के लिए लड़ता देखा हैं ,
थोड़े से समय में मैंने एक दौर देखा हैं.
सुनो, मैंने भी एक दौर देखा हैं……
जिंदगी किसी कहानी से कम नहीं
January 27, 2016 in शेर-ओ-शायरी
अब कलम उठायी है तो कुछ लिख देते है
वर्ना जिंदगी किसी कहानी से कम नहीं
कुछ मरहम लगा देते है
January 16, 2016 in शेर-ओ-शायरी
सब हर्फ़ों का खेल है इस खलक में
कुछ जख़्म देते है, कुछ मरहम लगा देते है
निकल जाते है उन रास्तों पर
January 8, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
निकल जाते है उन रास्तों पर
जिनकी कोई मंजिल नहीं
अंधेरे होते है जिन राहों में
मगर कोई अंजुमन नहीं
होते है कांटे, कंकड़
फूलों का बागान नहीं
बस इक साथी की तलाश होती है
जो हमारी तरह इन राहों पे निकला हो
दमन चक्र में घिरे हुए नर की व्यथा कौन कहे
December 29, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
दमन चक्र में घिरे हुए नर की व्यथा कौन कहे
शोषित होती नारी के, आसूओं में कौन बहे
दिखती है अंधी दुनिया मुझे अपने चारो ओर
ऐसी परायी दुनिया में बोलो कौन रहे ??
अभी तो बचा है बदलाव का बीज बनना है
November 28, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
कोई जमीन अभी भी है जहां मैं अभी तक गया नहीं हूं
कोई आकाश बचा है अभी भी जहां मुझे पहुंचना है
दो परतों के दरम्या मैं ठहरा हआ
अभी तो बचा है बदलाव का बीज बनना…
हाल बिहार के
November 8, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
ऐसी उठा पटक न देखी कभी,
न ही सुने शब्द तीखे तर्रार कभी|
ये तो entertainment का जमाना है भैया
जो जि सब होत रहत है,
वरना पब्लिक तो सब जानती है||
चाँद के शौक मे
October 28, 2015 in ग़ज़ल
चाँद के शौक मे तुम छत पे चले मत जाना
शहर में ईद की तारीख बदल जाएगी

सिमट गया चंद लफ़्जों में आज
October 16, 2015 in शेर-ओ-शायरी
सिमट गया चंद लफ़्जों में आज
ढल गये अहसास कुछ अश्कों मे आज
कहने को तमाम जिंदगी का तजूर्बा है मेरे पास
सुनने वाला कोई भी नही है आज |

जब सोचा इक दफ़ा जिन्द्गी के बारे मे
October 6, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब सोचा इक दफ़ा जिन्द्गी के बारे मे
किस कदर बसर हुई जिंदगी मेरी
क्यों भटकता रहा जिंदगीभर मुसाफ़िर बनकर
ज्वालामुखी सा जलता रहा
कभी लावे सा पिघलता रहा
आसमां को छुने की आरजू में
पतगं सा हर बार कटता रहा
हाथों की लकीरों से लडता था कभी में
अब उन लकीरों मे ही ढ़लता रहा

बरस चला सारे साल का सावन
September 27, 2015 in शेर-ओ-शायरी