सिर्फ़ बोझ न समझ मुझे

December 15, 2018 in Poetry on Picture Contest

जीना चाहती हूं मैं भी
इस दुनिया को देखना चाहती हूं
मां तेरे आंचल में सर रखकर सोना चाहती हूं
बापू तेरी डाट फ़टकार प्यार पाना चाहती हूं

मां मैं तेरा ही हिस्सा हूं
तेरा अनकहा किस्सा हूं
तू मुझे अलग कर क्या जी पायेगी
इस दुनिया की भीड़ में तू भी अकेली पड़ जायेगी

इक मौका तो दे मुझे
बापू को अपने हाथ से रोटी बनाकर खिलाऊंगी
कक्षा में प्रथम आकर मैं सबको दिखलाऊंगी
बड़ी होकर जब अधिकारी बन घर आऊंगी
बापू के सर को मैं ऊंचा कर दिखलाऊंगी

जीना चाहती हूं मैं भी
इक मौका तो दे मुझे
सिर्फ़ बोझ न समझ मुझे|

कोई अपना सा

February 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन के दर्पण पर कुछ प्रतिबिम्ब सा छा गया
कुछ कहा नही उसने पर फिर भी कुछ कह गया

जैसे भोर में कोई नया पुष्प खिल गया
हलचल सी हुई फिर हृदय के कोने में
अपनी मधुर सी मुस्कान में जैसे वो मुझे छल गया

उसके आने की आहट का बेसब्री से इंतज़ार किया
और जब वो आया तो अंग अंग खिल गया
मन मे बहुत कुछ था बताने को परंतु
होंठ न खुल सके और वो बिना बोले ही बहुत कुछ कह गया

सुध बुध खो बैठी उसकी झलक देखने को
और बातो ही बातों में वक़्त बेवफा हो गया
ख़्वाह्माखवाह मुस्कुराने लगी मैं
पता चला तो नाम बदनाम हो गया
इश्क़ में जिये तो डूबकर जिये हम
और जमाना हमे आशिक़ कह गया

जिंदगी का खेल

January 22, 2018 in शेर-ओ-शायरी

जिंदगी का खेल अब तक समझ न आया
वो दाव खेलते रहे, मैं हारता रहा

इक जिंदगी थी मेरे पास

December 16, 2017 in Other

इक जिंदगी थी मेरे पास
जो खो गयी है
रखता था जिसको बड़े सहेजकर
मेरी फटी जेब से
इक दिन अचानक सरक गयी
बिना आवाज किये
आज तलक उसको ढूढ रहा हूं
इक जिंदगी थी मेरे पास

सूखी है जमीन

February 27, 2017 in Poetry on Picture Contest

सूखी है जमीन, सूखा आसमान है
मगर उम्मीद है कायम, जब तक जान है

पीर दिल की

December 12, 2016 in शेर-ओ-शायरी

पीर दिल की संभाले बैठे थे अरसे से
आज पता नहीं कहां से बांध टूट गया|

लम्हे

October 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी

अगर लम्हों की क़ीमत जान जाएँ
हर इक लम्हे में पोशीदा सदी है

Ab khyaal bhi log loot ke le gaye

October 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Mere jajbaato ko koi nahi samjata yahan

Ghayal haalato ki koi kadr nahi kisi ko

Ek khyaal tha jo sirf apna tha

Ab khyaal bhi log loot ke le gaye

शब्दों का खेल

October 3, 2016 in शेर-ओ-शायरी

सब शब्दों का खेल है भैया
वरना लड़ाई मे तो दोनो ही हारते है

क्या रे! क्यों शोर मचाता है

September 24, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या रे! क्यों शोर मचाता है
जीवन क़ी आपाधापी में
क्यों आपा खो जाता है
बनियान तेरी फ़टी हुई
जैबों में एक कोढी तक नहीं
ब्लैक मनी ब्लैक मनी चिल्लाता है
क्या रे! क्यों शोर मचाता है

जिनका काम है लुटना
वो दुनिया को लुटेगें ही
फिर इस बात पर इतना
क्यों हैरान हो जाता है
क्या रे! क्यों शोर मचाता है

दास्ता

September 14, 2016 in शेर-ओ-शायरी

ये दास्ता कहे नहीं कही जाती
कोशिशे क़ी कई दफ़ा
मगर भूली भी नहीं जाती
गुफ़्तगु ए इश्क कभी लफ़्जों से होती नहीं
ये वो बात है जो दिल से है समझी जाती

क्या कहे, क्या लिखे

August 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या कहे, क्या लिखे
लफ़्ज है ही नही,
जो समेट सके जज्बातों को|
नहीं कोई जो समझ सके
हमारे अजीब से हालातों को |

इक अरसे बाद

May 3, 2016 in शेर-ओ-शायरी

इक अरसे बाद कुछ लिखने को जी किया
थमे थे जो अश्क आंखों में वो आज बह गये
न जाने क्या दबा था इस दिल में
दरिया बनकर बह गया आज सारा दर्द मेरा

दिलो के गम छुपाये नहीं छुपते

May 1, 2016 in शेर-ओ-शायरी

दिलो के गम छुपाये नहीं छुपते
कभी अश्कों में, कभी लफ़्जों में
निकल आते है वक्त बे वक्त
और छोड़ जाते है निशानी
खारी खारी सी, काली नीली सी

और अब नेशनलिज्म

April 1, 2016 in शेर-ओ-शायरी

पहले घर वापसी, फिर बीफ़ और अब नेशनलिज्म
और क्या क्या होगा, जो होना बाकी है

बंजर दिल को क्या खोदते हो

March 28, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बंजर दिल को क्या खोदते हो
बस दर्द मिलेगा,
और थोड़ा बहुत मिट्टी
जो खारी हो चुकी है
अश्कों के भाप हो जाने से

मोहब्बत कहां लफ़्जों में बयां होती है

March 19, 2016 in शेर-ओ-शायरी

मोहब्बत कहां लफ़्जों में बयां होती है
नज़रों का निशाने कहां अल्फ़ाज खिंच पाते है

अपनी सारी जिंदगी बदल गयी

March 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

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खेल खेलते थे तब भी हम
आज भी खेलते है
बस नियम बदल गये
कुछ नीयत भी बदल गयी

भागते रहते थे तब भी हम
हर तरफ़, चारो तरफ़
आज भी भागते है
मगर बस साथ बदल गया
जगह बदल गयी
वजह बदल गयी

इक बचपन क्या बदला
अपनी सारी जिंदगी बदल गयी!

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वाह! क्या बात है

November 21, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

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उतार दी है जिंदगी सारी कि सारी
चंद लफ़्जों में
काश कोई समझ ले कभी
इसी इंतजार में है इक मुद्दत से
कि कभी कोई मेरे लफ़्जों को गढ़ ले कभी|
सीधे सपाट शब्दों में कह देता हूं
अपनी आपबीती, दास्ता अपनी
थोडी सी भीगी भीगी,थोडी सी सूखी
लोग कहते है “वाह! क्या बात है”

– Anirudh

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