जब भी मैं तुझसे

January 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब भी मैं तुझसे कहीं पर मिलता हूँ,
सोचता हूँ कि कम से कम आज तो,
तेरे आँचल में सर रख कर तुझको
निहारता हूँ,
इसी तमन्ना में अक्सर मेरा तुझको यूँ ही देखना,
मेरे देखने पर तेरा शरमा कर नज़रे झुका लेना,
फिर तिरछी निगाहों से मुझे खुद पर से नज़रे हटाने को कहना
मेरा नज़रे तो हटा लेना पर, अगले ही पल,
दिल में हजारों सवालों का आ जाना,
कि,
कैसे हटा लूँ ये नज़र तेरे चेहरे पर से,
जब मेरी आँखों को सिर्फ इसी ताज से चेहरे को,
देखने की आदत पड़ गयी हैं,
चलो इन नजरों को हटा भी लिया
तो इन हाथों का क्या करूँ,
जिन्हें बस तेरे उन छोटे से कोमल हाथों के
स्पर्श की आदत पड़ गयी हैं,,
चलो इन हाथों को हटा भी लिया
तो इन क़दमों का क्या करूँ,
जो सिर्फ तेरी झरने सी आवाज सुन कर,
खुद-ब-खुद ही तुझ तक बढ़ने लगते हैं,
चलो इन क़दमों को भी थाम लिया,
तो इन होंठों का क्या करूं,
जो अक्सर मिलते हैं तो सिर्फ तुम्हारे
उस प्यारे से नाम की इबादत करने के लिए!!!
चलो इन होंठो को भी सीं लिया तो
इस दिल का क्या करूँ,
जिसके हर एक कोने में बस,
तुम ही तुम रहती हों!!!
चलो इस दिल को …………………………

बात

December 12, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो बात हम में हैं,

वो बात ना तुझ में हैं और ना ही मुझमे!!!

मुबारक

December 10, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुबारक हो तुमको एक नई रोशनाई,,
चाहतों के समुंदर की प्यारी गहराई,,
क्या तोहफा दूँ तुमको, समझ नहीं आता,,
तुमने ने तो सारी दुनिया हैं महकाई,,

हर तरफ अपनी मुस्कान बिखेरते रहना,,
गमो को तो बस भैस चराने भेज देना,,
शोपिंग करना, चहकते रहना, संवरते रहना
अगर कोई सड़ता हैं तो उसे सड़ने देना!!

सूरज से तेज किरणों में भी गुलाब सी महकती रहना,,
खाली बैठकर कभी कभार हमको भी याद करती रहना,,
इस ज़माने में बचाना चाहती हो अगर अपना वजूद तो,,
आठवां फेरा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने खातिर ले लेना,,

हाँ,, मैंने लोगो को बदलते देखा हैं!!

December 4, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाँ,, मैंने लोगो को खुद में ही बदलते देखा हैं!!
उनके जज्बाती हम को अहम बनते देखा हैं,
कल तक जो सबको साथ लेकर चलने की बात करते थे,,,
आज उनके खिलाफी ख्वाबो को भी अनाथ होते देखा हैं!!

गलत सोचता था कि नाराजगी,,
होती हैं चाँद लफ्जो की दगावाजी,,
उनके प्यारे सावन से मिलकर जाना,,
ये तो सुनामी की हैं कलाबाजी!!
मगर सुनामी से ही सागर को उझड़गते देखा हैं,,
हाँ,, मैंने लोगो को खुद में ही बदलते देखा हैं!!

तुझे भी दगा देना हैं तो शौक से दे दिल,,
हम तो साँसों से भी काम चला लेंगे,,
घुट घुट कर जी जाऊंगा मैं इतना कि,
सावित्री की याद यमराज को दिला देंगे!!
अधूरेपन से खुद को आबाद होते देखा हैं,,
हाँ,, मैंने लोगो को खुद में ही बदलते देखा हैं!!

छु न सके हथियार

November 14, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

छु न सके हथियार जिसे, उसे वो नजरो से घायल करते रहे,,
हम भी बने हिम्मती इतने,, वो वार करते रहे, हम हलाल होते रहे!!
कल तक मिल्कियत की जिसकी मिसाले देता था जमाना,
उसे ही वो होठों के जाम पिलाते रहे,, हम भी शौक से पीते रहे!!
कुछ तो बात हैं कान्हा, जो सितारे उसे चंदा समझ लेते हैं अक्सर,,
काश!! वो भी मेरी ख़ामोशी समझ पाए और  हम भी उन्हें देखते रहे!!

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तस्वीर

October 20, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत दिन हो गए उसके ख्यालो की आंधी में बसे हुए,,

चलो आज उसकी एक तस्वीर बनाते हैं,,

 

उसकी अल-कायदा सी आँखे हैं,, जो बस मार ही डालती हैं,,

उसकी बुलडोज़र सी बाते हैं,, जो बस गिरा ही डालती हैं,,
लगता हैं उसके बाप का किसी कसाब से तगड़ा रिश्ता हैं…
वरना ताज की खूबसूरती को यूँ ही नहीं चकनाचूर कर डालती हैं…

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आतंकबादी

October 17, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं क्यों सोचु वो मेरे बारे में क्या सोचेगी,
मुझे अच्छा लगता हैं उसे रोज सुबह सुबह गुड मोर्निंग विश करना,,
जानता हूँ कोई रिप्लाई नहीं आएगा फिर भी उसके मैसेज का इन्तजार करना ,,,
अरे अच्छा लगने से याद आया कि वो जब अपने दांतों के बीच में पेंसिल को दबा कर कुछ सोचती हैं,,
हाए
क़त्ल-ए-आम हो जाता हैं,
कई बार तो मुझको लगता हैं की सरकार को उस बैन लगा देना चाहिए,,
यार इतना बड़ा कातिल आजाद कैसे घूम सकता हैं,,
यानी कातिल तो AK- 47 ले कर घूमते हैं सडको पर,,
बड़े बड़े हथियार ले कर लोगो को कैद में रख कर परेशान करते हैं
और वो ना ही किसी की ओर देखता हैं,,
और ना ही किसी को भाव देता हैं,,
मगर लोग बाग़ हैं कि पागल हुए पड़े हैं उसकी कैद में जाने खातिर,,
पहली बार देखा हैं ऐसा आतंकबादी

दर्द- इश्क और ज़िन्दगी

September 28, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

लड़कपन की बात ही कुछ और थी, तब तो मेरी भी आँखों में सपने सुहाने थे !

हाथों में हाथ डाल कर, सीखेगी दुनिया हमसे प्यार करना, कुछ ऐसे वादे हमारे थे!

चलता तो रहा मैं सिर्फ उसको देख कर, उस पर विश्वास कर, अनजानी सी राहो पर,

पर छोड़ अकेला मुझे वो चला ही गया, बिना कुछ बताये खुद की बनाई हुई नयी राहो पर!!

 

ना जाने ऐसा क्या था उसी में, जो टूट कर मैं इतना बदल गया,

शराब के नाम से नफरत करने वाला, आज उसी में सिमटता रहा,

देरसबेर तक यूँ  ही मैं नशे में अकसर चूर रहने लगा,

एक दिन ना जाने कब मेरी आँख लगी और मैं सो गया,

जब देखा ख्वाब तो, वो मेरे सामने खडी थी,

उसकी आँखों से बह रही आंसुओ की लड़ी थी!!

बोली, तुम्हे छोड़ कर मैं बहुत पछता रही हूँ,

पर फ़िक्र मत करो, तुम्हे भी अपने पास बुला रही हूँ!!!

जब टुटा ख्वाब का ख्वाब, तब मैं सुन्न पड़ा था,

मेरा पार्थिव जिस्म धरती पर बेसुध सा पड़ा था!!

आस पास में मेरे, लोगों का मेला सा लगा था,

उसी बीच में मेरी माँ का तो रो रो बहुत बुरा हाल था,

किसी कोने में खड़ा छोटा भाई भी मुझे धिक्कार रहा था!!

बाबा तो मानो बेजान से हो गये थे,,

बाकी बचे लोग मुझे नहला रहे थे,

देखते ही देखते चार लोगों ने मुझे अपने कंधो पर रख लिया,

थोड़ी देर में ही सफ़ेद कपडे में लपेट कर लकड़ी से ढक दिया,

कुछ लोग मेरी अच्छाइयों के बारे में एक दूसरे को बतला रहे थे,

इसी बीच घरवाले मेरे शरीर को अग्नि के हवाले करवा रहे थे,

 

ज्यों ही लगी मेरे तन में आग, फट से मेरी आँख खुल गयी,

सपना था ये सोच कर, मेरे रोमरोम की हर एक कली खिल गयी,

तब मुझे ये समझ आई कि, ये जिंदगी तो बस गिरवी हैं,

इस पर माँबाप, भाईबहन, दोस्त सब का हक हैं,

यह सिर्फ एक माशूका के इर्दगिर्द नहीं सिमटी हैं,

ज़िन्दगी की क्या कीमत हैं, एक सपने ने मुझको सिखा दिया,

दर्द तो अभी भी बहुत होता हैं पर,

 

दर्द को ज़लील कर फिर से मुसकराना जीना सिखा दिया,

तो कहना !!!

September 25, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी गौर से देखना खुद को आईने में, खुद ही खुद में ना खो जाओ तो कहना,,

कभी पासजाकर देखना गुलाब के, खुशबुसे खुद ही ना बिखर जाए तो कहना,,

बहुत नाज़ कर रही हैं लहरे आज कल खुद के इठलाव, बलखाव, झुमाव पर,

आपकीजुल्फों के लहराव तले,लहरे खुद ही खुद में ना डूब जाए तो कहना !!!

 

चाँदबड़ा पागल हैं, कहीं और से रोशनी पाकर बहुत ही ज्यादा इतराता हैं,

देख ले तुम्हे ज़रा सा एक बार,पसीने में लथपथ ना हो जाए तो कहना !!!

 

बहुत गुरुर करती हैं किताबे अपने, अनगिनत, स्थायी, माधुर्य शब्दों पर प्रतिदिन,

 

वर्षो तक आप पर लिखते रहने पर भी उसकेशब्दकमनापड़ जाए तो कहना !!

इतना आसान

September 20, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतना आसान हूँ मैं कि हर किसी को समझ में आ जाता हूँ,,
शायद तुमने ही मुझे पन्ने छोड़-छोड़ कर पढ़ा था!!
इसलिए हक हैं तुझे,, तू भी तो मुझसे दूर सकता हैं,,
मेरा भी मन तो तेरी खातिर दुनिया को भुला बैठा था!!
मगर इतना गुमान जरूर हैं मुझे अपने वजूद पर कि,,
तू मुझसे दूर ही जा सकता हैं, मगर भुला नहीं सकता!!!
न तो मैं अनपढ़ रहा, और ना ही काबिल रह पाया,,
ऐ इश्क,, खाम-खाँ तेरे स्कूल में मेरा हुआ दाखिला था!!!!

मगर एक छोटा सा वादा,, मेरी इस उम्र से ज्यादा,,
तुझसे करता हूँ मैं सनम,,
जब तक टूट कर बिखर ना जाए तू भी किसी के इश्क से,
तब तक मैं भी टुकडो में जिंदा रहूँगा तेरे खुद के रश्क में,,
फिर निःसंकोच तुम मेरे पास आना,, और फिर चाहे
तू रुक जाना मुझमें,, या मैं ठहर जाऊंगा तुझमें,,,
शायद तभी हम एक – दूसरे को,,
खुद से भी बेहतर समझ पायेंगे

धड़क

September 18, 2015 in शेर-ओ-शायरी

ऐ दिल,,,, सिर्फ धड़क

उस नजर से नहीं

September 17, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

वक़्त बदलेगा किसी वक़्त पर सोचा इस कदर से नहीं,
पिलाकर नजरो से हाला, फिर बोला कम जहर से नहीं,,
इज्जत बहुत हैं तेरी दिल में, तुझसा दोस्त ना पाऊँगी,
मैं प्यार तुझी से करती हूँ,, मगर उस नजर से नहीं,,

उसने तो हर एक बात को ऐसे मुंह उठाकर बोल दिया,,
मेरे हर एक ख्वाब को बस,, तराजू जुटाकर तोल दिया,
कहाँ खोजूं उस नजर को यारो, हर नजर ने राह को मोड़ दिया,,
Amazon, snapdeal फेल हो गये, गूगल ने भी हाथ जोड़ दिया,,
खेलने कूदने की उम्र हैं उसकी,, मेरे ख्यालो संग भी खेल गई,,
खुद तो गेंद से बन गई फूटबाल, पर मेरे जज्बातों को पेल गई,,
उसको मैं कैसे समझाऊ,, जब आँखों को उसकी चुल्ल हो जाएगी,,
उसका हाल तो वो ही जाने,, मेरी तो जिन्दगी लुल्ल हो जाएगी !!
उसके दिल की इज्जत को रखकर मैं कौन सा आचार डालूँगा,,,
यादो में ही रखना अब मुझको,, तेरा राहगीर नहीं बन पाऊंगा,,
भुला दूंगा दिल से तुझको, पर मुमकिन धड़कन से नहीं,
मैं प्यार तुझी से करती हूँ,, मगर उस नजर से नहीं,,

बारी हैं!!!

September 14, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत सो लिए हम,, अब हमारे जागने की बारी हैं!!!
बहुत लूटा परिंदों ने, अब तड़पने की उनकी बारी हैं!!!
मन हमारे अकेले थे, सो वार कर गये वो हम पर,,
अब एकजुट होकर कुछ कर गुजरने की बारी हैं!!
28 राज्य और 3 देशों में बिखर कर रह गया इंडिया,,
अब इंडिया को अखंड साम्राज्य भारत बनाने की बारी हैं!!!

अंदर-अंदर क्यों घुटीयाते हो!!

September 12, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन में जो इतने ख्वाब बने, वो आखिर किसे समझाते हो,
लिखते इतना अच्छा हो पर जताकर किसको पास बुलाते हो,,
तुम्हारे मन में भी फिर-फिर कर यह सवाल आता होगा,,
बहुत हरे-भरे रहते हो, पर अंदर-अंदर क्यों घुटीयाते हो!!

बचपन में कुछ ऐसा हुआ, लगने लगा मन हुआ बड़ा,,
ह्रदय संजोये प्रेम-भाव फिर, पलटने जग हुआ खड़ा!!
देखकर उसको मैं अकसर, बस उसमे ही रम जाता था,,
पास उसको पाकर तो दुनियादारी से मन उठ जाता था!!
आज पास नहीं हैं वो मेरे,, बस नयन बसाये रखता हूँ,,
निकल न पाए वो यहाँ से, सो अश्रु-बूंद तक नहीं बहाता हूँ!!
दूर हैं अब तलक मुझसे, बस मुहब्बत-ए-लड़कपन ने लाचार किया,,
अगर बनता जिद्द वो मेरी तो, खुद शाम तक बांहों में होता पिया!!
मेरे नादान-आवारापन पर, हाये उसका पावन भोलापन,,
ख्याली बंजारेपन में भी सावन बनने का सयानापन,,
अब क्यों खामखां मन के भावों को यूँ ही रचियाते हो,,
बहुत हरे-भरे रहते हो, पर अंदर-अंदर क्यों घुटीयाते हो!!

मन हमारे आजकल अपनेपन की परिभाषाये

September 9, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन हमारे आजकल अपनेपन की परिभाषाये बदल रहे हैं,,
सारे प्यारे दोस्त हमारे,, अब भीड़ सामान ही लग रहे हैं,,
पराई नगरी में भी अकसर लोगों में घुल जाया करता था,,
अब खुद की बस्ती में भी यूँ हीं,, तनहा- मारे रम रहे है,,

ये कैसा अजीब सा मोड़, मेरी ज़िन्दगी में आ रहा हैं..
अब दिल कुछ ज्यादा ही हावी, दिमाग पर हो रहा हैं..
जो सुकून मिला अकसर, माँ की गोद में सर रखकर,,
आज उसे ही पराये मन के करीब पाना चाह रहा हैं,,

कहीं पर तो होगी वो भी जिससे मैं अपने जज्बात बयां कर पाऊंगा,,,
बस पास जिसके होने पर,, धरती पर ही जन्नत महसूस कर जाऊँगा..
जब भी थक कर मैं अक्सर अपनी हर-एक शाम को पाऊंगा,,
गोद में रख कर सर उसकी बस आँखों में खो जाऊँगा,,
फिर धीरे-धीरे मेरे बालो को वो कुछ इस तरह से सहलाएगी,,
तितली चखती पुष्प-रस फिर ख्वाबों में शहद पिरो जायेगी,,
सिंगल बाबु कैसे समझाऊँ, क्या-क्या साज दिल में बजा करेंगे,,
सुनकर स्वीटू, एंक, अंकु, सारे ख्वाब हकीकत बन जाया करेंगे,,
अकसर सुन कर अल्हड़ बाते,, यूं ही मुझसे रूठ जाया करेगी,,
चुपके से मैं उसको मनाऊंगा और वो मन ही मन मुसकाया करेगी,,
पर दिल कुछ ज्यादा ही हावी, अब दिमाग पर हो रहा हैं..
जो सुकून मिला अकसर, माँ की गोद में सर रखकर,,
उसे ही आज पराये मन के करीब पाना चाह रहा हैं,,

जहाँ तो सबका हैं,,

September 6, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये जहाँ तो सबका हैं,, जिसे हम सबने मिलकर संवारा हैं,,
बस किसी गर्दिश की बंदिश में फंसा मेरा सितारा हैं,,
कहती,, मंजूर नहीं उसको सामने खुदा के भी हाथ फैलाना,,
अतः मेरे हाथ वाले कटोरे में गोलगप्पे खाने का हुकुम हमारा हैं,,

अब तू ही बता दे,, क्या बताऊँ इन सबको तेरे बारे में,,
मेरी निगाहों में ढूंढ़ता तुझको पागल ये जहाँ सारा हैं!!!

जब फिज़ाओ में महके मेरी नज्म के चर्चे, तब हुई चुगलियाँ,,
उसकी बज्म से बह रहा एक-एक लफ्ज़ वाला दर्द हमारा हैं!!!

दूर सही मजबूर सही,, लेकिन कुछ तो अपनी सी बात हैं इनमें,
आखिर जमीं को उसी की तपन से पनपी कुछ बूंदों का सहारा हैं!!

आसान नहीं यहाँ, “अंकित” हर किसी का भीष्म बन जाना,,
कवच चीरते हर-एक तीर को आशीष देता हाथ तुम्हारा हैं!!

खुद से परेशान

September 5, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

सबका जन्मदिन आता हैं, आज तेरा भी हैं, इसमें खास कौन सी बात हैं
जो हाथ जोड़े, गिड़गिड़ाये, उसकी ही सुनते हो तुम,, ये कौन सी बात हैं,,
कितनी भी परिक्षाये ले लो तुम इस सुदामा की,,
मगर कृन्दन पुकार इस सीने से नहीं निकलेगी,,
और तू भी इतना जरुर याद रख्नना कान्हा कि,,
जब जब मेरा दर्द उबलेगा,,
भाप बनकर तुझ तक जरुर पहुंचेगा,
और जब ये ख़ामोशी से तेरे पास पहुंचेगा,,
तेरे सिंहासन में हालन जरुर ले आएगा,,
फिर जब तेरी कुदृष्टि वाली सुमति से मेरा जीवन परिचय होगा,,
इतना दर्द होगा उस वक़्त तेरे दामन में कि,,
सीने का लहू भी बनकर जल बह जाएगा!!
मैं अभी तलक खामोश हूँ और चुपचाप अकेला चल रहा हूँ,,
इसका अर्थ कदाचित ये नहीं कि,,
मैं कमजोर हूँ,, या हालातो से हार मान बैठा हूँ,,
यत्र – तत्र – सर्वत्र बसते हो तुम,, सब जानते हो,,
मगर फिर भी इतना जान लो तुम कि,,
सिर्फ कुछ पल हौसले खातिर लोग तुम्हे,
मंदिरों, घरों, दिलों, नजरो में “अंकित” रखते हैं,
क्योंकि अर्जुन को भी कुरुक्षेत्र जीतने खातिर,,
सारथी कृष्ण की जरुरत पड़ती हैं!!
अगर तुम मेरा साथ दे भी देते हो फिर भी,,
मुझे तुम्हारा साथ पाकर मोक्ष नहीं चाहिए,,
क्योंकि मेरे माता- पिता गुरुओं ने,,
मुझे कर्म प्रधान रहना ही सिखाया हैं!!
मान लेता हूँ मैं भी कि मैं एक इंसान हूँ ,
सो एक ही जगह पर खुद से बेहतर कुछ भी अच्छा नहीं लगता,,
मगर तू तो फिर भी तू ही हैं कान्हा,,
इस केवट कि जीवन नैया पर श्री राम बनकर,,
विराजमान हो जाओ,, बेशक फिर,, मेरी एक गलती पर,,
मेरे ही टूटे रथ के पहिये से मेरा संहार कर देना,,

……अंकित तिवारी ……

क्लास में अकेले

September 2, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख्वाबो में भी अकेले होने पर जब बस शब्दों का सहारा होता हैं,,
खुद की आधी-अधूरी सुनने पर भी जब मन छठपटा रहा होता हैं,,
हालातों से बाहर आते ही जब ख्यालात नजर आ जाते हैं,,
ह्रदय हारकर तन बिसराकर खुद वहाँ पहुँच तो जाते हैं,,
फिर आसमान को समेटने की चाहत जब हाथ फैलाये रखती हैं,,
खुद को महसूस करने खातिर जब स्वतः आँख बंद हो जाती हैं ,,
तब हौले से एक कोयलिया स्वर ह्रदय-चीर मन बस जाती हैं,,
आँखे खोली, कुछ नहीं पाया, पर दिल की कली-कली खिल जाती हैं,,
तब मंद- मुसकाता सा एक चेहरा आँखों में बस जाता हैं,,,
पास में ना होकर भी वो बस सामने नजर आ जाता हैं,,,
कब होगा वो साथ में मेरे, दिमाग खुद सवालिया रहता हैं,
दिल उसको समझाता हैं, झांक के देख वो मुझमे रहता हैं,,
उसकी कल्पनाओ से परे तुझे अपने भविष्य की नीव रखनी हैं,,
हासिल हो उसे भी मुक्कमल जहाँ,, ऐसी फरियाद तुझको करनी हैं,,

कविता

August 29, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी की साँसों में जो घुल कर बोले,, उसका नाम कविता हैं,,
आत्मा को जो परमात्मा से मिलाये,,  उसका नाम कविता हैं,,
नवयुवती श्रृंगार हैं करती,, ना जाने किन किन बहानो पर यहाँ,,
वृधा को जो भावनात्मक परिपूर्ण कर दे,, उसका नाम कविता हैं,,

रुक्मणी,, जामवंती मिली हजारो एक से बढ़ कर एक यहाँ,,
पर जो राधा को श्याम से मिलाये,, उसका नाम कविता हैं,,

हर इंसान है प्यारा मेरा,, सबको मेरी फ़िक्र यहाँ,,
पर जो किसी भूले की फ़िक्र करा दे,, उसका नाम कविता हैं,,

गजले सुन-सुन कर सब,, हँसते – नाचते रहते हैं यहाँ,,
पर मेरी पीड़ा को जो खुद में बसा ले,, उसका नाम कविता हैं,,

होता

August 20, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

काश! मेरे चाहने भर से मेरे पास वो होता ।
खुद से जाग कर के वो मुझी में सो गया होता ।
दौलतें सारे जहाँ की मैं लुटा देता उसी पर गर,
ज़रा सा मुस्करा कर उसने मुझको खरीद लिया होता ॥

निहायती खूबसूरत रूप ना आँखों में बसाया होता ।
नयन अंकित समर्पित भाव, काश! उसने भी पढ़ा होता ।
गौर करता वो भी मेरी बाते, मेरी आदते, फरियादें,
उसने मुझसे तो क्या, खुद से ही प्यार कर लिया होता ॥

लड़कपन मुझ में भर आया, हुआ तहलका-ए-स्वांग ।
लता ने कल्प मन भरमाया, हुआ तहलका-ए-स्वांग ।
सबने खुद को खलनायक माना, पढ़कर किस्सा मुहब्बत का,
मैं उसी किस्से का नायक बन गया, हुआ तहलका-ए-स्वांग ॥

जिंदगी

August 18, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

आख़िरकार थक कर जिन्दगी मुझसे बोल ही पड़ी!!
यूँ कब तक खुद से भागते रहोगे, जरा सा ठहरो,
ठंडा-वंडा पानी पी!!

जरा झांक कर तो देखो अपने अतीत में,
जरा नजरे तो मिलाओ पुरानी प्रीत से!!

जब देखा पीछे मुड़ कर वाकई कुछ सुहानी यादे खड़ी थी!!
आँखों में बसी कोई मूरत बाहें फैलाए सामने खड़ी थी!!
कही पर ज्येष्ठ के माह में भी बर्फवारी हो रही थी!!
कही पर रातों को भी सूरज की किरने नहला रही थी!!

आरज़ू रहती थी दिल में कि, आग में भी ठंडक हो!!
रेगिस्तान में भी कमल की बरकत ही बरकत हो!!
आसमान में खिली तारो की हर एक लड़ी,
हाथों में उनकी किस्मत की हरकत ही हरकत हो!!

कभी चाँद को देख कर मन का रोम-रोम खिल जाता था!!
आज ज़िन्दगी सर्कस हैं फिर भी हंसना नहीं आ रहा था!!

कभी अपने गमो से, कभी दूसरो की खुशी से,
आँखों से अश्रुओं की लड़ी बह रही थी!!!
आज मेरी अपनी किस्मत मेरी ही,
बेबसी पर हँस रही थी!!

अब लगता हैं की ये तो सिर्फ एक सपना हैं!!
एक सपने को सच मान बैठे,
शायद कसूर सिर्फ और सिर्फ अपना हैं!!
पर नव वर्ष में इन सबको नहीं दोहराना हैं!!
पर नव वर्ष में इन सबको नहीं दोहराना हैं!!

इश्क किया तूने खुद कान्हा–1

August 13, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या अजब दिन था वो, क्या गजब था जहाँ,
मैं था बहती नदी, वो था सागर समां!
यूं तो इश्क किया तूने खुद कान्हा,
अब तू ही बता तेरी क्या हैं सलहा!!

मेरे दिल की यही, तमन्ना रही,
आँखें कभी भी किसी से, लडे ही नहीं,
पर जब तुम मिले, नैना तुमसे से भिड़े,
ऐसे उलझते गए, फिर सुलझ ना सके!
मन की गंगोत्री से, प्रीत की गंगा ,
स्वयं ही बहने लगी, मैं रोकता रहा!!
यूं तो इश्क किया तूने खुद कान्हा,
अब तू ही बता तेरी क्या हैं सलहा!!

 

कमलनयन भँवर में मैं फंसने लगा
बनकर घटा वो मुझ पर बरसने लगा!
दिल में जो बात थी, हर पल अधूरी रही,
कभी तुम सुन ना सकी, या मैं कह ना सका!
दिल का सारा एहसास तू ही तो मेरा हैं,
उस एहसास को ये एहसास मैं दिलाता रहा,
व्यर्थ की बात पर, खुद के एहसास पर,
रूठती तुम रही, मैं मनाता रहा!!
दूर खुद तुम गयीं, पर जताती रही,
इन दूरियों का मैं ही तो कारण रहा!!
यूं तो इश्क किया तूने खुद कान्हा,
अब तू ही बता तेरी क्या हैं सलहा!!

तुम ही हो

August 12, 2015 in गीत

कैसी कशिश हैं तुम्हारी आँखों में, पल में छपा दिल में अक्स तेरा,,
मुझसे जुदा अगर हो जाएगा तो रब से भी छीन लाऊंगा सदा,,

Because you are the one,
Only you are the one,
My destiny is only you are the one,,
Tell a way,, I wanna rule your heart,,
As you seem to be my dream one..

तू हैं मेरी,, मैं हूँ तेरा,, कुछ भी और हमारा नहीं,,
ये मेरा दिल भी हैं घर तेरा,, जिसमे गम भी तुम्हारा नहीं,,
तेरे होठों की हर-एक मुस्कान पर मैं,,हाँ वार दूँ ये सारा जहाँ,,
क्योंकि तुम ही हो, अब तुम ही हो,,
मेरी आरज़ू अब तुम ही हो,,
मेरा यार भी,, ऐतबार भी,,
मेरा प्यार भी अब तुम ही हो,,

मेरे दिल में तेरी यादें,,
ऐसी बसी फरियादे,,
तेरी यादों में हर पल गुज़ारा,,
आके तू मिल जा,, मुझको दुबारा,,
यूं तो इश्क किया तूने खुद कान्हा,,
अब तेरी क्या हैं सलाह,,

अब बोल भी दे ,, मुस्करा भी दे,,
तेरे दिल में हैं वो बता भी दे,,
यूं ना तू मुझको तडपा,,
अपने दिल में तू बसा भी ले,,

कितनी दूर है

August 10, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितनी दूर हैं अंबर धरती, क्या प्यार कभी कम होता हैं,,
गर सीने में हो दर्द धरा के, छुप छुप कर आसमां रोता हैं!!
कभी फव्वारे, कभी फिर पानी, कभी पत्थर दिल होता हैं,
पाकर नवीन सा सूक्ष्म प्यार, धरा का मन गदगद होता हैं,
हजारों फ़ोन कॉल्स सुनने पर भी एक नंबर का इंतज़ार होता हैं,
मेरी नज़र में ओ दीवानों प्यार यही बस होता हैं!!

अगर हो तकरार भूमि गगन में, भू भी कहाँ खुश रहती होगी,,
कहीं पर बंजर, कहीं पर जंगल, कहीं फिर बर्फानी सी होगी!!
अंबर भी कौन सा ऊपर खुश होकर गाता होगा,,
धरती को झकझोरने खातिर खुद तूफान लाता होगा!!
जो ना माने फिर भी पृथ्वी, फिर सूरज संग टकराता होगा,,
जैसे ही कुछ सुखी धरती, मेघ बन बरस जाता होगा,,
पाकर पावन प्यार धरा पर, फिर वसंत राज होता हैं,,
मेरी नज़र में ओ दीवानों प्यार यही बस होता हैं!!

 

लूटा है

August 5, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

झील सा जिस्म ओढ़ कर तुमने मुझको लूटा हैं,
ईश्क से बुखार कर देने वाली बातो ने मुझको लूटा हैं,
शौक नहीं था मुझे मर मिटने का मगर,
आपकी नशीली निगाहों ने मुझको लूटा हैं!!

बिखरी हैं खुशबु हर जगह आपकी साँसों की,
मुझे तो इस कातिल हवा ने लूटा हैं!!

बहुत खूब हैं आपके हुस्न की हर एक अदा,
आपने तो चाँदनी को भी चाँद से लूटा हैं!!!

कवि कोई ऐसा गीत सुना

July 27, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

कवि कोई गीत सुना ऐसा ये जग दीवाना हो जाए,
कोई बंदा बैरागी बने, कोई मरदाना हो जाए!!

भाईचारे की डोरी से, बंधा हुआ हर गाँव मिले,
धुप में झुलसे मानव को, तरुवर की ठंडी छाँव मिले,
कोई गोकुल सा गाँव लगे, कोई बरसाना हो जाए,
कोई बंदा बैरागी बने, कोई मरदाना हो जाए!!

गीतों से सबको प्यार रहे, गीतों के रंग हज़ार रहे,
रामायण भगवत गीता से, झंकृत जीवन के तार रहे,
मानस में गूंजे गुरुवाणी अंतस ननकाना हो जाये,
कोई बंदा बैरागी बने, कोई मरदाना हो जाए!!

शब्दों का सहारा

July 25, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख्वाबो में भी अकेले होने पर जब बस शब्दों का सहारा होता हैं,, खुद की आधी-अधूरी सुनने पर भी जब मन छठपटा रहा होता हैं,, हालातों से बाहर आते ही जब ख्यालात नजर आ जाते हैं,, ह्रदय हारकर तन बिसराकर खुद वहाँ पहुँच तो जाते हैं,, फिर आसमान को समेटने की चाहत जब हाथ फैलाये रखती हैं,, खुद को महसूस करने खातिर जब स्वतः आँख बंद हो जाती हैं ,, तब हौले से एक कोयलिया स्वर ह्रदय-चीर मन बस जाती हैं,, आँखे खोली, कुछ नहीं पाया, पर दिल की कली-कली खिल जाती हैं,, तब मंद- मुसकाता सा एक चेहरा आँखों में बस जाता हैं,,, पास में ना होकर भी वो बस सामने नजर आ जाता हैं,,, कब होगा वो साथ में मेरे, दिमाग खुद सवालिया रहता हैं, दिल उसको समझाता हैं, झांक के देख वो मुझमे रहता हैं,, उसकी कल्पनाओ से परे तुझे अपने भविष्य की नीव रखनी हैं,, हासिल हो उसे भी मुक्कमल जहाँ,, ऐसी फरियाद तुझको करनी हैं,,

पहली बारिश

July 14, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

शायद इस पहली बारिश में कल वो भी मेरी तरह नहाया होगा,,

कामकाजी दौर में धुंधला चुकी कुछ यादो को यादकर वो भी मुसकराया होगा।।

 

हम उस वक्त बस ऐसे ही घास पर लेटे हुए थे,,

ख़ामोश पड़े उस मंजर में नजरो से बोल रहे थे!!

अचानक शरारती बादल गरजकर बरसने लग गए थे,,

सिर्फ भीगने से बचने खातिर हम भाग खड़े हुए थे!!

भागते भागते जब तुम्हारा पैर अचानक मुड गया था,,

तब तुम्हे थामते- थामते मैं खुद नीचे गिर गया था!!

तुम उस वक़्त कितनी खिल- खिलाकर हँस पड़ी थी,,

I’m sorry I’m sorry बोलते-बोलते बार-बार हँसे जा रही थी!!

मालूम नहीं हँसते-हँसते कब तुमने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया था!!

मेरा तुम्हारा पहला स्पर्श,, हाए!! कितना कोमल और नरम हाथ था!!

फिर हम ऐसे ही हाथो में हाथ डाले उस बारिश में धीरे धीरे चल दिए थे,,

बातो ही बातो में ना जाने कब मैं बाबू और तुम बेबी ना जाने कब बन गए थे!!

हमने उस बारिश को पहली बार बांहे फैलाए महसूस किया था,,

पहली बारिश में ऐसे पहली बार भीगना मन को बहुत भा रहा था!!

सावन तो हर बार ऐसे ही बरसता था,,

मगर इस तरह पहली बार बरसा था!!

भीगकर उन भीगे हुए हसीं लम्हों में खुद को फिर उसने खुद की ही साँसों से सुखाया होगा,,

कामकाजी दौर में धुंधला चुकी उन यादो को यादकर वो भी मुसकराया होगा।।

 

 

छुअन

July 10, 2015 in शेर-ओ-शायरी

कल उसने दिल को कुछ ऐसे छुआ कि साँसे तो थम गई पर धडकनें दौड़ने लगी !!!!

lafz

July 5, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरे हर-एक लफ्ज़ के मुताबिक़ हमको इक रोज बिछड़ना हैं,,

तेरा हाल तो तू ही जाने, हमे तो उठ-उठकर रोज मरना हैं,,

मगर तेरी अनचाही फ़िक्र के दरमियाँ, मेरे निक्कमे वजूद का जिक्र होगा इतना,,

भरकर रोज इन आँखों में,, फिर तुझे मेरी चाहतो का जुर्माना अता करना है!!!

 

तुमने तो अक्सर मुझको अपनी नजरो से नीचे उतारा हैं,,

मालूम तुझको तो होगा ही,, उधर बसता दिल तुम्हारा हैं!!

कल तक तो तुझको मेरे देखने भर से भी दिक्कत थी,,

तब ही तुझको तलब होगी,, इस चाहत में कितनी सिद्दत थी!!!

जब जब नजर भरकर तु,, खुद को दर्पण में निहारेगी,,

याद कर लम्हाती बातो को, कभी इठलायेगी फिर शर्माएगी!!

तब वजन होगा मेरी हर बात में इतना कि पलके खुद ही झुक जायेंगी,,

याद कर मेरा रुक जाना,, फिर तुमको संवारना, तू भी वही रुक जाएगी!!

हाए!! अब कोई तो देखे मुझे उसकी नजर से, यही सोचकर खुद से उठना है,,

भरकर रोज इन आँखों में,, फिर तुझे मेरी चाहतो का जुर्माना अता करना है!!!

 

मेरी सुस्ती को अगर तेरी हस्ती की थोड़ी सी भी चुस्ती मिल जाती,,

सच कहता हूँ राधा मेरी,, जन्नत भरी मस्ती इन हस्तो में खिल जाती!!

कल तक जो नजरे तेरे नयन प्रकाश संग जागना चाहती थी,,

हर एक साँस तेरा अमृत सा साथ पाकर आगे बढ़ना चाहती थी!!

मगर आज वही भौर तेरी शोर मचाती नजरो से डरती हैं,,

आज वही राह तेरी आहो की आंधी तले पिछड़ती रहती हैं!!

देख कितना बदला है मेरी नजरो का मंजर तेरे हर सितम के बाद ,,

कल तक जो ओझल होने से डरती थी,,, आज तेरे दर्शन से डरती है!!

मगर इन नजरो में फैला कर अँधेरा,, तेरे इन्तजार का प्रकाश भरना हैं

भरकर रोज इन आँखों में,, फिर तुझे मेरी चाहतो का जुर्माना अता करना है

शिक्षा

July 4, 2015 in गीत

हम सबकी तरफ से हर-एक अध्यापक-गुरुजन  को सादर नमन

 

हैं पावन दिवस आज, करते हैं हम उनको प्रणाम,

जो ज्ञान की लौ जला कर मन अलौकिक करते रहते।

जन्म दिया माँबाप ने और राह दिखलाई हैं सबने,

सबके आशीर्वाद से ही हम हैं आगे बढ़ते रहते॥

 

जिन्दा रहने का असल अंदाज सिखलाया इन्होने।

ज़िन्दगी हैं ज़िन्दगी के बाद बतलाया इन्होने।

खुद तो तप की अग्नि में जल कर हैं बनते रहते कोयला,

पर जहाँ को कोहिनूर मिला सदा इनकी खानों से ॥

हमने तो माँगा था फल पर दी सदा इन्होंने ‘गुठली’,

अपमान सा हमको लगा पर हो अंकुरित ‘कल्प’ निकली।

उसी वृक्ष की छांव में हम नित्य बनाते बसेरे,

पर उसे ही भूल जाते जो जड़ो में हैं समेटे॥

जन्म दिया माँ बाप ……….

हैं पावन दिवस……….

 

आज जब देखा खुद को ज्ञान की गलियों में “अंकित”।

विचित्र सी तबीयत खिली पर ख्वाब दिल में पनपे शंकित।

शिक्षा जो पानी की भांति होनी थी सब के लिए पर,

आवश्यक तत्व होने पर भी प्रतिरूप पानी बनाना काल्पनिक॥

शिक्षा बनी व्यापार केंद्र, इसे बेचने सब आपाधाप निकले।

औरो से क्या अरमां रखे जब सरकारी सब के बाप निकले।

आश है, विश्वास हैं, अब आकुल सुंदर-सौरभित सुरभि पर,

तम में ज्ञान-दीप जला कर कमनीय-कीर्ति गौरव गिरिवर निकले॥

जन्म दिया माँ बाप ……….

हैं पवन दिवस……….

 

सस्वर पाठ:

तो हैं नमन उनको की जो यशकाय को अमृत्व दे कर,

इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गए हैं।

तो हैं नमन उनको जिनके सामने बौना हिमालय,

जो धरा पर रह कर भी आसमानी हो गए हैं।

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